तलबगार

0
45

कुछ तो खाश है तुझ मे.
वरना कौन यंहा किसी को
मिलता है.. मिट्टी भी शौंधी, शौंधी
खुसबू देती है…. ज़ब बारिश की
फूहार पडती है.. बहुत कोशिश की
पर रख ना पाए. जमीं पर पैर. यंहा
सिद्धत से मेहनत की होंगी तूने भी
इस जंहा मे सिद्ध होने की.. ऐसा ही
कोई तेरा.. तलबगार थोड़ी है… बहुत कामयाबी पाई. तुमने शहर दर
शहर..अपना वजूद बनाने.. आज वफ़ा भी तुझे राश आई.. कोई ऐसे ही
तेरा तलबगार थोड़ी है.. तन्हाई से
निकलकर. रोशन किया खुद वजूद.. तारे जमी पर लाकर.. यह कोई इत्तेफाक थोड़ी…. नाजुक वक़्त से सभाला है खुद को… कोई तो खाश
वजह रही होंगी…. ऐसे ही कोई…. तेरा तलबगार थोड़ी है….. ❤️
कलम से :-सुनील असाटी