पोवार समाज की ऐतिहासिक पार्श्वभूमी एवं भवितव्य की खोज : लेखक – इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

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*पोवार समाज की ऐतिहासिक पार्श्वभूमी एवं भवितव्य की खोज*
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*लेखक – इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले*
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🔷 भारत की आज़ादी के कुछ वर्षों पश्चात पोवार समाज के कुछ व्यक्तियों ने पोवार समाज एवं पोवारी भाषा की ऐतिहासिक पहचान मिटाने का कार्य प्रारंभ किया और समाज ने दीर्घकाल तक इसके अच्छे- बूरे परिणामों पर गंभीरतापूर्वक सोचा ही नहीं।
🔷 विलंब से ही सही लेकिन २०१८ की शुरुआत से पोवार समाज में भाषिक, सामाजिक, सांस्कृतिक वैचारिक क्रांति लाने का एवं ऐतिहासिक पहचान बचाने का एक अभियान प्रारंभ किया गया।
🔷 देखते ही देखते समाज का एक बड़ा प्रबुद्ध वर्ग इस आंदोलन से जुड़ गया और ९ जून २०२०को अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ की स्थापना की गयी।
🔷 उपर्युक्त स्थिति में पोवार समाज ने क्या अपनी ऐतिहासिक पहचान मिटाकर आगे बढ़ना उचित होगा?अथवा ऐतिहासिक पार्श्वभूमी के आधार पर आगे बढ़ना उचित होगा? इन उभरते हुए दो सवालों के परिप्रेक्ष्य में सार्थक विचार की खोज करना यही इस लेख का प्रमुख उद्देश्य है।
♦️१.ऐतिहासिक पार्श्वभूमी का महत्व ———————————————
व्यक्ति , समाज अथवा राष्ट्र को परिवर्तनशील विश्व में अपने स्वयं को ढालना पड़ता है। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र अपनी ऐतिहासिक पार्श्वभूमी को ध्यान में रखते हुए एवं उसका अनुसरण करते हुए आगे बढ़ता है। यही जीवन का सर्वमान्य मार्ग है।
ऐतिहासिक पार्श्वभूमी को त्यागकर आगे बढ़ने वाले व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र की स्थिति कटी पतंग के समान हो जाती है। कटी पतंग जिस प्रकार कहा जाकर गिरेगी ? इस संबंध में कुछ भी आकलन नहीं जा सकता। लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि कटी पतंग का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
जो व्यक्ति , समाज या राष्ट्र किसी कारणवश अपनी ऐतिहासिक पार्श्वभूमी को त्याग देता है, वह भी कटी पतंग के समान नष्ट हो जाता है। प्राचीन काल में शक,यवन, हूण आदि. समुदाय थे, काल-प्रवाह में वें नष्ट हो गये अथवा अन्य समुदायों में घुल कर विलुप्त हो गये। प्राचीन काल में युनानी संस्कृति एवं रोमन सभ्यता भी इसी तरह नष्ट हो गयी।
♦️२. यहूदियों का प्रेरक उदाहरण
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उपर्युक्त उदाहरणों के ठीक विपरीत उदाहरण यहूदियों का हैं। सदियों पहले शत्रुओं के आक्रमणों के कारण यहुदी समुदाय के लोग, मध्य एशिया की पॅलेस्टाईन नामक अपनी मातृभूमि को छोड़कर विश्व के अनेक राष्ट्रों में बिखर गये थे। लेकिन विश्व भर के यहूदियों ने, “वें सब एक हैं तथा भविष्य में कभी न कभी पॅलेस्टाईन में अपने स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण करेंगे।” यह भाव प्रखरता से प्रज्ज्वलित रखा था। इसलिए द्वितीय महायुद्ध के समय जब विभिन्न राष्ट्रों में यहूदियों पर भयानक जुल्म ढाना प्रारंभ हुआ तब वे प्राणों की परवाह न करते हुए पॅलेस्टाईन पहुंचे एवं इज़रायल नामक अपने स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना की। इज़राइल को संपूर्ण संसार आज एक शक्तिशाली राष्ट्र के रुप में जानता है।
♦️३. प्रत्यक्ष भारतवर्ष का उदाहरण
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यहां भारतवर्ष का उदाहरण भी उल्लेखनीय है। आज़ादी के बाद भारतवर्ष धर्मनिरपेक्षता की नीति पर चल पड़ा। इस नीति के परिणामस्वरूप भारत की ऐतिहासिक पहचान अथवा सनातन संस्कृति पर संकट के बादल मंडराने लगे। सनातन संस्कृति के प्राणतत्व प्रभु श्रीराम के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह उपस्थित करना प्रारंभ हुआ। यह सब देखते हुए भारतवर्ष का जनमानस २०१४ में राष्ट्रवाद से प्रभावित होकर अपनी ऐतिहासिक पार्श्वभूमी एवं सांस्कृतिक विरासत के आधार पर आगे बढ़ने लगा है। उसी की परिणति और समस्त भारतवासियों के लिए परम् हर्ष का विषय है कि इसी माह में आगामी सोम.२२जनवरी २०२४ को अयोध्या में भारतीय संस्कृति की प्राणशक्ति प्रभु श्रीराम का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह हर्षोल्लास के साथ संपन्न होने जा रहा है।
♦️४. पोवार समाज की ऐतिहासिक पार्श्वभूमी
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पोवार समाज की ऐतिहासिक पार्श्वभूमि निम्नलिखित है –
३-१.पोवार समाज क्षत्रिय है तथा इसका ऐतिहासिक नाम पोवार हैं। ३-२. पोवार समाज की मातृभाषा पोवारी नाम से सुपरिचित है।
३-३. पोवार समाज सनातन हिन्दू धर्म का उपासक है। इसे मध्ययुग ( नवी से अठारहवीं सदी) में अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ा लेकिन विपरीत परिस्थिति में भी यह समाज धर्म के प्रति सदैव निष्ठावान रहा है। यह समुदाय राष्ट्र के प्रति भी सदैव निष्ठावान रहा है।
३-४. पोवार समुदाय में ३६ कुल के क्षत्रियों का समावेश है और ये छत्तीस कुल के लोग आपस में ही विवाह संबंध प्रस्थापित करते है।
♦️५. समाज को महासंघ का समर्थ नेतृत्व
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ईस्वी सन् २०२० से पोवार समाज अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ के नेतृत्व में ऐतिहासिक पार्श्वभूमी के आधार पर आगे बढ़ रहा है।
महासंघ पोवार समाज के अस्तित्व एवं ऐतिहासिक पहचान के जतन के लिए, मातृभाषा पोवारी के उत्थान के लिए तथा ३६ कुल पोवार समाज के हितों की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। सनातन धर्म एवं राष्ट्र के प्रति अटूट निष्ठा विकसित करते हुए निष्ठा रखते हुए पोवार समाज का सामाजिक, सांस्कृतिक, वैचारिक एवं सर्वांगीण उत्थान इस पावन लक्ष्य की दिशा में महासंघ आगे बढ़ रहा है। महासंघ की लोक-मंगलकारी विचारधारा एवं अपनाई गई नीतियों के कारण अब पोवार समाज का स्वतंत्र अस्तित्व, ऐतिहासिक पहचान और समाज का भवितव्य उज्ज्वल है।

*-ओ सी पटले*
*पोवार समाज रिसर्च अकॅडमि, भारतवर्ष.*
*मंग .९/१/२०२४.*
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