संकटग्रस्त भाषा की परिभाषा एवं पोवारी भाषा को चलन में लाने के महत्वपूर्ण उपाय – इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

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संकटग्रस्त भाषा की परिभाषा एवं पोवारी भाषा को चलन में लाने के महत्वपूर्ण उपाय
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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♦️१. समस्या की व्याख्या
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विश्व में अनेक भाषाएं बोली जाती है। लेकिन वैश्वीकरण के इस युग में छोटे समुदायों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं का अस्तित्व संकट में है। भारत में भी अनेक भाषाएं संकटग्रस्त है। पोवार समाज की मातृभाषा पोवारी भी संकटग्रस्त भाषा की सूची में समाविष्ट है। पोवारी भाषिक क्रांति द्वारा पोवारी भाषा को संकटग्रस्त स्थिति से उबारने के लिए दिन-रात प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें भारी सफलता भी मिली है।
‌यहां एक बात विशेष उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार चिकित्सक द्वारा किसी रोग का सफल इलाज तब-तक नहीं किया जा सकता, जब-तक उस रोग का सही निदान नहीं हो पाता। यही बात संकटग्रस्त भाषा के संबंध में भी लागू होती है। अतः हम जब -तक “संकटग्रस्त भाषा” इस संकल्पना को सही परिभाषित नहीं कर लेते तब-तक हम चाहें लाख कोशिश कर लें लेकिन संकटग्रस्त भाषा को पूरी तरह संकट से बाहर नहीं निकाल पायेंगे।
♦️२. संकटग्रस्त भाषा की परिभाषा
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“जो भाषा पुरानी पीढ़ी के बीच चलन में होती है, लेकिन नयी पीढ़ी के बीच अपना अस्तित्व खोने लगती है, उसे संकटग्रस्त भाषा के नाम से संबोधित किया जाता है।”
पोवारी भाषा यह पोवार समाज की पुरानी पीढ़ी के बीच चलन में हैं लेकिन छात्रों एवं सुशिक्षित नयी पीढ़ी के बीच अपना अस्तित्व खो रही है। इसलिए भाषा विशेषज्ञों द्वारा पोवारी भाषा को संकटग्रस्त भाषा की सूची में सम्मिलित किया गया है।♦️३.भाषा को चलन में लाने के उपाय ———————————————— 🔷३-१.पोवारी भाषिक क्रांति
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पोवारी भाषा को संकटग्रस्त स्थिति से उबारने के लिए २०१८ में पोवारी भाषाविश्व नई क्रांति अभियान की शुरुआत की गई । युवाशक्ति के भरपूर प्रतिसाद के कारण यह क्रांति आश्चर्यजनक गति से सफल हुई सफल हुई। विगत पांच वर्षों के भीतर लगभग १०० पोवारी साहित्यिक उभरकर सामने आये और २०१८ से २०२३ इस कालखंड में पोवारी भाषा की ६०-७० किताबों का प्रकाशन हुआ। तात्पर्य, पोवार समाज में भाषिक एवं साहित्यिक क्रांति सफ़ल हुई है। लेकिन पोवारी भाषा को नयी पीढ़ी में चलन में लाने के लिए हमें आगे भी बहुत कार्य करने होंगे
🔷३-२. कार्यक्रमों में मातृभाषा का चलन ————————————————-
भाषिक क्रांति के पश्चात मातृभाषा पोवारी में सामाजिक कार्यक्रमों की निमंत्रण पत्रिका, कार्यक्रम में भाषण, सांस्कृतिक कार्यक्रम का प्रचलन बढ़ा है। इस परंपरा को गर्व के साथ स्थाईत्व देना यह नई पीढ़ी के बीच पोवारी को चलन में लाने का बहुत महत्वपूर्ण उपाय है। इससे नई पीढ़ी में मातृभाषा पोवारी के प्रति अभिरुचि विकसित होगी और उसके बीच चलन में आने की पृष्ठभूमि तैयार होगी।
🔷३-३. बुद्धिजीवियों द्वारा मातृभाषा का प्रयोग
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भाषिक क्रांति के फलस्वरूप पोवारी भाषिक चेतना यह सार्वजनिक भाषिक चेतना में परिवर्तित हुई। परिणामस्वरुप नगरों और महानगरों में रहनेवाले प्रतिष्ठित स्वजन अपने समाज बंधुओं के साथ बहुत स्वाभिमान के साथ पोवारी में संवाद करते है। इनमें डॉ. विशाल बिसेन (गुजरात), वानखेड़े शिक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. शेखराम येड़ेकर ( नागपुर), श्री ऋषि बिसेन (IRS नागपुर), प्रो. प्रल्हाद हरिणखेड़े ( मुंबई), रीजनल इंजी. नरेशकुमार गौतम ( भोपाल), इंजी. महेन पटले ( नागपुर), इ़जी. गोवर्धन बिसेन ( गोंदिया), प्राचार्य खुशाल कटरे (गोंदिया), प्रा. शारदा चौधरी
( भंडारा), प्रा. छाया पारधी ( तुमसर) आदि अनेक नाम उल्लेखनीय हैं।
उपर्युक्त महानुभावों ने पोवारी भाषिक क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए एक आदर्श प्रस्थापित किया है। समाज के सभी बुद्धिजीवियों द्वारा इनसे प्रेरित होकर पोवारी को स्वाभिमान के साथ अपनाया तो नयी पीढ़ी के बीच पोवारी भाषा चलन में आने का कार्य बहुत सहज हो पायेगा।
🔷३-४. पोवारी बाल-साहित्य
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भाषिक क्रांति के फलस्वरूप २०२० में झुंझुरका पोवारी बाल ई-पत्रिका नियमित रुप से संपादक मंडल द्वारा प्रकाशित हो रही है। इसका स्तर श्रेष्ठ एवं कलेवर भी आकर्षक है। यह पत्रिका नयी पीढ़ी में मातृभाषा पोवारी को चलन में लाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।
🔷३-५. कलाकारों द्वारा प्रचार -प्रसार
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भाषिक क्रांति के पहले पोवारी का प्रचार प्रसार करनेवाले कलाकार बहुत कम थे। अब लगभग विविध प्रकार के २५ कलाकार है जो आर्केस्ट्रा, कीर्तन, व्हिडिओ, काॅमेडी व्हिडिओ आदि के माध्यम से पोवारी भाषा का प्रचार -प्रसार करते है। इन कार्यक्रमों का स्तर उन्नत करने की आवश्यकता है। इनका स्तर नयी पीढ़ी को प्रभावित कर सकें ऐसा होना चाहिए। पोवारी भाषा नयी पीढ़ी के बीच चलन में लाने की दृष्टि कला भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देगी।‌
♦️४.असंभव को संभव बनायेंगे !
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पोवारी भाषा हम यदि इतना समृद्ध कर पायें तथा पोवारी साहित्य को भी इतना उन्नत कर पायें कि उसपर हमारी नयी पढ़ी लिखी पीढ़ी गौरव कर पायें तो निश्चित ही वह नयी पीढ़ी के बीच चलन में आयेगी।
सभी पोवारी साहित्यिक अलग-अलग क्षेत्र में विशेष पहचान प्राप्त है। मातृभाषा पोवारी को उन्नत करने के लिए दिन-रात परिश्रम कर रहे है। अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ भी पूर्ण मनोयोग से पोवारी भाषा को समाज में पुनर्प्रतिष्ठित करने के लिए कटिबद्ध है।
मानव यदि तीव्र इच्छाशक्ति, दृढ़ संकल्प एवं समर्पित भाव से कार्य करता हो तो उसमें असंभव को भी संभव करने की ईश्वर प्रदत्त अद्भुत क्षमता होती है। यहूदी यदि अपनी लुप्त हुई हिब्रू भाषा को पुनर्जीवित कर सकते है और प्रयत्नों की पराकाष्ठा करने से मानव यदि दूसरे ग्रह पर जा सकता है तो फिर यह तो केवल मातृभाषा पोवारी को युवा पीढ़ी के बीच चलन में लाने की बात है। इस समय हम स्वयं एवं हमारे सभी साहित्यिक आत्मविश्वास से इतने भरपूर हैं कि वें आज कठीन महसूस होने वाले कार्य को भविष्य में एक न एक दिन आवश्य सफल करके दिखायेंगे। विशेष उल्लेखनीय है कि “मातृभाषा पर यदि अस्तित्व का संकट हो तों भी उसे इस संकट से उबारकर अपने समुदाय में पुनर्प्रतिष्ठित किया जा सकता है! इसका एक इतिहास रचने हमारी युवाशक्ति तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही है।”

-ओ सी पटले
पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
शनि.१३/१/२०२४.
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