क्षत्रिय पंवार(पोवार) समाज में सामाजिक पुनर्जागरण (१७०० से १९४७ तक का कालक्रम)
ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार मालवा राजपुताना से आकर वैनगंगा क्षेत्र में क्षत्रिय पंवार(पोवार) समाज, की स्थाई बसाहट सन १७७५ के आसपास तक हो चुकी थी और इस समय तक उन्होंने छत्तीस कुल पंवार संघ के रूप में संगठित होकर समाज को एकीकृत किया। ये लोग मध्यभारत में स्थानीय शासकों के सैन्य तथा राजकीय मदद के लिए, उनके आव्हान पर आये थे। इन्होंने अपने सभी सैन्य अभियान में विजय प्राप्त की और उसके बदले इन्हे वैनगंगा के आसपास के क्षेत्र प्राप्त हुये, जहाँ इनकी स्थाई बसाहट हुई।
छत्तीस कुल पंवार संघ, ही क्षत्रिय पंवार(पोवार) समाज की सर्वोच्च संस्था थी। समाज में सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देकर सैक्षणिक स्तर में सुधार के साथ महिलाओं में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिये पंवार संघ के द्वारा ही १९०० के आसपास, “पंवार जाति सुधारणी सभा” का गठन किया गया था। इस संस्था के द्वारा पोवारों के लिए ऐतिहासिक पुनर्जागरण का कार्य किया। इसी संस्था ने समाज में मांस-मदिरा के सेवन पर प्रतिबन्ध की व्यवस्था की थी। दहेज़ प्रथा के हर रूप में सुधार हेतु विधान बनाये थे।
सनातनी धर्म संस्कृति से जोड़े रखने के लिए, समाज को अपने आराध्य प्रभु श्रीराम से जोड़कर, स्वजातीय चेतना के विस्तार के लिए, बैहर नगर के सिहारपाठ पहाड़ी पर श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए, “पंवार राम मंदिर समिति” का गठन किया गया। “पंवार राम मंदिर समिति” के नेतृत्व में सभी समाजजनो सामूहिक प्रयासों से सन १९११ में बैहर में राम मंदिर निर्माण का कार्य पूरा हुआ। “पंवार राम मंदिर समिति” ही बाद में ‘पंवार राम मंदिर ट्रष्ट” के रूप में पंजीकृत होकर सिहारपाठ पहाड़ी पर, राममंदिर तीर्थ परिसर की देखभाल और रखरखाव का कार्य करता है। इस ट्रस्ट की कई अनुषांगिक सर्किल समितियाँ है जो समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान के साथ स्वजातीय भाई-बहनों को जोड़कर समाजोत्थान का कार्य करती है। यह संस्था राममंदिर परिसर में प्रतिवर्ष रामनवमी के पावन अवसर पर मेले का आयोजन करती है जिसमें देश-दुनियाँ में फैले स्वजातीय भाई-बहन आकर, अपने आराध्य प्रभु श्रीराम की पूजा अर्चना के साथ अपने स्वजातीय भाई-बहनों से मिलने के अवसर का लाभ लेते हैं। यह संस्था समाज की एक पुरातन और सबसे सम्मानीय संस्था हैं। इस संस्था के द्वारा प्रतिवर्ष, रामनवमी के पावन अवसर पर “पंवार दर्पण” नाम से एक सामाजिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया जा रहा है।
१९१० से १९४१ तक छत्तीस कुल पंवार संघ की अलग-अलग जगहों पर निरंतर बैठके होती रही। इसी बीच समाज में धीरे-धीरे अनेक संगठन बनने लगें थे और समाज भी देश की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष में तन-मन-धन से जुटा रहा। समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये पंवार संघ के द्वारा सन १९२७ में “पंवार शिक्षा समिती” का भी गठन किया गया था। इस समिती के द्वारा शिक्षा के प्रसार-प्रसार के साथ महिलाओं की आधुनिक शिक्षा में भागीदारी बढ़ाने के लिये विशेष प्रयास किये गये।
इस समय सभी पोवार बहुल क्षेत्र केंद्रीय प्रान्त में आते थे और नागपुर इसकी राजधानी थी। नागपुर में समाज के युवाओं को जोड़ने के लिये सन १९३१ में, “नूतन पंवार संघ” की स्थापना हुई। इस संघ द्वारा समाज के छात्रों को जोड़कर उन्हें समाजोत्थान के लिये कार्य किया गया। नूतन पंवार संघ ने एक सामाजिक पत्रिका भी निकालना शुरू किया था जो पोवार समाज की प्रथम सामाजिक पत्रिका थी। सन १९४१ में “मध्यप्रदेश एवं बेरार क्षत्रिय पंवार संघ” नाम से पंवार संघ को पुनर्गठित किया गया ताकी सभी क्षेत्रों में समाज को सांस्कृतिक रूप से संगठित रखा जा सके। इस संस्था ने “पंवार जाति सुधारणी सभा” के कार्य अपने हाथ में ले लिये और समाज की संस्कृति को संरक्षित कर ३६ कुल पोवार समाज के समाजोत्थान हेतु अनेक अधिवेशनों का आयोजन कर, समाज को संघठित करते हुये उन्नति के मार्ग पर ले जाने के अनेक उल्लेखनीय कार्य किये गये।
सन १७०० से लेकर देश की स्वतंत्रता तक लगभग २५० वर्षों तक छत्तीस कुल पंवारों के संघ ने मालवा के राजपूतों की पहचान और अस्मिता के प्राचीन छत्तीस कुलीन स्वरूप को कायम रख समाज की सांस्कृतिक विरासत कों संरक्षित किया और आजादी के बाद भी सामाजिक-सांस्कृतिक पुनर्जागरण कार्यक्रम देश की प्रगति के साथ आज भी निरंतर जारी हैं।
✍ऋषि बिसेन, बालाघाट

