वैनगंगा अंचल के कृषि- उद्योग विकास में पोवार समाज के योगदान का इतिहास
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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♦️पोवार समाज के लोग लगभग 325 साल पहले पश्चिमी मालवा से वैनगंंगा अंचल में आये एवं यहां स्थाई रुप से बस गये।
♦️ गोंड राजवंश, मराठा राजवंश एवं ब्रिटिश काल में इस समाज के लोगो ने वर्तमान गोंदिया, भंडारा, बालाघाट एवं सिवनी जिले के कृषि-उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
♦️पोवार समाज के लोगों का सतपुड़ा पर्वत माला के बीच वैनगंंगा अंचल में कैसे विस्तार हुआ ? उनके व्यक्तित्व की क्या विशेषता है? एवं कृषि-उद्योग के विकास में उनकी क्या भूमिका है? इसका विश्लेषण करना यही इस लेख का प्रमुख उद्देश्य है।
1. तिरोड़ा तुमसर क्षेत्र में बसाहट
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पोवार समुदाय के लोग मालवा से ईस्वी सन् 1700 के आसपास सर्वप्रथम नगरधन आये। इस समय इस क्षेत्र में गोंड राजा बख्त-बुलंद का शासन था।
नगरधन जब आये तब पोवारों की जनसंख्या लगभग 3700 थी। नगरधन आने के पश्चात पोवारों समुदाय के लोगों ने सर्वप्रथम तुमसर – तिरोड़ा क्षेत्र में अपने गांव बसाये और इस क्षेत्र में उन्होंने कृषि-उद्योग को विकसित किया।
2. वैनगंंगा क्षेत्र में विस्तार
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समय के साथ -साथ पोवार समुदाय की जनसंख्या बढ़ी। इसलिए धीरे-धीरे उन्होंने पूरब के कामठा लांजी क्षेत्र में एवं उत्तर के रामपायली , बालाघाट, सिवनी इस क्षेत्र में विस्तार किया। इसप्रकार समकालीन शासन के प्रोत्साहन से पोवार समुदाय के लोगों ने संपूर्ण वैनगंंगा क्षेत्र में कृषि- उद्योग के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
3. कृषि में विशेषज्ञ हैं “पोवार”
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पोवार क्षत्रिय होने के कारण युद्ध उनके जीवन का एक अभिन्न अंग था। लेकिन जीवनयापन के लिए खेती – किसानी उनका मुख्य व्यवसाय था। ब्रिटिश काल में पोवारों ने अंग्रेजों की सेना में भर्ती होने की अपेक्षा अपने को पूरी तरह खेती किसानी की ओर मोड़ दिया।
बालाघाट जिला गज़ेटीयर में पोवारों में निहित कृषि क्षेत्र के गुणों की प्रशंसा की गई है और उन्हें कृषि विशेषज्ञ के रुप में निरुपित किया गया है। गॅजेटीयर में कहा गया है कि- “In the art of rice cultivation, they are the masters. they are skilled tank builders and they excell especially in the mending and levelling of their fields, in neat transplantation and the choice and adaptation of the different varieties of rice to land of varying qualities.”
4.पोवारों के व्यक्तित्व की प्रशंसा
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बालाघाट जिला गज़ेटीयर में पोवारों की बुद्धिमत्ता, साहस एवं स्वभाव का चित्रण करते हुए कहा गया हैं कि – “They are a pleasent, intelligent and plunky race not easily cast down by misfortune and always ready to attempt new interprises in almost any direction.” (संदर्भ – Balaghat District Gazetteer 1907.)
5. पोवारों की मालगुजारी एवं जमींदारी
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गोंड राजवंश ( 1701- 1727) एवं मराठा शासनकाल(1727-1818) में पोवारों ने अपनी अनेक बस्तियां वैनगंगा अंचल में बसायी एवं यहां खेती उद्योग को विकसित किया। इसलिए इन दोनों शासनकाल में बड़े पैमाने पर पोवारों को मालगुजारी एवं जमींदारियां बहाल की गई।
अंग्रेजों ने पोवारों की मालगुजारी एवं जमींदारी पूर्ववत कायम रखी। ब्रिटिश काल (1818-1947) में पोवारों की तिरखेड़ी, रामाटोला, बोड़ुंदा, बड़द फुक्कीमेटा, मलपुरी, मोहबर्रा, उगली , धोबीसर्रा आदि जमींदारियां विख्यात थी।
6. परसवाड़ा क्षेत्र के विकास में योगदान
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ब्रिटिश शासनकाल तक पुरा वैनगंगा क्षेत्र कृषि उद्योग में विकसित हो चुका था। लेकिन 1867 में बालाघाट जिले की निर्मिति तक इस जिले के परसवाड़ा एवं बैहर क्षेत्र कृषि-उद्योग में अविकसित था। बालाघाट जिले के प्रथम डिप्टी कमिश्नर ब्ल्यूमफिल्ड ने पोवार समाज के लोगों का सह योग लेकर र्इस क्षेत्र में कृषि-उद्योग विकसित किया। इस संबंध में बालाघाट जिला गज़ेटीयर में कहा गया है कि-” In the middle of the Nineteenth, the first deputy commissioner of the Balaghat District,Colonel Bloomfield encouraged the settlement of Baihar tehsil with Powars from the Wainganga Valley.About that time Lachman Powar Naik established the first village on the Paraswara Plateau.” 14. संदर्भ -Balaghat District Gazetteer -1907.
7.बैहर क्षेत्र के विकास में योगदान
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परसवाड़ा क्षेत्र में कृषि उद्योग विकसित हो जाने के बाद भी पहाड़ी इलाका होने से बैहर क्षेत्र में खेती का पर्याप्त विकास नहीं हो पाया था।अत: उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र में कृषि उद्योग के विकास का प्रयास बालाघाट के अंग्रेज कलेक्टर मि. डेवर ने पोवारों का सहयोग लेकर किया। उसके इस कार्य में ग्राम रोशना के समकालीन पोवार मालगुजार श्री जीवना पटेल ने बहुत सहयोग किया था। ब्रिटिश सरकार ने जीवना पटेल को केशरे -ए-हिन्द की उपाधि से नवाजा था। उन्होंने गवर्नर के दरबारी के रुप में भी कार्य किया था। तात्पर्य, पोवार समाज के लोगों ने न केवल वैनगंंगा क्षेत्र बल्कि वर्तमान बालाघाट जिले में निहित बैहर एवं परसवाड़ा तहसील में भी धान की खेती को विकसित किया है। 15.(संदर्भ-पंवार समाज दर्शन, अखिल भारतीय पंवार क्षत्रिय महासभा – 2006./,P.19.)
8. वर्तमान में पोवार समाज
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पोवार समाज परिश्रमी है। इस समुदाय के 99-09 प्रतिशत लोगों के पास स्वयं के मालकी की खेती है। भारत की आज़ादी के बाद कृषि उद्योग के यांत्रिकीकरण के कारण खेती करना लाभदायक नहीं रहा है, इसलिए यह समाज आर्थिक दृष्टि से पिछड़ गया है। फिर भी पोवारों में खेती एवं पालतू पशुओं के प्रति लगाव है। शिक्षा का व्यापक प्रचार -प्रसार होने से इस समाज ने शिक्षा पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। अतः कृषि के अतिरिक्त अब यह समाज वैद्यकीय, इंजीनियरिंग ओर प्रशासनिक क्षेत्र में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ते हुये नए सिरे से अपनी पैठ जमा रहा है। यह समाज राष्ट्रप्रेमी, धर्मप्रेमी, मेहनती एवं साहसी है। इसमें नेतृत्व की क्षमता है। इन्हीं गुणों के कारण इसका भविष्य उज्ज्वल है।
-ओ सी पटले
समग्र पोवारी चेतना एवं सामूहिक क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
रवि.10/3/2024.
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