पोवार समाज की संस्कृति और सभ्यता
(Culture and Civilization of the Powar Community )
–इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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१. क्षत्रिय पोवारों की बसाहट
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पोवार समाज वैनगंगा अंचल में बसा हुआ है। यह समाज राजस्थान – मालवा से स्थानांतरित होकर बख्त-बुलंद के शासनकाल में लगभग १७००के आसपास वैनगंंगा अंचल में आकर बसा है। इस समाज की घनी आबादी मध्यप्रदेश के बालाघाट,सिवनी तथा महाराष्ट्र के भंडारा एवं गोंदिया जिले में पायी जाती है।
पोवार जाति यह राजपूत समाज से संबंधित जाति है। मध्ययुग में ( ९ वी से १८ सदी) राजा महाराजाओं के बीच में युद्ध का सिलसिला जारी रहने के कारण एवं पोवार समाज क्षत्रिय होने के कारण युद्ध उनके जीवन का अनिवार्य हिस्सा था।
पोवार समुदाय के लोग जब राजस्थान -मालवा में थे तब उनमें से कई लोग सेनापति,सरदार, किलेदार आदि पदों पर नियुक्त थे, इसका उल्लेख बाबूलाल भाट की पोथियों में उपलब्ध है। वैनगंंगा अंचल में आने के पश्चात पोवार समुदाय के कुछ लोग मालगुजार एवं जमींदार के रुप में कार्य किए। इनके बाड़ों में भाला, तलवार, बंदूक,कटार,गुप्ती, फरसा आदि अस्त्र- शस्त्र
उपलब्ध थे, जिनकी दशहरा के दिन पूजा की जाती थी। ये अस्त्र-शस्त्र ही स्वयं पोवार समाज के लोग क्षत्रिय है तथा राजतंत्र के शासनकाल में युद्ध उनके जीवन का अनिवार्य हिस्सा था इसकी साक्ष्य देते है।
२.छत्तीस कुल का सैनिक संघ
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पोवार समुदाय में बिसेन, पटले, तुरकर आदि ३६ कुल है। इसलिए पोवार समुदाय को ३६ कुलीय पोवार के नाम से जाता है। लेकिन अब इस समुदाय में केवल इक्कतीस कुल ही पाये जाते है।
पोवार समुदाय के विभिन्न कुल परस्पर दुसरे कुल में विवाह संबंध प्रस्थापित करते है। पोवार समुदाय मुख्यतः ग्रामीण अंचल मे बसा हुआ है तथा इस समाज का कृषि यह मुख्य व्यवसाय है। अच्छे मेहनती किसान के रुप में पोवार समाज की ख्याति रही है।
३. पोवारों की सनातनी संस्कृति
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पोवार समुदाय के लोग सनातनी हिन्दू संस्कृति के उपासक है। इस समुदाय के प्रथम आराध्य प्रभु श्रीराम एवं भगवान शिव – शंकर यह कुलदेवता है। नारायण देव की पूजा का भी विशेष स्थान है।मां दुर्गा भवानी कुलदेवी हैं। पोवारों के घरों में मिट्टी की बनी हुई “चौरी” हुआ करती है। यहां आषाढ़ी पूर्णिमा , जीवती, माघ की नवमी, माहे, पांड ऐसे विशेष त्यौहारों के अवसर पर कुल देवताओं की पूजा की जाती है।
४.पोवार समुदाय के विभिन्न वर्ग
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मराठा एवं ब्रिटिश काल में कृषि
इस समाज का एकमात्र व्यवसाय था। इस समाज के कुछ लोग मालगुजार एवं जमींदार थे। कुछ लोग महाजन कहलाते थे।इस समाज में बिना खेती वाले व्यक्तियों को ठलवा कहा जाता था, जिनका प्रमाण नहीं के बराबर था।
५.विवाह संस्कार
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पोवार समाज के विवाह गीतों में पोवारी संस्कृति ध्ननित होती है। विवाह में वर – वधू को राम एवं सीता के रुप में देखा जाता है उन्हें पूजनीय माना जाता है। विवाह में अनेक रस्में हुआ करती है। हर रस्म का अलग-अलग गीत होता है। इन विवाह गीतों में राम, सीता,लक्ष्मण, राजा दशरथ,राजा जनक आदि नाम गूंथे हुए है। विवाह गीत पोवारी संस्कृति की श्रेष्ठता की साक्षी देते हैं। ६.पोवारों के मकान
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पोवार समुदाय के किसान और मालगुजारों के मकान मिट्टी के बने होते थे।
मकान बहुत मजबूत हुआ करते थे। मकानों में लकड़ी का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया जाता था। महाजन और मालगुजारों के मकान दुमंजिला हुआ करते थे। जमींदार लोगों के मकान अक्सर तीन मंजिला हुआ करते थे।
मालगुजारों के दो मंजिला बड़े मकानों को बाड़ा कहा जाता था। जमींदारों के तीन मंजिला बड़े मकानों को हवेली के नाम से संबोधित किया जाता था।
मालगुजार एवं जमींदार के बाड़े उत्तराभिमुख अथवा पूर्वाभिमुख हुआ करते थे। बाड़े के सामने के हिस्से में गोधन के लिए स्वतंत्र कोठे हुआ करते थे एवं पीछे के हिस्से में धान रखने के लिए कन-घर हुआ बाड़े में माज-घर, देवघर , रसोई घर, स्नान घर, दहीं – दूध का कमरा, नाश्ता- का कमरा आदि. सब अलग-अलग हुआ करते थे। बाड़े में माज-घर के सामने दो एवं पीछे दो छपरी हुआ करती थी।
पोवार( समाज की अपनी विशिष्ट पहचान और संस्कृति है। सिवनी जिला गज़ेटीयर (१९०७ )में पोवारों के घरों के विषय में उनकी विशिष्ट पोवारी पहचान का उल्लेख मिलता है। बड़ा घर- आंगन, घर में पाटन,पेट खोली एवं देवघर, घर के सामने डहेल (कोठा), घर के पीछे बाड़ी यह पोवारों के घरों की विशेषता रही है।
७. सुख- समृद्धि
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मालगुजार, जमीनदार, महाजन और बड़े किसानों के जीवन में सुख- समृद्धि थी। सभी घरों में बैलजोड़ी हुआ करती थी। मालगुजार एवं जमींदारों के बाड़े में बड़ी तादाद में गाय , भैंस , बैलजोड़ी, बोदा जोड़ी हुआ करती थी। मालगुजार लोग शौक से बटेश्वर घोड़े की जोड़ी पालते थे। जमींदार बाड़े में सवारी के लिए बहुधा एक हाथी पाला जाता था। छोटे किसान और जिनके पास खेती नहीं थी वें मालगुजार, महाजन या बडे किसानों की खेती में काम करते थे।
८. महत्वपूर्ण सांस्कृतिक मूल्य
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पोवार समाज में भांजा,भांजी एवं कन्याओं को विशेष महत्व दिया जाता है। भांजा – भांजी के तथा बहन के चरणस्पर्श की प्रथा है। समाज में पुत्र तो माता-पिता के चरणस्पर्श कर सकता है, लेकिन कन्या को चरणस्पर्श करने नहीं दिया जाता।
पोवार समुदाय दहेज प्रथा से पीड़ित नहीं है। इस समुदाय में पहले भी दहेज प्रथा नहीं थी और अब भी नहीं है। नये जमाने में एखाद अपवाद पाया जाता है।
९. शिक्षा-दीक्षा
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मराठाकालीन एवं ब्रिटिशकालीन पोवार समुदाय की शिक्षा में विशेष दिलचस्पी नहीं थी। बहुत कम लोग चौथी तक की शिक्षा ग्रहण करते थे। लेकिन उन्नीसवीं सदी यह भारत में सुधारों की सदी मानी जाती है। इस सुधार युग का परिणाम पोवार समुदाय पर भी हुआ। १९०५ में पोवार समुदाय के पूर्वजों ने राष्ट्रीय महासभा की स्थापना की। बड़े नगरों में भी पोवार समाज के संगठन अस्तित्व में आये। इन सामाजिक संगठनों द्वारा पोवार समुदाय में शिक्षा संबंधी खूब जनजागृति की । परिणामस्वरुप सबसे पहले मालगुजार – जमींदार घराने लोग शिक्षा में प्रगति किये। आज़ादी के पश्चात पोवार समुदाय के सभी वर्ग के लोगों ने उल्लेखनीय प्रगति की है। अब अनेक लोग शासकीय नौकरी में भी अच्छे -अच्छे पदों पर कार्य कर रहे हैं।
१०. समाज की नई दिशा
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पोवार समाज ने १९९३ में मध्ययुगीन महान शासक महाराजा भोज को एक आदर्श के रुप में अपनाया है। समाज में राजाभोज जयंती का प्रचलन २००६ से प्रारंभ हुआ है। पोवार बहुल गांवों में राजाभोज की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई है। हर बरस बसंत पंचमी के अवसर पर बड़े शहरों में राजाभोज रैली का आयोजन कर यह समाज अपनी एकता मजबूत करने की दिशा में प्रयासरत है।
११.व्यवस्था दृष्टिकोण ( System Analysis )
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यहां अनायास ही राजनीति शास्त्र का व्यवस्था दृष्टिकोण नामक सिद्धांत याद आ जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी व्यवस्था में चाहें वह परिवार, समुदाय, राजनीतिक दल, सरकार, गांव, नगर, राज्य अथवा राष्ट्र भी क्यों न हो कोई नया तत्व प्रवेश करता है तो उसका अनुकूल अथवा प्रतिकूल परिणाम पुराने तत्वों पर अवश्य पड़ता है।
उपर्युक्त सिद्धांत के आलोक में प्रश्न उठता है कि पोवार समाज ने १९९३ से महाराजा भोज को जिस प्रकार अपने सर आंखों पर रखा है,उस कारण समाज के प्रथम आराध्य प्रभु श्रीराम के प्रति क्या समाज की श्रद्धा, निष्ठा प्रभावित हुए बिना पूर्ववत कायम रह पायेगी ? अतः हमारे समाज की युवाशक्ति ने अवश्य ध्यान रखना होगा कि वें राजा भोज को दिलोजान से अपनायें, लेकिन प्रथम आराध्य प्रभु श्रीराम के प्रति उनके मन में पहले जैसी ही श्रद्धा- निष्ठा-भावभक्ति बनीं रहे एवं सार्वजनिक कार्यक्रमों में अलौकिक “राम” के प्रति पूर्ण निष्ठा कायम रखते हुए उनका भी जय-जयकार करें।
१२. पोवार समाज का भवितव्य
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पोवार समाज की मातृभाषा पोवारी है तथा यह समाज सनातन धर्म का उपासक है। अतः ये पोवार समाज के दो बुनियादी तत्व है और समाज के युवाओं को इन दोनों तत्वों के प्रति लगाव उत्पन्न होने में ही समाज का शाश्वत कल्याण निहित है। इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत लेखक द्वारा २०१८ में समग्र पोवारी चेतना एवं सामूहिक क्रांति अभियान का प्रारंभ किया गया है। इस अभियान के द्वारा पोवार समाज की युवाशक्ति में भाषिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक , साहित्यिक , राजनीतिक चेतना जागृत करने का एवं उसे सही दिशा देने का कार्य काफी तेज़ गति से चल रहा है। २०२० से अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ भी समाज एवं युवाशक्ति की चेतना को सही दिशा देने के उद्देश्य से निरंतर प्रयत्नशील हैं। अतः नि:संदेह समाज की युवाशक्ति सही दिशा में आगे बढ़ेगी तथा पोवार समाज का भविष्य उज्ज्वल है।
–ओ सी पटले
समग्र पोवारी चेतना एवं सामूहिक क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
गुरु.२९/२/२०२४.
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