मराठाकाल में पोवारों को भूमि का उपहार किसने दिया ?
एक ऐतिहासिक खोज – इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
♦️कटक की लड़ाई में मराठा शासन को पोवारों ने सहयोग किया था। ♦️ एम. ए. शेरिंग के अनुसार मराठा शासनकाल में वैनगंंगा अंचल के तिरोड़ा, कामठा, लांजी, रामपायली क्षेत्र और उत्तर की भूमि उपहार में मिली थी।( संदर्भ -Hindu Tribes and Castes, Volume ll- M.A.Sherring, 1879,P.93.
♦️ पोवारों को भूमि का उपहार नागपुर के महान शासक रघूजी प्रथम के करकमलों द्वारा मिला था कि विश्वासघाती चिमनाजी भोंसले के द्वारा? ये इतिहास का एक महत्वपूर्ण सवाल है और कटक अभियान से संबंधित है। अतः कटक अभियानों के आधार पर इस प्रश्न का सही जवाब खोजना ही इस लेख का उद्देश्य है।
1. कटक का परिचय
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नवाब अलीवर्दीखान का बंगाल पर शासन (1742-50)था। बंगाल प्रांत में उस समय बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा यह तीन प्रांत थे। उड़ीसा को उस समय कटक के नाम से जाना जाता था।
2.कटक और मराठों का संबंध
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कटक पर अलीवर्दीखान का शासन था। लेकिन एक समझौते के अनुसार तय था कि वह मराठों को सरदेशमुखी एवं चौथाई के रुप में वह अपनी आय
का एक हिस्सा देगा। लगान वसूल करने के लिए मराठों का एक सुबेदार कटक में रहा करता था। लेकिन नवाब ये रकम देने में आनाकानी करता था। अतः अपनी रकम वसूल करने के लिए मराठा सेना कटक जाया करती थी। इसलिए इतिहास में मराठों के कटक अभियान प्रसिद्ध है।
3. दसवार्षिक युद्ध( 1742-50)
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अलीवर्दीखान ने जब मराठों को सरदेशमुखी एवं चौथाई की रकम देने से इंकार कर दिया था तब दोनों के बीच लगातार 1742 से 1751 तक युद्ध प्रारम्भ हो गया। इस युद्ध को दसवार्षिक युद्ध के नाम से जाना जाता है।अलीवर्दीखान जानता था कि वह मराठों को युद्ध में पराजित कर पाना असम्भव है। इसलिए उसने 1744 में एक साज़िश के तहत 21 मराठा सरदारों की हत्या कर दी।
इस घटना से व्यथित होकर अलीवर्दीखान से बदला लेने के उद्देश्य से नागपुर के महान शासक रघुजी प्रथम स्वयं विशाल सेना के साथ कटक गये । इस बार रघूजी ने अलीवर्दीखान को पराजित कर कटक के बाराभाटी के किले पर जरिपटका( मराठों का ध्वज)फहराया।
4. नागपुर का विजयोत्सव
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कटक विजय के पश्चात राजे रघुजी प्रथम ने नागपुर में भव्य विजयोत्सव का आयोजन किया था। इस विजयोत्सव में सभी शौर्यशाली व्यक्तियों को उन्होंने उपहार के रुप में जमीन जायदाद एवं जमींदारी बांटी थी । मराठों के इतिहास में इस विजयोत्सव का उल्लेख है तथा जिन्हें उपहार दिये गये थे, उनमें से अनेक नाम भी इतिहास में दर्ज है।
5.. अंग्रेजों का बंगाल बिहार पर अधिकार (1764)
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अंग्रेजों ने बक्सर की लड़ाई में बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला, दिल्ली का बादशाह शाहआलम एवं अवध के नवाब शुजाउद्दौला को परास्त कर 1764 में बंगाल एवं बिहार पर अपना अधिकार प्रस्थापित कर लिया था। कटक पर मराठों का अधिकार कायम था।
6. पुणे पर अंग्रेजों का आक्रमण
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अंग्रेजों ने बंगाल , बिहार और मद्रास पर अधिकार प्रस्थापित कर लेने के पश्चात उनकी दृष्टि मराठा राज्यों पर थी। उन्होंने 1779 में पेशवा के अधीन पुणे पर आक्रमण कर दिया।इस समय उन्हें पुणे पर अधिकार प्रस्थापित करना संभव नहीं हो पाया।
7. अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान
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मराठों के पेशवा नाना साहब फड़नीस ने 1779 में अंग्रेजों के खिलाफ एक महान योजना तैयार की। इस योजना के अनुसार पुणें के पेशवा, नागपुर के भोंसले, ग्वालियर के शिंदे , हैदराबाद का निजाम तथा म्हैसूर का हैदर अली इन पांचों शासकों ने अपने -अपने प्रदेश में अंग्रेजों के खिलाफ एक-साथ युद्ध प्रारम्भ करके अंग्रेजों के विस्तारवाद को रोकना है, ऐसा निर्णय लिया गया था। इस योजना को सभी ने स्वीकार किया था। योजना के अनुसार बंगाल पर आक्रमण करने का दायित्व नागपुर राज्य पर सौंपा गया था। नागपुर राज्य की ओर से इस दायित्व के निर्वाह हेतु चिमनाजी भोंसले को कटक भेजा गया था।
8. चिमनाजी का अभियान और विश्वासघात
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चिमनाजी भोंसले 40 हजार सेना लेकर कटक गया लेकिन उसने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा ही नहीं बल्कि उसने अंग्रेजों को बंगाल की सेना हैदर अली के कर्नाटक पर आक्रमण करने के लिए कटक में से लेजाने में सहयोग किया । इसप्रकार उसने पेशवा नाना फडणवीस के साथ विश्वासघात किया।
चिमना जी भोंसले कटक से 1780 में में वापस आया। “वह नागपुर वापस आतेही उसके पिता मुधोजी ने घटित घटना के लिए नाना फड़नीस की माफी मांगी। भविष्य में वें मराठों के खिलाफ अंग्रेजों को सहयोग नहीं करेंगे,यह बात भी इस समय स्वीकार की। बंगाल अभियान के पश्चात चिमनाजी की कटक की सुबेदारी वापस ले ली गई एवं उसे गढ़ा मंडला की सुबेदारी दी गयी। “(संदर्भ:- डाॅ.कोलारकर आणि पुरंदरे, पृष्ठ क्र.146.)
9.बंदोबस्त अधिकारी लॉरेन्स का कथन
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कटक अभियानों के लगभग सौ साल बाद प्रथम बंदोबस्त अधिकारी मि. लॉरेन्स ने पोवार एवं कामठा जमींदारी के संबंध में लिखा है कि –
“चिमनाजी भोंसले अपने साथ कोलुबापू को कटक ले गया। राजा के वापसी के बाद जब उसने पोवारों को खेती करने के लिए भूमि प्रदान की, तभी उसने कामठा क्षेत्र का, उस समय घने वनों से आच्छादित, संपूर्ण प्रदेश कोलुबापू के स्वामित्व में दिया। ” ( Chimnaji Bhonsla took the kunbi agent,by name Kolu, with him to Cuttack.On the Rajas return ,while he gave to many of the Powars lands to cultivate, to Kolu,he gave general authority over the whole of Kamtha, which at that time,was an inhabited Jungle…) 2.First Settlement Report (1867)- A.J. Lawrence, PP. 92-96.
10.मि.लाॅरेन्स के वर्णन की समीक्षा
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10-1.मराठा शासनकाल में वैनगंंगा क्षेत्र को देवगढ़ राज्य के नाम से भी जाना जाता था। चिमनाजी भोंसले न तो नागपुर का राजा था और न कभी देवगढ़ का सुबेदार था। इसलिए उसके द्वारा उपहार के रुप में कोलुबापू बहेकार को देवगढ़ में कामठा जमींदारी और पोवारों को कृषि के लिए भूमि प्रदान करना यह कथन केवल कपोल कल्पना प्रतीत होता है।
10-2. चिमनाजी भोंसले पहले कटक का सुबेदार था। पेशवा के साथ विश्वासघात के कारण उसे मंडला का सुबेदार नियुक्त किया गया। देवगढ़ से उसका कुछ लेना-देना ही नहीं था। ऐसी स्थिति में उसके द्वारा देवगढ़ सुबा की भूमि उपहार स्वरूप पोवारों को प्राप्त होना यह सफेद झूठ प्रतीत होता है।
10-3. प्रस्तुत लेखक के अनुसार अंग्रेज अधिकारियों में भारतीय महान शासकों के अच्छे कार्य का श्रेय विश्वासघाती लोगों को देने की प्रवृत्ति थी। इसी प्रवृत्ति के चलते मि . लॉरेन्स ने महान शासक रघुजी प्रथम के श्रेष्ठ कार्य का श्रेय विश्वासघाती चिमनाजी भोंसले को देने का प्रयास किया है। इसकारण आगे चलकर यही संदर्भ भंडारा जिला गजे़टीयर में भी दर्ज कर लिया गया है ।(Bhandara District Gazetteer -1978,P.135)
10-3.बंदोबस्त अधिकारी लॉरेंस ने कटक अभियान के संबंध में कोलुबापू बहेकार एवं पोवारों का एकसाथ उल्लेख किया है। और
कोलुबापू बहेकार को 1751 में कामठा की जमीनदरी प्राप्त हुई थी, यह एक ऐतिहासिक सत्य है। इस आधार पर हम विश्वासपूर्वक कह सकते है कि पोवारों को भी वैनगंंगा क्षेत्र की भूमि 1751 में ही उपहार के रुप में मिली थी।
11.निष्कर्ष(Conclusion)
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नागपुर के महान शासक सेनासाहेब सुबा रघूजी प्रथम ने अपने पराक्रम के बल पर1751 में कटक पर ऐतिहासिक विजय हासिल की थी।इसी खुशी के उपलक्ष्य में नागपुर शहर में भव्य विजय समारोह का आयोजन किया गया था दिवाली की तरह उत्सव मनाया गया था।इस भव्य समारोह में सभी को उनके शौर्य और सहयोग के अनुसार बड़े पैमाने पर विविध उपहार दिए थे। उपर्युक्त अवसर पर ही सौंदड़ निवासी कोलुबापू बहेकार को कामठा की जमींदारी एवं उत्तर में किरनापुर, हट्टा, लिंगा तक विपुल प्रदेश उपहार के रुप में दिया गया था। इसी अवसर पर पोवारों को भी उनके सैनिक सहयोग के उपलक्ष्य में तिरोड़ा, कामठा, लांजी, रामपायली एवं उसके उत्तर का क्षेत्र दिया था।
तात्पर्य , पोवारों को वैनगंंगा अंचल में कृषि के लिए विपुल क्षेत्र चिमनाजी भोंसले इस विश्वासघाती व्यक्ति के कलंकित हाथों से नहीं बल्कि 1751 के नागपुर के भव्य विजयोत्सव के अवसर पर महान मराठा शासक रघूजी प्रथम के पावन करकमलों द्वारा उपहार के रुप में प्राप्त हुआ था। ( संदर्भ – वीर राजे चिमना बहादुर – ओ सी पटले , पृष्ठ क्र.49-50.)
लेखक -ओ सी पटले 16/3/2024.
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