पोवार समाज एवं संस्कृति की आत्मा हैं मातृभाषा पोवारी!
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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♦️भारत वर्ष में अनेक भाषाएं बोली जाती है। सभी भाषा बोलने वालों के बीच संबंधों में स्नेह, आत्मीयता एवं घनिष्ठता भी पायी जाती है। यही बात सनातन हिन्दू संस्कृति को विशेष बना देती है। पोवारी भाषा भी एक भारतीय भाषा है।
♦️ हिन्दी भाषा यह समस्त भारतवासियों के बीच एक संपर्क भाषा है। उसी प्रकार मातृभाषा पोवारी यह पोवार समुदाय में आपसी संवाद की भाषा है। पोवारी भाषा पोवार समाज को एक अदृश्य सूत्र में बांध के रखती है। अतः जिस प्रकार हिन्दी भारत की आत्मा है, उसीप्रकार पोवारी यह पोवार समाज की आत्मा है।
♦️ पोवारी भाषा में हमारे पूर्वजों द्वारा सदियों से अर्जित किया गया ज्ञान और अनुभव समाहित है। इसी भाषा में हमारी संस्कृति, संस्कार, जीवन-मूल्य, धर्म एवं जीवन के आदर्श ध्वनित होते है। पोवारी भाषा ही पोवारी संस्कृति की वाहक है।पोवारी के माध्यम से ही ये सब तत्त्व पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी को हस्तांतरित होते है। इसलिए पोवारी भाषा यह पोवारी संस्कृति की आत्मा है।
१.मातृभाषा पोवारी की उपेक्षा
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भारत में १९ वी सदी को सुधारों की सदी के नाम से संबोधित किया जाता है।इस सदी में राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद विद्यासागर समान अनेक समाज सुधारक हुए। भारत में हुए समाज सुधार आंदोलन से पोवार समाज भी प्रभावित हुआ। पोवार समाज के प्रगत लोगों ने समाज सुधार के उद्देश्य से १९०५ में अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार महासभा की स्थापना की गयी।
महासभा की स्थापना के समय से ही पोवार समाज के कर्णधार मातृभाषा पोवारी यह हमारे समाज एवं संस्कृति की आत्मा है, इस बात को समझ नहीं पाये । परिणामस्वरुप वें समाज एवं संस्कृति सुधार की सब बातें मातृभाषा पोवारी को दरकिनार कर हिन्दी में करने लगे।
भारत की आज़ादी के पश्चात लगभग सत्तर वर्षों तक (१९४७-२०१७) हमारे समाज के कुछ तथाकथित कर्णधारों ने मातृभाषा पोवारी तथा पोवार- पोवारी इन नामों के प्रति तिरस्कार के बीज बोये। परिणामस्वरुप पोवारी भाषा हमारी सुशिक्षित नयी पीढ़ी के बीच चलन से बाहर होने लगी और पोवारी भाषा संकटग्रस्त भाषा की श्रेणी में आ गयी।
२. व्यक्तिगत भाषिक चेतना
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मातृभाषा पोवारी में पोवार समाज की आत्मा बसती है एवं पोवार समाज का हर व्यक्ति मातृभाषा को दिल से चाहता भी है। दो – चार व्यक्ति मातृभाषा में लिखते भी रहे और मातृभाषा के संरक्षण का मुद्दा बार-बार उठाते रहे । लेकिन हमारे सामाजिक संगठनों ने मातृभाषा का महत्व न जानने के कारण केवल समाज एवं संस्कृति सुधार पर कार्य करते रहें । ये सब करते हुए वें समाज एवं संस्कृति की आत्मा स्वरुप मातृभाषा की उपेक्षा करते रहे। तात्पर्य, हमारे समाज में भाषिक चेतना केवल व्यक्तिगत स्तर पर दो – चार व्यक्तियों तक सीमित थी। व्यक्तिगत भाषिक चेतना उभरकर कभी भी सार्वजनिक भाषिक चेतना में परिवर्तित नहीं हो पायी।
३.मातृभाषा की उपेक्षा के लिए कौन जिम्मेदार?
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पोवार समाज की आम जनता मुख्यतः गांवों में बसती है और खेती किसानी जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन है। गांवों में जो किसान भाई है वें मातृभाषा पोवारी एवं पोवारी संस्कृति से जुड़े हुए है। उन सबका मातृभाषा से बेहद लगाव है। लेकिन उन्हें अपने काम-धंधे एवं घर गृहस्थी से फूरसत नहीं मिल पाती तथा वे उच्चशिक्षाविभूषित भी नहीं हैं। अतः उनसे मातृभाषा के विकास में अग्रिम भूमिका लेने की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
मातृभाषा का विकास करना यह सामाजिक संगठनों का एवं समाज के प्रबुद्ध वर्ग का महत्वपूर्ण दायित्व है। लेकिन हमारे सामाजिक संगठनों ने मातृभाषा की उपेक्षा की एवं प्रबुद्ध वर्ग ने अपने सामाजिक दायित्व से पीठ फेर लिया था। इसलिये मातृभाषा पोवारी संकटग्रस्त हो गयी।
४. मातृभाषा के महत्व का तीव्र एहसास
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मातृभाषा की उपेक्षा एवं उसके अस्तित्व पर मंडराते हुए संकट के बादल देखकर प्रस्तुत लेखक को परिस्थिति की गंभीरता का तीव्र एहसास हुआ। उसने २०१८ में पोवारी भाषिक क्रांति अभियान तथा पोवार समाज विश्व आमूलाग्र क्रांति अभियान नामक दो अभियान प्रारंभ किये । ५. भाषिक क्रांति अभियान की भूमिका ————————————————
भाषिक क्रांति अभियान के अंतर्गत निम्नलिखित कार्य किए गये-
५-१.विविध स्त्रोतों से मातृभाषा के महत्व का गहण अध्ययन किया गया।
५-२. मातृभाषा के महत्व के सभी पहलू अवगत किए गये तथा मातृभाषा के महत्व प्रति जनजागृति की गयी।
५-३. युवाशक्ति को मातृभाषा के विकास के लाभ एवं उपाय अवगत कराये गये।
५-४. मातृभाषा पोवारी के प्रति युवाशक्ति में प्रेम , अस्मिता एवं स्वाभिमान जागृत किया गया ।
५-५. पोवारी साहित्य सर्जन के लिए युवाशक्ति को प्रोत्साहित किया गया।
५-६.सामाजिक संगठनों को मातृभाषा के प्रति उनके दायित्व का बोध कराया गया।
५-७. समाज के प्रबुद्ध वर्ग को मातृभाषा के विकास के प्रति उसके दायित्व का बोध कराया गया।
५-८. राष्ट्रीय क्षत्रिय पवार महासभा ने मातृभाषा विरोधी नीति अपनाई थी। इसलिए समाज के प्रबुद्ध वर्ग को पोवार समाज एवं मातृभाषा पोवारी के संरक्षण – संवर्धन हेतु एक नये राष्ट्रीय संगठन की स्थापना करने के लिए प्रेरित किया गया।
५-९. प्रस्तुत लेखक ने पोवारी के विकास के लिए निरंतर संशोधन किया एवं युवाओं को संशोधन के लिए प्रोत्साहित किया।
५-१०. प्रस्तुत लेखक द्वारा मातृभाषा के विकास कार्य को एक जीवन लक्ष्य के रुप में अपनाकर उसके लिए दिन- रात परिश्रम किया गया। विगत ६ वर्षों यह परिश्रम निरंतर किया जा रहा है।
६. भाषिक क्रांति की निष्पत्ति
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पोवार समाज की युवाशक्ति एवं प्रबुद्ध वर्ग के अनुकूल प्रतिसाद के कारण २०१८ की भाषिक क्रांति बहुत तेज रफ्तार से सफ़ल हुई। इस क्रांति के महत्वपूर्ण परिणाम निम्नलिखित है-
६-१. समाज में व्याप्त व्यक्तिगत भाषिक चेतना यह सार्वजनिक भाषिक चेतना में परिवर्तित हुई।
६-२. मातृभाषा पोवारी के उत्थान के लिए सामूहिक प्रयास प्रारम्भ हुये। अकेले व्यक्ति द्वारा प्रारंभ की गयी भाषिक क्रांति को जनांदोलन का स्वरूप प्राप्त हुआ।
६-३. पोवार समाज की युवाशक्ति में मातृभाषा के संरक्षण -संवर्धन के लिए उल्लास की एक व्यापक आंधी आयी।
६-४. मातृभाषा पोवारी एवं ३६ कुल पोवार समाज के हितों के संरक्षण -संवर्धन के लिए ९ जून २०२०को अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार ) महासंघ की स्थापना हुई।
६-५. प्रबुद्ध वर्ग को मातृभाषा पोवारी के संरक्षण -संवर्धन की जिम्मेदारी अपनी हैं इस सच्चाई का बोध हुआ। इसकारण समाज में लगभग १०० पोवारी साहित्यिकों का उदय हुआ और बड़े पैमाने पर पोवारी साहित्य की किताबें प्रकाशित होना प्रारम्भ हुआ।
७. उपसंहार
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मातृभाषा पोवारी की उपेक्षा के लिए मुख्यतः सामाजिक संगठन एवं समाज का उच्चशिक्षाविभूषित प्रबुद्ध वर्ग जिम्मेदार था। पोवारी भाषिक क्रांति के कारण शायद सबने अपनी ग़लती का एहसास मन ही मन में किया। परिणामस्वरुप दोनों तत्व मातृभाषा पोवारी के उत्कर्ष के लिए दृढ़ संकल्प के साथ आगे आये । अतः संकटग्रस्त पोवारी भाषा ने अब एक उभरती हुई भाषा ( An Emerging Language) का स्वरूप धारण कर लिया है।
वर्तमान भारत में भोजपुरी को अत्यंत तेज गति से विकास करने वाली भाषा के रुप में जाना जाता है। हम भी काफी तेज रफ्तार से मातृभाषा पोवारी के विकास के लिए प्रयत्नशील है।
-ओ सी पटले
पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
शनि.१७/२/२०२४.
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