पोवारी भाषा अब केवल संकटग्रस्त नहीं बल्कि एक उभरती हुयी भाषा ….!

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पोवारी भाषा अब केवल संकटग्रस्त नहीं बल्कि एक उभरती हुयी भाषा ….!
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♦️ आधुनिक युग में विश्व की अनेक भाषाएं संकटग्रस्त है। वैनगंगा अंचल में बसे हुए पोवार समुदाय की भाषा भी संकटग्रस्त है।
♦️२०१८ की पोवारी भाषिक क्रांति सफल होने के पश्चात हमारी युवाशक्ति ने पोवारी भाषा पर छाये हुए संकट के बादल हटाने के लिए कदम आगे बढ़ाया है ।
♦️ युवाशक्ति द्वारा विपुल पैमाने पर साहित्य सर्जन किया जा रहा है एवं प्रबुद्ध वर्ग के बीच पोवारी भाषा का प्रचलन भी बढ़ा है। इस परिवर्तित परिस्थिति में पोवारी भाषा को संकटग्रस्त भाषा के नाम से संबोधित करने का कारण, उसकी वर्तमान स्थिति, उसके विकास के मार्ग की चुनौतियां एवं पोवारी भाषा के भवितव्य को परिभाषित करना यह इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
१.यूनेस्को की सूची
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अंतर्राष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) का ही एक महत्वपूर्ण अंग है जिसे संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के नाम से जाना जाता है। यह संगठन विश्व भर की स्थानीय भाषाओं के संरक्षण – संवर्धन के लिए कार्य करता है। इसने संकटग्रस्त भाषाओं के चार स्तर परिभाषित किए है।ये स्तर निम्नलिखित है –
१. भेद्य ( खतरे से आशंकित)२.निश्चत रुप से खतरे में ३.गंभीर रुप से खतरे में ४.अत्यधिक गंभीर रुप से खतरे में
युनेस्को द्वारा ईस्वी सन् २०१० में प्रकाशित संकटग्रस्त भाषाओं के एटलस में विश्व की कुल २,४७३भाषाओं का समावेश है।
२. गृह मंत्रालय की रिपोर्ट
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भारत सरकार के गृहमंत्रालय के तहत जनगणना निदेशालय की रिपोर्ट के अनुसार
भारत की ४२ बोली-भाषाएं संकट में है । ये ऐसी बोली -भाषाएं है जिन्हें बोलने वालों की संख्या केवल कुछ हजार तक सीमित है।
इस सूची में भारत कि विशेषकर गोंडी, संथाली, भेली, मिजो ,गारो खासी आदि अनेक जनजातीय भाषाएं अभिलेखित की गयी है।
३. संकटग्रस्त भाषा का अभिप्राय
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यदि कोई भाषा नयी पीढ़ी के बीच चलन से बाहर होती प्रतीत हो तो उसे संकटग्रस्त भाषा के नाम से संबोधित किया जाता है। आज़ादी के पश्चात पोवारी भाषा बुद्धिजीवी वर्ग एवं नयी पीढ़ी के बीच बोलचाल से बाहर होती गयी। इसलिए यह भाषा खतरे से आशंकित हुई और इसे सामान्य बोलचाल में संकटग्रस्त भाषा के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
४.उदयोन्मुख भाषा का अभिप्राय
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जो भाषा खतरे से आशंकित एवं अविकसित हो लेकिन उसे चलन में लाने के लिए तथा उसके विकास के लिए बहुआयामी प्रयास शुरु हो और उसका विकास होना प्रारम्भ हो गया हो तो ,ऐसी भाषा को उदयोन्मुख भाषा ( उभरती हुयी भाषा/Emerging Language) के नाम से संबोधित किया जा सकता है।
पोवारी भाषा यह गोंडी, संथाली, भेली आदि अनेक जनजातीय भाषाओं के समान गंभीर रुप से संकटग्रस्त नहीं है। यह भाषा खतरे से आशंकित है। इस आशंका के कारण Precautions is Better than Cure इस नीति का अनुसरण करते हुए २०१८ में पोवारी भाषिक क्रांति की शुरुआत की गई । प्रभावशाली प्रयासों के कारण यह क्रांति आश्चर्यजनक गति से सफल हुई। वर्तमान में पोवारी भाषा के उत्कर्ष के लिए सामूहिक प्रयास शुरु है। अतः अब पोवारी को एक उभरती हुयी भाषा कहना पूर्णतः संयुक्तिक है। वर्तमान में पोवारी भाषा की स्थिति निम्नलिखित है –
४-१. विपुल मात्रा में साहित्य सर्जन
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२०१७ के पूर्व मुश्किल से चार -पांच व्यक्ति पोवारी भाषा मे लिखते थे एवं पोवारी में प्रकाशित पुस्तकों की अधिकतम संख्या पंधरा थी। वर्तमान में लगभग सौ पोवारी साहित्यिक है एवं पोवारी में प्रकाशित पुस्तकों की संख्या लगभग सौ है।
पहले पोवारी साहित्य सम्मेलन का प्रचलन नहीं था। लेकिन अब प्रतिवर्ष पोवारी साहित्य सम्मेलन का आयोजन होता है तथा पोवारी साहित्य सर्जन के लिए अनेक साहित्यिक दिन – रात अथक परिश्रम कर रहें है।
४-२. कलाकारों द्वारा प्रचार
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२०१७ के पहले भी कुछ कलाकारों द्वारा पोवारी भाषा का प्रचार- प्रसार मनोरंजन की दृष्टि से अपने दो -तीन आर्केस्ट्रा के माध्यम से किया जाता था। लेकिन २०१८ से मातृभाषा पोवारी का उत्थान करने के उद्देश्य से पोवारी कलाकारों एवं आर्केस्ट्रा की संख्या में बाढ़ आ गयी है। अनेक नये पोवारी आर्केस्ट्रा अस्तित्व में आये है।आये दिन पोवारी के नये -नये गीतों के व्हिडिओ का प्रकाशन हो रहा है। पोवारी काॅमेडी व्हिडिओ के माध्यम से भी पोवारी भाषा का बड़े पैमाने पर प्रचार -प्रसार कार्य शुरु हुआ है।
४-३.हिन्दी- मराठी साहित्यिक मंचों से प्रचार
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पोवारी भाषिक क्रांति को हिन्दी एवं मराठी साहित्यिक मंच भरपूर सहयोग कर रहे हैं। अतः इन साहित्यिक मंचों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पोवारी साहित्यिक भी सहभागी हो रहें हैं और पोवारी साहित्य के माध्यम से पोवारी भाषा का भरपूर प्रचार -प्रसार कर रहें है।
४-४. सामाजिक कार्यक्रमों में पोवारी का प्रयोग
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२०१७ के पूर्व पोवार समाज के अधिवेशन की पत्रिका हिन्दी में हुआ करती थी। सम्मेलन का संचालन एवं अतिथियों के भाषण हिन्दी में हुआ करते थे। लेकिन २०१८ से अधिवेशन की पत्रिका पोवारी में छपाई जाती है एवं अतिथियों के भाषण भी पोवारी में हुआ करते हैं। सामाजिक अधिवेशन हो या पोवारी साहित्य सम्मेलन हो, उसमें मातृभाषा पोवारी के गीत – संगीत को अग्रक्रम दिया जाता है। मातृभाषा पोवारी में बातचीत करने में पोवार समुदाय के सब लोग अब गौरव अनुभव करते हैं
५. पोवारी के सम्मुख मुख्य चुनौतियां
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पोवार समुदाय के लोग महाराष्ट्र के गोंदिया एवं भंडारा तथा मध्यप्रदेश के बालाघाट एवं सिवनी इन चार जिलों में बड़ी संख्या में है। वर्तमान में पोवार जनसमुदाय की जनसंख्या लगभग १५ लाख है। पोवारी भाषा के विकास का कार्य इन दिनों बहुत जोरों से शुरू है। फिर भी वर्तमान में मातृभाषा पोवारी के विकास पथ में निम्नलिखित मुख्य चुनौतियां है-
५-१. नगरों में पोवार समुदाय के जो लोग प्रोफेसर,डॉक्टर, वकील, इंजीनियर अधिकारी, उद्यमी लोग है, उनके घरों में अब हिंदी बोली जाती है। इन सुशिक्षित व्यक्तियों के घरों में आपसी बातचीत के बीच मातृभाषा कैसी पुनर्स्थापित होगी? यह उभरती हुयी पोवारी भाषा के सम्मुख प्रथम बड़ी चुनौती है।
५-२.पोवार समुदाय की नयी पीढ़ी शिक्षा के क्षेत्र में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ रही है। लेकिन इस नई पीढ़ी के बीच चलन से मातृभाषा पोवारी विस्थापित हो रही है।
यह उभरती हुई पोवारी के मार्ग की दूसरी बड़ी चुनौती है।
५-३. हमारे समाज के कुछ तथाकथित कर्णधार मातृभाषा पोवारी (Powari )इस ऐतिहासिक नाम के स्थान पर पवारी ( Pawari ) यह गलत नाम प्रतिस्थापित करने का गलत कार्य कर रहे है । यह भी मातृभाषा के विकास में एक बड़ी चुनौती है।
६ . हमारे गांव: मातृभाषा के ‌विशेष संरक्षक
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पोवार समुदाय की आबादी लगभग १५ लाख है। इस कुल आबादी के लगभग ७० प्रतिशत लोग गांवों में ही बसते हैं और इनका जीवन मुख्यतः कृषि पर निर्भर है। गांवों में बसने वाले लोगों के बोलचाल में अभी भी पोवारी भाषा है। कार्यक्रमों में वें पोवारी आर्केस्ट्रा को ही अग्रक्रम देते है। अतः जो लोग मातृभाषा पोवारी के संरक्षण -संवर्धन का कार्य दिन रात कर रहे है, उनके लिए हमारे गांव ही मुख्य आशास्थान एवं उर्जा केंद्र के समान है।
७.२०१८ के पश्चात परिवर्तित परिस्थिति
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यह बात सही है कि पोवारी भाषा के विकास पथ पर अनेक चुनौतियां हैं। लेकिन पोवारी भाषिक क्रांति के परिणामस्वरूप नगरों में रहनेवाले पोवार समाज का प्रबुद्ध वर्ग भी अब पोवारी भाषा के उत्कर्ष के लिए बढ़ -चढ़ कर सामने आ गया है और साहित्य सर्जन में गौरव अनुभव कर रहा है। अतः अब पोवारी के विकास की संभावना (Possibilities) काफी बढ़ गयी है।
प्रस्तुत लेखक के अनुसार “अब हमारी नागरी युवाशक्ति पोवारी बोलने में स्वाभिमान का एहसास कर रही है, भरपूर साहित्य का सर्जन कर रही है और हमारे कलाकार भी गीतों के माध्यम से पोवारी को जिस गति से प्रचारित कर रहें है उसे देखते हुए हमें हताश अथवा निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम जिस दिन सभी विधाओं में दर्जेदार पोवारी साहित्य का सर्जन करने में एवं अपनी कला का शानदार प्रदर्शन करने मे कामयाब हो जायेंगे उस दिन से हमारी नई पीढ़ी और सुशिक्षित लोग भी मातृभाषा पोवारी के प्रति आकर्षित होंगे और पोवारी भाषा उन सबके बीच चलन में सहजता से पुनर्स्थापित हो जायेगी।”
समाज के कुछ तथाकथित कर्णधार मातृभाषा के सही नाम के स्थान पर गलत नाम प्रतिस्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन अब मूल ऐतिहासिक नाम के साथ पोवारी भाषा के संरक्षण -संवर्धन के लिए पोवार समाज में अनेक प्रतिभाशाली साहित्यिक , कलाकार उभरकर सामने आये है। उसी प्रकार अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार ( पंवार)महासंघ भी मातृभाषा पोवारी का सही नाम के साथ उत्कर्ष करने के लिए प्रयत्नशील है। इसकारण अब हम मातृभाषा पोवारी के विकास के सम्मुख आनेवाली समस्त चुनौतियों का पूरे सामर्थ्य के साथ मुकाबला करेंगे और पोवारी भाषा का तेज गति से विकास करने में पूरी तरह कामयाब भी होंगे।

-ओ सी पटले
गुरु १५/२/२०२४.
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