अध्याय १२. उदयोन्मुख पोवारी भाषा: चुनौतियां, अवसर एवं भवितव्य

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अध्याय १२. उदयोन्मुख पोवारी भाषा: चुनौतियां, अवसर एवं भवितव्य
Emerging Powari Language: Challenges, Opportunities and the Future.
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♦️अब हमारी मातृभाषा पोवारी यह संकटग्रस्त भाषा नहीं बल्कि उदयोन्मुख भाषा है।
♦️ हमारी युवाशक्ति ने पोवारी भाषा पर छाये हुए संकट के बादल को सफलतापूर्वक हटाया।
♦️ युवाशक्ति द्वारा विपुल पैमाने पर साहित्य सर्जन एवं स्वजनों से स्वाभिमान के साथ मातृभाषा में बोलने के संकल्प ने उसे उदयोन्मुख भाषा कहने के योग्य बना दिया।
१. संकटग्रस्त भाषा का अभिप्राय
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यदि कोई भाषा नयी पीढ़ी के बीच चलन से बाहर होती प्रतीत हो तो उसे संकटग्रस्त भाषा के नाम से संबोधित किया जाता है। आज़ादी के पश्चात पोवारी भाषा बुद्धिजीवी वर्ग एवं नयी पीढ़ी के बीच बोलचाल से बाहर होती गयी। इसलिए यह भाषा खतरे से आशंकित हुई और इसे सामान्य बोलचाल में संकटग्रस्त भाषा के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
वास्तविकता: पोवारी भाषा गंभीर रुप से संकटग्रस्त नहीं है। इस वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए २०१८ में पोवारी भाषिक क्रांति की शुरुआत की गई । प्रभावशाली प्रयासों के कारण यह क्रांति आश्चर्यजनक गति से सफल हुई। वर्तमान में पोवारी भाषा के उत्कर्ष के लिए सामूहिक प्रयास शुरु है। अतः अब पोवारी को संकटग्रस्त भाषा कहना पूर्णतः संयुक्तिक नहीं है।
२.उदयोन्मुख भाषा का अभिप्राय
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जो भाषा अविकसित है लेकिन उसके विकास के लिए बहुआयामी प्रयास शुरु हो और वह भाषा विकास की ओर अग्रसर हो तो,ऐसी भाषा को उदयोन्मुख भाषा के नाम से संबोधित करना ही संयुक्तिक है। वर्तमान में पोवारी भाषा की स्थिति निम्नलिखित है –
२-१. विपुल मात्रा में साहित्य सर्जन
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२०१७ के पूर्व मुश्किल से चार -पांच व्यक्ति पोवारी भाषा मे लिखते थे एवं पोवारी में प्रकाशित पुस्तकों की अधिकतम संख्या पंधरा थी। वर्तमान में लगभग सौ पोवारी साहित्यिक है एवं पोवारी में प्रकाशित पुस्तकों की संख्या लगभग सौ है।
पहले पोवारी साहित्य सम्मेलन का प्रचलन नहीं था। लेकिन अब प्रतिवर्ष पोवारी साहित्य सम्मेलन का आयोजन होता है तथा पोवारी साहित्य सर्जन के लिए अनेक साहित्यिक दिन – रात अथक परिश्रम कर रहें है।
२-२. अधिवेशन में पोवारी का प्रयोग
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२०१७ के पूर्व पोवार समाज के अधिवेशन की पत्रिका हिन्दी में हुआ करती थी। सम्मेलन का संचालन एवं अतिथियों के भाषण हिन्दी में हुआ करते थे। लेकिन २०१८ से अधिवेशन की पत्रिका पोवारी में छपाई जाती है एवं अतिथियों के भाषण भी पोवारी में हुआ करते हैं। सामाजिक अधिवेशन हो या पोवारी साहित्य सम्मेलन हो, उसमें मातृभाषा पोवारी के गीत – संगीत को प्राधान्य दिया जाता है। मातृभाषा पोवारी में बातचीत करने में पोवार समुदाय के सब लोग अब गौरव अनुभव करते हैं।
२-३. कलाकारों द्वारा प्रचार
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पोवारी भाषा का प्रचार २०१७ के पहले भी कुछ कलाकारों द्वारा अपने आर्केस्ट्रा के माध्यम से किया जाता था। लेकिन २०२८ से पोवारी कलाकारों की संख्या में बाढ़ आ गयी है। आये दिन पोवारी के नये -नये गीतों के व्हिडिओ का प्रकाशन हो रहा है। पोवारी काॅमेडी व्हिडिओ के माध्यम से भी पोवारी भाषा का बड़े पैमाने पर प्रचार -प्रसार कार्य शुरु है।
२-४.हिन्दी- मराठी साहित्यिक मंचों का सहयोग
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पोवारी भाषिक क्रांति को हिन्दी एवं मराठी साहित्यिक मंच भरपूर सहयोग कर रहे हैं। अतः इन साहित्यिक मंचों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पोवारी साहित्यिक भी सहभागी हो रहें हैं और पोवारी साहित्य के माध्यम से पोवारी भाषा का भरपूर प्रचार -प्रसार कर रहें है।
३. चुनौतियां,अवसर एवं भवितव्य
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पोवार समुदाय के लोग महाराष्ट्र के गोंदिया एवं भंडारा तथा मध्यप्रदेश के बालाघाट एवं सिवनी इन चार जिलों में बड़ी संख्या में है। वर्तमान में पोवार जनसमुदाय की जनसंख्या लगभग १५ लाख है। इस समुदाय की कुल आबादी के ७५ प्रतिशत लोग गांवों में ही बसते हैं और इनका जीवन मुख्यतः कृषि पर निर्भर है। गांवों में बसने वाले लोगों के बोलचाल में अभी भी पोवारी भाषा है। कार्यक्रमों में वें पोवारी आर्केस्ट्रा को ही प्राधान्य देते है। नगरों में रहनेवाले पोवार समाज का प्रबुद्ध वर्ग भी अब पोवारी भाषा के उत्कर्ष के लिए बढ़ -चढ़ कर सामने आ गया है और साहित्य सर्जन में गौरव अनुभव कर रहा है।अतः पोवारी के उत्कर्ष के भरपूर अवसर( Opportunities) उपलब्ध है।
पोवार समुदाय की नयी पीढ़ी अब शिक्षा के क्षेत्र में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ रही है। लेकिन इस नई पीढ़ी के बीच चलन से मातृभाषा पोवारी विस्थापित हो रही है। अतः पोवारी भाषा के संवर्धन एवं उत्कर्ष में सबसे बड़ी चुनौती (Challenge ) यह हैं कि हमारी नयी पीढ़ी के बीच चलन में पोवारी भाषा कैसे पुनर्स्थापित होगी ?
हमारे कुछ कर्णधारों द्वारा आज़ादी के पश्चात अनेक वर्षों तक मातृभाषा के प्रति तिरस्कार के भाव उत्पन्न किये। इसलिए मातृभाषा पोवारी यह नयी पीढ़ी के बीच चलन से बाहर होने की मुख्य चुनौती हमारे सम्मुख उपस्थित है। लेकिन प्रस्तुत लेखक का स्पष्ट अभिमत है कि “अब हमारी युवाशक्ति पोवारी बोलने में स्वाभिमान का एहसास कर रही है और भरपूर साहित्य का सर्जन कर रही है तो ऐसी स्थिति में हमें हताश अथवा निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम जिस दिन सभी विधाओं में दर्जेदार पोवारी साहित्य का सर्जन करते हुए पोवारी भाषा एवं साहित्य को प्रतिष्ठापूर्ण स्थान प्राप्त कराने में सफलता हासिल कर लेंगे,उस दिन से हमारी नई पीढ़ी भी मातृभाषा पोवारी के प्रति आकर्षित होगी पोवारी भाषा उसके बीच चलन में सहजता से पुनर्स्थापित हो जायेगी।”
मातृभाषा पोवारी (Powari )इस ऐतिहासिक नाम के स्थान पर पवारी ( Pawari ) यह गलत नाम प्रतिस्थापित करने का गलत कार्य समाज के कुछ तथाकथित मातब्बर व्यक्ति कर रहे है । लेकिन अब मातृभाषा का उसके मूल ऐतिहासिक नाम के साथ संरक्षण -संवर्धन के लिए अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ अच्छा कार्य कर रहा है। तात्पर्य, पोवारी भाषा का भविष्य ( The future) नि: संदेह उज्ज्वल है।

-ओ सी पटले
समग्र पोवारी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
गुरु १५/२/२०२४.
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