महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर – क्षत्रिय पोवारों की पहचान, धर्म, संस्कृति, एवं जीवन -दर्शन
– इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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♦️ पोवार समाज क्षत्रिय है। यह समाज १७०० के आसपास मालवा से स्थानांतरित होकर वैनगंंगा अंचल में आकर स्थायी रुप से बस गया है। पोवारी लोकसाहित्य में विवाह गीतों का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है।
♦️ पोवार समाज में हिन्दू पंचांग देखकर शुभ तिथि को विवाह संस्कार संपन्न होता है। इस समाज में विवाह संस्कार के अनेक दस्तूर है और प्रत्येक दस्तूर का एक परंपरागत गीत है।
♦️ पोवारी विवाह गीत सरल लेकिन बहुत भावप्रवण है। जैसे झरने के गिरने की आवाज एवं पक्षियों की कलरव सुंदर और रोम रोम को पुलकित कर देते है , वैसे ही विवाह के पोवारी गीत मन को अद्भुत आनंद का एहसास कराते हैं।
♦️ विवाह गीतों के विशेष संदर्भ में पोवार समाज की पहचान, धर्म,संस्कृति एवं जीवन -दर्शन को परिभाषित करना यह इस लेख का प्रमुख उद्देश्य है।
१.फलदान के दस्तूर का गीत
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फलदान के दस्तूर के समय महिलाएं निम्नलिखित गीत गाती है –
पिताजी को बगीचा मा नारेन को झाड़।
वोन् च का झाड़ का चिरमिरी पान।
उंची उंची पलंग चौरंगी ठाव।।
वहां बस्या पंच भाई ।।
बुलाईन हमरी सीता का बाई ला।।
का देखो का देखो।
हमारी सीता का बाई ला।।
हमारी सीता बाई से सूर्या की ओख।
हमारी सीता बाई से सूर्या की ओख।।
उपर्युक्त गीत से स्पष्ट होता है कि पोवार समाज माता जानकी को नारी चरित्र में सर्वोच्च स्थान देता है। राम और सीता यह सनातन हिन्दू धर्म के प्राणतत्व है। इसलिए पोवारी गीतों में माता जानकी का नाम होना, यह पोवारी संस्कृति और सनातन हिन्दू धर्म के अटूट संबंध को दर्शाता है।
२. बिज़ोरे के दस्तूर का गीत
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पोवार समुदाय में विवाह संस्कार के पूर्व बिज़ोरे का एक दस्तूर होता है। वर पक्ष की ओर से जब वधू के घर बिज़ोरे की बरात आती है तब महिलाएं एक गाना गाया करती है, उसकी कुछ पंक्तियां निम्नलिखित है –
कौन गांव की आई बरात ।
अयोध्या गांव की ओ बरात।
झलमा परदा की आयी गुडुर।
धुरकोरी बसी सेतीन राजकुंवर।
हाथ मा धरी सेतीन ढाल तलवार।।
गांव को आखर पर, आमरी अमराई।
अमराई मा रुकी से राजा को रनवास।
राजा को रनवास खेल् से गोटी।
सीता सारखी सजी आमरी बेटी।।
उपर्युक्त गीत में राजकुंवर, रनिवास, सीता जैसे शब्द गूंथे हुए है। इस शब्द प्रयोग से पोवार क्षत्रिय वंशी होने के संकेत मिलते है। पोवारों के इतिहास के अनुशीलन से भी ज्ञात होता है कि पोवार समुदाय की उत्पत्ति प्राचीन प्रसिद्ध परमार राजवंश से है ।
३. दहेज के समय का गीत
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पोवार समाज में लगून के पश्चात वधू पक्ष के रिश्तेदार अपनी इच्छानुसार वधू को नयी घर-गृहस्थी बसाने के लिए जीवनोपयोगी हर वस्तु दहेज में देते है, इसे आंदन के नाम से संबोधित किया जाता है। आंदन के समय महिलाएं निम्नलिखित गीत गाती है –
रामू पुस् सीता ला
तोरोच का माय न् कायको दायजो देईस।
सीता साग् रामू ला
मोरोच का मायन् सोनो दायजो देईस।
सोनो सारखो दायजो पायेव
सोयरो संतोषी भयेव।।
इसप्रकार इस गाने की श्रृंखला आगे बढ़ते जाती है। इस गीत के माध्यम से वरपक्ष के बरातियों को वधू पक्ष के सभी परिजनों एवं रिश्तेदारों का परिचय कराया जाता है।
उपर्युक्त गीत से पोवार समाज की संस्कृति के कुछ मुख्य पहलू उजागर होते है। प्रथम – पोवार समुदाय में वर एवं वधू को राम एवं सीता के रुप में देखा जाता है एवं उनके आदर्शों को धारण करने की अपेक्षा की जाती है। द्वितीय – विवाह के मधुर गीतों द्वारा रिश्ते में मीठास घोलते हुए नए रिश्तों की शुरुआत की जाती है।
को बहुत अहमियत दी जाती है। तृतीय – विवाह यह केवल वर -वधू का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन है।
४. बरात प्रस्थान के समय का गीत
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दुल्हे की बरात घर से प्रस्थान होने के पश्चात बरात मंदिर के समीप रुकती है। मंदिर में दूल्हे द्वारा देवी-देवताओं के चरणस्पर्श के पश्चात जब दुल्हा रेहके (गुडूर ) में बैठता था, तब मां उसे दूध पिलाने का दस्तूर निभाती थी। उस वक्त महिलाएं एक गीत गाती थी। इस गीत में मां- बेटे के बीच का वार्तालाप है। यह गीत निम्नलिखित है –
देगा बार देगा बार, मोरों दूध को दाम।
आनू का आनू मोरी माय, तोरी जेवन वाढ़$नार।।
देगा बार देगा बार, मोरों दूध को दाम।
आनू का आनू मोरी माय,तोरी पानी सार$नार।।
देगा बार देगा बार, मोरों दूध को दाम।
आनू का आनू मोरी माय,तोरी आंग धोव$नार।।
अज का जासू माय,धीर धर बिहया लका।
पांच गांवला देवू येड़ा,आपलो आनू जनम जोड़ा।।
तोरी का होये माय, हांडी रांध$नार।
अजी की होये माय,पानी सार$नार।।
बाई की होये माय, डोसकी धोव$नार।
फुफाबाई की होये माय,पाय धोव$नार।।
उपर्युक्त गीत से पोवार समुदाय की पारंपरिक संस्कृति संस्कृति अवगत होती है। १९७० के दशक तक पोवारों में परिवार में बुजुर्गों का बहुत सम्मान था। किसी भी घर में बुवा, मवशी आदि रिश्तेदार जब मेहमान के रुप में आते थे,तब बहुएं सबसे पहले उनके पैर धोती थी एवं चरणस्पर्श करती थी।
आधुनिक भौतिकवाद ने पोवारी संस्कृति को प्रभावित किया है। अनेक परिवारों में पहले जैसा बुजूर्गो का मान- सम्मान दिखाई नहीं देता। रिश्ते-नाते की अहमियत को बनाये रखने में ही सुख – शांति निहित होती है।
५.कन्याएं तथा भांजा – भांजी का महत्व
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पोवार समुदाय में कन्याओं एवं भांजा – भांजी को पूजनीय माना जाता है। भांजा भांजी का महत्व दर्शाता हुआ एक पुरातन छंद निम्नलिखित है –
माय- बाप, टुरी- पोटी का।
मामा -मामी, भास्या भासी का।
आवता जाता, लग$ सेत पाय।
वाच उनकी, काशी$ प्रयाग आय।।
६.पोवारी संस्कृति की विशेषता ———————————————-
पोवार समाज की एक स्वतंत्र मातृभाषा है। पोवारों के कुलदेवता भगवान शिवशंकर है। इसलिए इस समाज में शिवरात्रि का विशेष महत्व है। “हर घर में “देवघर”, दशहरे को “मयरी पूजा” , दिवाली में “गेरु और आटे को भिंगाकर चौंक भरना , उसमें गायखुरी चित्रित करना” डोकरी पूजा” एवं “बलिराजा की पूजा” , रक्षाबंधन के दिन पुरुषों ने कमर में करदुड़ा धारण करना, परिवार में भांजा – भांजी के चरणस्पर्श, कन्याओं के चरणस्पर्श आदि कुछ ऐसे तत्व अथवा परंपराएं पायी जाती है, जो सनातन धर्म को मानने वाले अन्य समुदायों में नहीं देखी जाती । इसलिए इस समाज के लोग अपनी संस्कृति को पोवारी संस्कृति के नाम से भी संबोधित करते है।” लेकिन वास्तविकता पोवारी संस्कृति यह हिन्दू धर्मग्रंथों पर ही अधिष्ठित है।
♦️ संस्कृति को धार्मिक एवं दार्शनिक अधिष्ठान
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पोवारी लोकगीतों के आधार पर कहा जा सकता है कि पोवार समाज के पुरातन साहित्य में क्षत्रियता के दर्शन होते है। पोवार समाज की मातृभाषा पोवारी यह बहुत मधुर – मीठी भाषा है। प्रभु श्रीराम एवं माता जानकी को पोवारी संस्कृति में केंद्रीय महत्व का स्थान प्राप्त है। प्रभु श्रीराम ही पोवार समाज के प्रथम आराध्य है।
पोवारी संस्कृति में तुलसी – वृंदावन , धरती माता, गौवंश, नव दुर्गा, नागदेवता आदि. पूजा-अर्चना को महत्वपूर्ण स्थान है। पोवार समाज में पूर्वजों की पूजा और सोलह संस्कारों में से अनेक संस्कारों का प्रचलन है। हिन्दू जीवन दर्शन के कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन , पुनर्जन्म, मोक्ष, वसुधैव कुटुंबकम् इन सिद्धांतों पर भी समाज की निष्ठा है। ये सब हमारे सनातन धर्म के सार्वभौमिक तत्व है । सनातन धर्म की सार्वभौमिकता पोवार समाज को सनातन हिन्दू धर्म के साथ एकसूत्र में बांधती है। तात्पर्य, पोवारी संस्कृति को सनातन संस्कृति एवं हिन्दू जीवन-दर्शन का सशक्त अधिष्ठान प्राप्त है एवं इस समाज की संस्कृति अत्यंत गौरवास्पद है।
-ओ सी पटले
पोवार समाज रिसर्च अकॅडमि, भारतवर्ष.
गुरु.७/३/२०२४.
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