मालवांचल के पोवार वैनगंगा अंचल में क्यों आए❓ : ऐतिहासिक कारण मीमांसा एवं रोचक इतिहास – इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

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मालवांचल के पोवार वैनगंगा अंचल में क्यों आये? : ऐतिहासिक कारण मीमांसा एवं रोचक इतिहास
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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♦️ पोवार समुदाय के लोग वैनगंंगा अंचल में बसें हुए हैं। महाराष्ट्र के गोंदिया, भंडारा एवं मध्यप्रदेश के बालाघाट, सिवनी इन चार जिलों में उनकी घनी आबादी है। ये लोग मालवा के मूल निवासी हैं।
♦️ मालवांचल,उत्तरी भारत का एक अंचल है। यह एक त्रिभूजाकार पठार है।‌ मालवांचल में आठवीं से चौदहवीं सदी तक परमारों का शासन था। इस क्षेत्र के उज्जैन,धार,देवास, इंदौर आदि नगर प्रसिद्ध है।
♦️ मध्ययुग के पूर्वार्ध में परमार वंश अनेक शाखाओं में बंट गया।इसी काल में पोवार जाति की उत्पत्ति हुई। औरंगजेब के शासनकाल में लगभग 1700 में मालवांचल के पोवार वैनगंंगा अंचल में आकर बस गए।उस समय वैनगंंगा क्षेत्र को देवगढ़ राज्य के नाम से जाना जाता था। बख्त-बुलंद देवगढ़ का राजा था एवं देवगढ़ (छिंदवाड़ा) उसकी राजधानी थी।
1. मध्ययुग में स्थानांतरण स्वरूप
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भारत के इतिहास में 8 वीं सदी से 18 वीं सदी तक के कालखंड को मध्ययुग के नाम से जाना जाता है। अतः पोवारों का स्थानांतरण मध्ययुग की घटना है। मध्ययुग में वैयक्तिक स्थानांतरण कम हुआ करते थे। विवाह आदि की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पूरे गांव के गांव या पूरे कबीले के लोग सामूहिक स्थानांतरण किया करते थे। लगभग 1700 में मालवा से वैनगंंगा अंचल में हुआ पोवारों का स्थानांतरण भी सामूहिक स्थानांतरण था।
2. रेज़ीडेन्ट जेनकिन्स का कथन
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नागपुर राज्य के रेज़ीडेन्ट जेनकिन्स ने “राजा के अधीन प्रदेश” नामक अपने ग्रंथ (1827) में लिखा है- पोवार लोग बताते हैं कि ” औरंगजेब के शासनकाल में उनके पूर्वजों को मालवा के धार से निष्कासित किया गया।” (They say their ancestors were expelled from Dhar, in Malva, in the region of Aurangzeb.)
3. कारणों के विश्लेषण की आवश्यकता?
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रेज़ीडेन्ट जेनकिन्स ने अपने ग्रंथ में पोवारों को धार से कब निष्कासित किया गया? किसने निष्कासित किया? क्यों निष्कासित किया? आदि विषयों का उल्लेख नहीं दिया है। उसने केवल सुनी- सुनाई बात अपनी पुस्तक में लिखी है। लेकिन आज तक पोवारों के स्थानांतरण का सही एवं रोचक इतिहास दुर्लक्षित एवं उपेक्षित ही रहा है।
अतः पोवारों के स्थानांतरण का समग्र चित्र और चरित्र स्पष्ट करना यह इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
4. मौलिक कारण
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किसी भी घटना के दो प्रकार के कारण पाये जाते हैं। प्रथम,मौलिक कारण एवं द्वितीय, तात्कालिक कारण! समकालीन राजनीतिक माहौल के संदर्भ में पोवारों के स्थानांतरण के मौलिक कारण निम्नलिखित है –
4-1. शिवाजी महाराज की प्रेरणा
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भारत में औरंगजेब द्वारा जब जुल्म ढाये जा रहें थे तब दक्षिण में शिवाजी महाराज ने जन -जन में स्वराज स्थापना की चेतना जगाई। औरंगजेब की सेना को परास्त कर उन्होंने 1674 में रायगढ़ को राजधानी बनाकर स्वराज्य की स्थापना कर ली। मलवा के अनेक परमार सरदारों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज्य स्थापना के समय उनकी सेना में भर्ती होकर उन्हें स्वराज की स्थापना में योगदान दिया था। शिवाजी महाराज ने 1674 से 1680 तक शासन किया लेकिन उनके कार्य के दूरगामी परिणाम हुए। शिवाजी महाराज के पश्चात केवल बीस वर्ष के भीतर लगभग 1700 बख्त-बुलंद को स्वराज की स्थापना में सहयोग देने के उद्देश्य से पोवारों का स्थानांतरण हुआ। इससे स्पष्ट होता है कि मालवा से वैनगंंगा अंचल में हुए पोवारों के स्थानांतरण के कारणों में शिवाजी महाराज द्वारा जागृत की गयी आज़ादी की प्रेरणा भी एक बुनियादी कारण था।
4-2. महाराजा छत्रसाल की प्रेरणा ——————————————
उत्तर में बुंदेलखंड का छत्रसाल बुंदेला शिवाजी महाराज के शौर्य एवं स्वराज की स्थापना के प्रयास से प्रेरित था। उसने 1671 में औरंगजेब के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था और 1678 में बुंदेलखंड में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। पन्ना को उसने राजधानी बनाया। छत्रसाल को बुंदेलखंड का शिवाजी के नाम से भी जाना जाता है। उसने परमार सरदारों के सहयोग से 1689 में मालवा में भी अपनी सत्ता प्रस्थापित की। इस संपूर्ण घटनाक्रम का प्रभाव मालवांचल के पोवारों पर पड़ना स्वाभाविक था। अतः छत्रसाल की आज़ादी की प्रेरणा भी 1700 के आसपास मालवांचल से वैनगंंगा अंचल में हुए पोवारों के स्थानांतरण का एक मौलिक कारण थी।
4-3. बख्त-बुलंद से भावात्मक लगाव
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वैनगंंगा अंचल में गोंड राजवंश का शासन था। देवगढ़ ( छिंदवाड़ा) इसकी राजधानी था। इसलिए इसे देवगढ़ का राज्य कहा जाता था। गोंड राजवंश ने मुगलों की अधीनता और मुस्लिम धर्म अपना लिया था। यहां 1668 से बख्त बुलंद का शासन था।और वह छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज्य स्थापना के प्रयास से प्रभावित था।
मालवांचल के पोवारों का औरंगजेब की तुलना में बख्त-बुलंद के प्रति भावनात्मक लगाव होना स्वाभाविक था। यह भावनात्मक लगाव ही वैनगंंगा अंचल में हुए पोवारों के स्थानांतरण का एक मौलिक कारण है।
5. देवगढ़ की स्वतंत्र राज्य के रुप में पुनर्स्थापना
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बख्त-बुलंद ने 1682 में औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया। औरंगजेब के खिलाफ युद्ध में पराजित होकर वह 1688 में छत्रसाल से सैनिक सहायता मांगने मालवा चला गया। तथ्यों से पता चलता है कि 1700 में वह देवगढ़ फिर वापस आ गया। देवगढ़ में अब उसकी अपनी सेना भी थी।
भंडारा जिला गजे़टीयर से पता चलता एक पोवार राजपूत मालवा से आया था और इ.स.1700 में वह बख्त-बुलंद की सेना में 2000 अश्वसेना का नायक था। (The founder of the Mahagaon Zamindari was a Ponwar Rajput who came from Malva and rose to the post of 2000 horse in the service of the Gond Raja Bakht Buland -1700A.D.- Bhandara District Gazetteer p.714.)
बख्त-बुलंद ने ईस्वी सन् 1700 में औरंगजेब के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। इस युद्ध में बख़्त बुलंद को विजय प्राप्त हुई और 1701 में उसने देवगढ़ में अपनी स्वतंत्र सत्ता प्रस्थापित कर ली।
ऐतिहासिक तथ्यों से अवगत होता है कि पोवार सरदार अपने कुटुम्ब कबेला सहित सर्वप्रथम नगरधन आये थे। पोवार सरदारों के सहयोग से ही देवगढ़ की एक स्वतंत्र राज्य के रूप में पुनर्स्थापना हुई।
इसके पश्चात पोवार समुदाय के लोग वैनगंंगा अंचल में ही स्थायी रुप से बस गये।
6. स्थानांतरण के तात्कालिक कारण
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देवगढ़ का बख्त बुलंदशहा एक अच्छा शासक था।वह अपने राज्य में कृषि एवं उद्योगों को विकसित ‌कर समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयत्नशील था।इस कारण पोवारों को देवगढ़ में सैन्य सेवा के अच्छे अवसर थे। उसी प्रकार वैनगंंगा अंचल में उस समय जनसंख्या कम होने के कारण और यहां की भूमि उपजाऊ होने के कारण पोवारों के उज्ज्वल भविष्य की सारी संभावनाएं यहां उपलब्ध थी। इसलिए पोवार समुदाय के लोग वैनगंंगा अंचल में स्थायी रुप से बस गये।
निष्कर्ष ( Conclusion)
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वैनगंंगा अंचल के पोवार समुदाय के संबंध में हम आज गर्व के साथ बता रहे हैं कि हमारे पूर्वज मालवांचल से स्थानांतरित होकर आये है और अनेक संघर्षों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी मातृभाषा, संस्कृति और धर्म का संरक्षण किया है। प्रस्तुत लेखक का इस संबंध में स्पष्ट अभिमत है कि हम आज पोवार समुदाय के स्थानांतरण के जिस गौरवशाली इतिहास की बात करते हैं ,वह स्वाभिमान पूर्ण इतिहास छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रसाल बुंदेला एवं बख़्त बुलंद द्वारा किए गये स्वराज्य स्थापना के प्रयासों से मिली प्रेरणा की मधुर फलश्रुति है। यदि मध्ययुग में शिवाजी महाराज, छत्रसाल बुंदेला और बख्त-बुलंद जैसे स्वतंत्रता प्रेमी शासक न हुए होते तो शायद पोवारों के इतिहास ने अलग करवट लें ली होती और उस इतिहास में स्वाभिमान करने योग्य कुछ बचा ही नहीं होता। इसलिए हमारा पोवार समुदाय पूर्वजों के प्रति जितना कृतज्ञ है , उतना ही वह छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रसाल बुंदेला एवं गोंड राजा बख्त-बुलंद के प्रति भी सदैव कृतज्ञ बना रहेगा।
-ओ सी पटले
समग्र पोवारी चेतना एवं सामूहिक क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
बुध. 20/3/2024.
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