साहित्य के द्वारा पोवारी चेतना एवं सामूहिक क्रांति का उद्भव एवं विकास : एक संक्षिप्त इतिहास
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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♦️ प्रतिरोध (विरोध) साहित्य का मूल स्वर है, जो समाज नवनिर्माण का सपना लेके आगे बढ़ता है।
♦️ साहित्यिक सुधारक या महात्मा नहीं होता। वह समाज में रहकर हाथ में मशाल लेकर अंधेरे से लड़ते-लड़ते आगे बढ़ता है। साहित्य पाठक के साथ सुख – दुख का एक संवेदनशील रिश्ता बनता है। जिसके कारण साहित्यिक के साथ पाठक जुड़ते जाते है।
♦️ साहित्य, साहित्यिक द्वारा निजी संवेदना या सत्य को सार्वजनिक या व्यापक संवेदना में परिवर्तित करने के कौशल का नाम है।
१. साहित्य का कार्य
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समाज के जितने आयाम है,उतने ही चेतना के प्रकार है। समाजोत्थान की दृष्टि से भाषिक चेतना, सामाजिक चेतना, सांस्कृतिक चेतना, राजनीतिक चेतना एवं राष्ट्रीय चेतना विशेष उल्लेखनीय है। समाज में चेतना जागृत करना यह साहित्य का एक प्रमुख कार्य होता है। २. भ्रम चेतना एवं प्रतिरोधिक चेतना
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चेतना के भ्रम चेतना एवं प्रतिरोधिक चेतना यह अन्य दो विशेष प्रकार भी है, जिन पर बहुत कम लिखा गया है। पोवारी क्रांति का इतिहास यह भ्रम चेतना एवं प्रतिरोधिक चेतना के बीच हुए संघर्ष की एक रोचक दास्तान है।
प्रस्थापित सामाजिक संगठनों द्वारा अपनी विचारधारा को सही ठहराने वाली सामाजिक चेतना उत्पन्न जागृत की जाती है । इस प्रकार की सामाजिक चेतना समाज हित के प्रतिकूल हो तो उसे भ्रम चेतना ( false Consciousness) कहा जाता है। भ्रम चेतना के जाल से समाज को बाहर निकालने का प्रयास यह साहित्य का महत्वपूर्ण कार्य होता है। इसलिए साहित्यिक स्रष्टा एवं दृष्टा होना चाहिए, ऐसी अपेक्षा की जाती है।
साहित्य का प्रथम कार्य होता है समाज को भ्रम चेतना के जाल से बाहर निकालना एवं दूसरा कार्य होता है समाज में उचित परिवर्तन ले आना ! सामाजिक परिवर्तन की इस राह में वें सामाजिक संगठन अवरोध( Barrier ) के रुप में खड़े होते हैं, जिन्होंने भ्रम चेतना उत्पन्न की है । अतः भ्रम चेतना से समाज को उबारकर उचित परिवर्तन लाना हो तो, साहित्यिक को प्रस्थापित सामाजिक संगठनों के विरुद्ध संघर्ष करना अनिवार्य होता है। अवरोध ( Barrier) का प्रतिरोध करना पड़ता है तथा प्रतिरोध करने की चेतना समाज मे जागृत करना पड़ता है। इसप्रकार की चेतना को प्रतिरोधिक चेतना (Resistant Consciousness ) के नाम से संबोधित किया जाता है।
४. भ्रमित पोवारी चेतना का स्वरूप
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वैनगंगा अंचल के ३६ कुल पोवार समाज में राष्ट्रीय पवार क्षत्रिय महासभा नामक संगठन अस्तित्व में है। इस संगठन ने पोवार समाज के हितों को दुर्लक्षित कर १९५४ से पोवार समाज का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त करने की ग़लत नीति अपनाई । अपनी नीति को सही साबित करने के लिए इस संगठन ने पोवार समाज में भ्रम चेतना जागृत की। परिणामस्वरुप पोवारी चेतना समग्र रुप से भ्रमित हुई । २०१८ के पूर्व भ्रमित पोवारी चेतना का स्वरूप निम्नलिखित था –
४-१. महासभा ने पोवार, भोयर एवं परमार इन तीन भिन्न – भिन्न जातियों को एक ही जात बताते हुए सभी के लिए पवार ( Pawar ) इस नाम का प्रयोग शुरू किया।
४-२. महासभा ने पोवार (Powar)समाज के लोगों को अपनी जाति का नाम पवार ( Pawar) लिखने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरुप समाज के अनेक लोग पवार नाम धारण करने में गर्व अनुभव करने लगे। तात्पर्य, समाज में अपने ऐतिहासिक जाति नाम के संबंध में भ्रम चेतना अपनी जड़ें मजबूत कर रही थी।
४-३. महासभा ने पोवारी एवं भोयरी इन दोनो भाषाओं के लिए पवारी (Pawari ) शब्द का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरुप पोवार के लोग अपनी मातृभाषा को पवारी संबोधित करने में गर्व महसूस करने लगे। तात्पर्य, समाज में मातृभाषा पोवारी के नाम के संबंध में भ्रम चेतना व्याप्त हो गयी।
४-४. पोवार समाज की संस्कृति को सनातन हिन्दू धर्म का अधिष्ठान प्राप्त है। लेकिन महासभा ने सनातन हिन्दू धर्म को अपने उद्देश्यों में कोई स्थान न देते हुए पोवारी संस्कृति को महान बताने और उसके जतन का आश्वासन देने का सिर्फ मौखिक प्रचार किया। परिणामस्वरुप सनातन धर्म एवं पोवारी संस्कृति यह दोनों तत्व अलग – अलग है। इस प्रकार की चौथी भ्रम चेतना पोवार समाज में व्याप्त हो गयी थी।
महासभा की ग़लत नीति के कारण पोवार समाज में अपने जाति का नाम, मातृभाषा का नाम तथा पोवारी संस्कृति एवं सनातन हिन्दू धर्म के बीच पारस्परिक संबंध के विषय में संभ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी।
५. गलत नीतियों के विरुद्ध वैचारिक संघर्ष
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पोवार समाज एवं मातृभाषा पोवारी की दशा एवं दिशा देखकर प्रस्तुत लेखक कई वर्षों से व्यथित एवं दुःखी था। उसके द्वारा २०१८ में दो अभियान प्रारंभ किए गए। प्रथम पोवारी भाषाविश्व नई क्रांति अभियान एवं द्वितीय, पोवार समाज विश्व आमूलाग्र क्रांति अभियान! दोनों अभियानों के कार्य परस्पर पूरक थे और उनके कार्यों के बीच स्पष्ट सीमा रेखा खींचना मुश्किल है।। अतः इन दोनों अभियानों को समग्र पोवारी क्रांति अभियान के नाम से संबोधित करना ज़्यादा बेहतर है। पोवारी क्रांति अभियान द्वारा समाज में जो भाषिक , सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक क्रांति साकार हुई, उसे सम्मिलित रुप से समग्र पोवारी क्रांति ( Powari Revolution ) के नाम से संबोधित किया जाता है।
पोवारी क्रांति यह क्रांतिकारी प्रयासों की फलश्रुति है। यह क्रांति साकार करने के उद्देश्य से प्रस्तुत लेखक ने २०१८ में युवाशक्ति में भाषिक चेतना, सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक चेतना, धार्मिक चेतना एवं राष्ट्रीय चेतना जागृत करके वैचारिक क्रांति का कार्य एकसाथ प्रारंभ किया । इसी के साथ -साथ उसने युवाशक्ति को भ्रम चेतना से बाहर निकालने के उद्देश्य से महासभा की ग़लत नीतियों का हर मोर्चे पर स्वयं विरोध करना प्रारंभ किया। महासभा की नीतियां एवं प्रस्तुत लेखक की विचारधारा के बीच हुए संघर्ष का हमारे समाज की युवाशक्ति ने जी भरकर अनुभव किया। इस संघर्ष ने युवाशक्ति को परस्पर विरोधी विचारों को सुनने- समझने का एवं उचित पक्ष के समर्थन में आगे आने का अवसर दिया। इस वैचारिक संघर्ष के प्रारंभिक दौर में लेखक अकेला ही परिपूर्ण आत्मविश्वास एवं उमंग के साथ संघर्ष करते रहा । लेकिन उसकी विचारधारा से प्रेरित होकर समाज के एक -एक युवा लेखक के बचाव में आगे बढ़ता रहा। धीरे-धीरे कारवां बढ़ता गया। पोवार समाज की युवाशक्ति ने लेखक के विचारों के साथ खड़े रहने का एवं महासभा की ग़लत नीतियों का विरोध करने का फैसला किया। समाज की इस युवाशक्ति के बल पर ही समस्त पोवार समाज में भाषिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और वैचारिक क्रांति लाना संभव हुआ।
६. समग्र पोवारी क्रांति
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पोवार समाज में २०१८ के बाद व्यापक परिवर्तन देखने को मिलते है। यह परिवर्तन अत्यंत अल्पावधि में बहुत तेज गति से आये है। इसलिए इन व्यापक परिवर्तनों को समग्र पोवारी क्रांति के नाम से संबोधित करना सर्वथा संयुक्तिक है। समग्र पोवारी क्रांति के विविध आयाम निम्नलिखित है –
६-१. भाषिक चेतना एवं क्रांति ———————————————–
आज़ादी के पश्चात सत्तर वर्षों तक हमारे समाज के कर्णधारों ने मातृभाषा पोवारी की उपेक्षा की। समाज और मातृभाषा के पोवार एवं पोवारी इन दोनों ऐतिहासिक नामों के प्रति तिरस्कार के भाव उत्पन्न किये। परिणामस्वरुप मातृभाषा पोवारी पुरानी पीढ़ी के बीच चलन में रहीं लेकिन नयी पीढ़ी के बीच चलन से बाहर हों गयी और उसका समावेश विश्व की संकटग्रस्त भाषाओं की श्रेणी में हो गया।
उपर्युक्त विपरीत परिस्थिति में प्रस्तुत लेखक द्वारा “मातृभाषा पोवार समाज की श्रेष्ठतम धरोहर है। पोवारी भाषा समाज की पहचान एवं पोवारी संस्कृति की संवाहक है। मातृभाषा के संरक्षण -संवर्धन एवं उन्नयन से ही समाज की संस्कृति, पहचान एवं समाज का स्वतंत्र अस्तित्व कायम रहेगा। यदि मातृभाषा नष्ट हो गयी तो पोवार समाज की स्वतंत्र पहचान, पोवारी संस्कृति एवं पोवार समाज का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। इसके विपरित पोवारी भाषा एवं पोवारी साहित्य के विकास से पोवार समाज को एक उन्नत समाज के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। ” इन विचारों का खूब प्रचार -प्रसार किया गया।
उपर्युक्त विचारों की सहायता से समाज की युवाशक्ति में मातृभाषा के प्रति प्रेम, अस्मिता एवं स्वाभिमान विकसित किया गया। इस कारण पोवार समाज में आश्चर्यजनक गति से भाषिक क्रांति सफ़ल हुयी।
६-२.सांस्कृतिक चेतना एवं क्रांति
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पोवारी संस्कृति को सनातन हिन्दू धर्म का अधिष्ठान प्राप्त है तथा यह समाज पुरातन काल से सनातन हिन्दू धर्म का उपासक है। प्रभु श्रीराम पोवार समाज के प्रथम आराध्य है। हमारे समाज के आचरण में सनातन हिन्दू धर्म रचा – बसा है लेकिन पोवारी संस्कृति एवं सनातन हिन्दू धर्म के बीच पारस्परिक संबंध को दुर्लक्षित – उपेक्षित कर दिया गया था।
समाज की उपरोक्त स्थिति के कारण पोवार समाज के जो असंख्य डिजिटल मंच है, उनमें सनातन हिन्दू धर्म पर प्रेषित पोस्ट का अनेक सदस्य विरोध करते थे एवं यहां केवल पोवार समाज, पोवारी संस्कृति और पोवार समाज के विकास पर ही बात रखिये। सनातन हिन्दू धर्म पर इस ग्रुप में बात न रखिये। इस प्रकार की हिदायत देते थे। २०१८ के पूर्व हमारे समाज की यह स्थिति थी। लेकिन प्रस्तुत लेखक द्वारा “पोवारी संस्कृति और सनातन हिन्दू धर्म के बीच विद्यमान संबंधों को व्यवस्थित ढंग से निरुपित किया गया। सनातन हिन्दू धर्म ही पोवारी संस्कृति एवं राष्ट्र की प्राणशक्ति है। पोवारी संस्कृति एवं भारतवर्ष का अस्तित्व सनातन हिन्दू धर्म के अस्तित्व पर ही निर्भर है। इस वास्तविकता से युवाशक्ति को अवगत कराया गया।” समाज की युवाशक्ति को सनातन हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए प्रोत्साहित भी किया गया। इसप्रकार समाज में सांस्कृतिक चेतना विकसित की गयी। परिणामस्वरुप पोवार समाज के सभी डिजिटल समूहों में सांस्कृतिक चेतना जागृत व विकसित हुई । हमारे समाज के अनेक युवा सनातन हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य भी जोरशोर से करने लगे। इस परिवर्तन को प्रस्तुत लेखक द्वारा सांस्कृतिक क्रांति के नाम से संबोधित किया गया है।
६-३. सामाजिक चेतना एवं क्रांति
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पोवार समाज में राष्ट्रीय क्षत्रिय पवार महासभा सक्रिय है। पोवार समाज की युवाशक्ति एवं प्रबुद्ध वर्ग राष्ट्रीय महासभा पर आंखें मूंदकर विश्वास किया करता था। इसी स्थिति का लाभ उठाकर महासभा ने १९८२ से पोवार समाज का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त करने के उद्देश्य से समाज एवं मातृभाषा पोवारी के ऐतिहासिक नाम (Powar and Powari)मिटाकर उनके स्थान पर पवार एवं पवारी ( Pawar and Pawari ) यह गलत नाम प्रतिस्थापित करने का षड़यंत्र प्रारंभ किया था।
उपरोक्त नीति की निष्पक्ष समीक्षा करते हुए प्रस्तुत लेखक इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि ” मातृभाषा पोवारी का उसके ऐतिहासिक नाम को कायम रखते हुए संरक्षण -संवर्धन करना अनिवार्य है। मातृभाषा का नाम बदलने से उसके प्रति प्रेम, अस्मिता एवं स्वाभिमान नष्ट होगा। परिणामस्वरुप मातृभाषा पोवारी के संरक्षण- संवर्धन में बाधा उत्पन्न होगी और मातृभाषा को अस्तित्व के संकट से उबारना असंभव हो जायेगा।”
अतः लेखक ने इस बात का धुआंधार प्रचार किया कि “समाज एवं मातृभाषा का मूल नाम बदलने से पोवार समाज की ऐतिहासिक पहचान नष्ट होगी। परिणामस्वरुप कालांतर में मातृभाषा, संस्कृति एवं पोवार समाज का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। लेखक द्वारा किए गए इस तर्कसंगत प्रचार से प्रबुद्ध वर्ग सम्मत होते चला गया और अंततः वह अपनी ऐतिहासिक पहचान बचाने के लिए उत्साहपूर्वक कार्य करने लगा। महासभा की ग़लत नीतियों का भी खुलेआम विरोध करने लगा। इसप्रकार लेखक के विचारों से समाज में अपनी ऐतिहासिक पहचान के प्रति चेतना जागृत हुई। प्रबुद्ध वर्ग का महासभा के प्रति मोह भंग हुआ, विश्वास टूटा। समाज के प्रबुद्ध वर्ग ने समाज हित पर स्वतंत्र रुप से सोचना प्रारंभ किया एवं समाजोत्थान के लिए कार्य करने लगा। प्रस्तुत लेखक ने इसप्रकार के परिवर्तन को सामाजिक क्रांति के नाम से संबोधित किया हैं।
६-४. वैचारिक क्रांति
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लेखक ने इस बात का खुलकर प्रचार -प्रसार किया कि मातृभाषा एवं समाज का उत्थान यह समाज के प्रबुद्ध वर्ग – प्रोफेसर, शिक्षक, वकील,डॉक्टर, अधिकारी, उन्नत किसान एवं सफ़ल उद्यमी आदि का नैतिक दायित्व है। परिणामस्वरुप बुद्धिजीवियों ने डिजिटल मंचों को वैचारिक मंच में परिवर्तित कर दिया और वहां पोवार समाज के विभिन्न आयामों पर , मातृभाषा के संवर्धन तथा समाजोत्थान पर गंभीरता से विचार विमर्श प्रारंभ हुआ। बड़े पैमाने पर पोवारी साहित्य का सृजन तथा प्रचार -प्रसार प्रारंभ हुआ। तात्पर्य, पोवार समाज को एक बुद्धिजीवी समाज का स्वरूप प्राप्त हुआ। इसे ही लेखक द्वारा वैचारिक क्रांति के नाम से संबोधित किया है।
६-५. साहित्यिक क्रांति
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पोवारी भाषिक क्रांति २०१८ में आश्चर्यजनक गति से सफ़ल हुई। इस सफलता से मिली नयी उर्जा के कारण लेखक ने सांस्कृतिक, सामाजिक एवं वैचारिक एवं साहित्यिक क्रांति साकार करने के उद्देश्य से दिन -रात उत्साह के साथ कार्य करना और नए – नए तरीके से युवाशक्ति को प्रोत्साहित करना प्रारंभ किया। लेखक द्वारा प्रेषित उत्साहवर्धक विचारों की अविरत श्रृंखला के कारण युवाशक्ति में हर्ष, उल्लास एवं उमंग का सतत् संचार होते रहा। परिणामस्वरुप पोवारी साहित्यिक क्रांति का सपना भी सहज साकार हुआ। वर्तमान में लगभग १०० पोवारी साहित्यिक मातृभाषा पोवारी के उत्थान के लिए दिन-रात समर्पण भाव से कार्य कर रहे हैं। पोवारी भाषा में २०१८ से अबतक लगभग ५० पोवारी किताबों का प्रकाशन हुआ है। श्री. ऋषि बिसेन ( IRS), नागपुर एवं इंजी. श्री गोवर्धन बिसेन, गोंदिया ये महानुभाव प्रकाशक के रुप में साहित्यिक क्रांति को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहें है।
६-५. अखिल भारतीय महासंघ की स्थापना
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राष्ट्रीय क्षत्रिय पवार महासभा ने नामांतरण की नीति अपनाई थी। अतः उससे मातृभाषा के विकास और समाजोत्थान की आशा कदापि नहीं की जा सकती। इन दोनों उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रस्तुत लेखक पोवार समाज की युवाशक्ति को एक राष्ट्रीय संगठन की स्थापना करने के निरंतर आवाहन एवं प्रेरित करता रहा। अंततः समाज के प्रबुद्ध वर्ग ने सामाजिक दायित्व को समझते हुए आगे आकर एक राष्ट्रीय संगठन की स्थापना का मानस बनाया और ९ जून २०२० को अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ नामक राष्ट्रीय संगठन की स्थापना की गयी।
परिणामस्वरुप महासंघ के नेतृत्व में अब समग्र पोवारी क्रांति का कार्य बहुत गौरवशाली तरीके से निरंतर आगे बढ़ रहा है।
६-६. भ्रम चेतना से समाज की मुक्ति
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प्रस्तुत लेखक ने समाज को भ्रम चेतना के घने जाल से जाल से बाहर निकालने के लिए समाज की युवाशक्ति एवं प्रबुद्ध वर्ग को संबोधित करते हुए मातृभाषा का महत्व समाज के ऐतिहासिक नाम का महत्व, मातृभाषा पोवारी एवं उसके ऐतिहासिक नाम का महत्व, पोवार समाज एवं सनातन हिन्दू धर्म का संबंध पोवार समाज के प्रथम आराध्य प्रभु श्रीराम है आदि. अनेक विषयों पर अपने विचार साहित्य के माध्यम समाज में प्रचारित किया। लेखक की विचारधारा से प्रेरित युवाशक्ति के बल पर ही पोवार समाज में भाषिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, वैचारिक परिवर्तन हुए हैं एवं अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार )महासंघ की स्थापना भी हुई है। इसलिए लेखक यहां गंभीरतापूर्वक अभिलेखित करता है कि विगत वर्षों में पोवार समाज में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों की पृष्ठभूमि एवं फलश्रुति लिखने के पीछे इतिहास की वस्तुस्थिति से समाज को अवगत कराना यही एकमात्र उद्देश्य है। भविष्य में जब कोई पोवार समाज का इतिहास लिखेगा तब उसमें पोवार समाज में हुई समग्र क्रांति में युवाशक्ति का योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जाना चाहिए। यह सब युवा विविध क्षेत्र में कामयाब व्यक्ति है तथा वर्तमान में महासंघ की कार्यकारिणी में अथवा उसे सक्रिय सहयोग करते हुए सहजता से देखे जा सकते हैं।
७. उपसंहार
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महासभा द्वारा विकसित की गयी भ्रम चेतना की जाल से समाज को मुक्त करने के लिए जो संघर्ष किया गया, उसके कारण हमारे प्रबुद्ध वर्ग में प्रतिरोधिक चेतना विकसित हुई। परिणामस्वरुप वह भ्रम चेतना की परिधि से बाहर निकल आया और परस्पर विचार करके ९ जून २०२० को अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ के रुप में संगठित हो गया।
अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ पोवार समाज एवं मातृभाषा पोवारी के ऐतिहासिक नामों के संरक्षण, मातृभाषा पोवारी के संवर्धन, सनातनी पोवारी संस्कृति एवं पोवारी समाज की एकता के लिए प्रभावी रुप से कार्य कर रहा है। महासंघ के कुशल नेतृत्व में विगत शनि. ३/२/२०२४ को तुमसर नगर में दूसरा भव्य पोवारी अधिवेशन तथा चौथा पोवारी साहित्य सम्मेलन संपन्न हुआ। महासंघ के उदय के कारण पोवार समाज में एक नये उत्साह का माहौल है और पोवार समाज सही दिशा में अग्रसर हो रहा है।
– ओ सी पटले
समग्र पोवारी क्रांति अभियान,भारतवर्ष.
बुध.७/२/२०२४.
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