पोवार समाज के स्थानांतरण का नया संशोधित इतिहास सरल शब्दों में…! -इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

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पोवार समाज के स्थानांतरण का नया संशोधित इतिहास सरल शब्दों में…!
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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♦️ पोवार समुदाय के लोग मालवा से स्थानांतरित होकर वैनगंंगा अंचल में आकर बसे है।
♦️ पोवार समाज क्षत्रिय होने से युद्ध एवं कृषि उद्योग उसके जीवन के अनिवार्य हिस्सा थे। ब्रिटिशकाल में उसने पूर्णतः कृषि उद्योग को अपना लिया।
♦️ इस समाज के स्थानांतरण के इतिहास को अपने शब्दों के माध्यम से संगठित कर सरल शब्दों में समाज के सामने लाना यह इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
1. आगमन का उद्देश्य ———————————
प्रारंभिक विवरण बताते है कि “मालवा के पोवार वैनगंंगा क्षेत्र में 1700 के आसपास के समय स्थानांतरित हुए और इस समय वें सर्वप्रथम नगरधन पहुंचे।”
‌‌ जनश्रुति के अनुसार पोवार समुदाय जब नगर धन पहुंचा तब इस समुदाय की जनसंख्या लगभग 4000 थी। उसमें पैदल सैनिक, अश्वारोही, गज़ारोही सेना थी और ये लोग कुटुम्ब कबेला सहित नगरधन पहुंचे थें।
पोवार समाज क्षत्रिय है। राजतांत्रिक मध्ययुग में युद्ध उसके जीवन का अनिवार्य अंग था । इसलिए पोवारों का यह स्थानांतरण किसी सैनिक उद्देश्य से प्रेरित था, इस बात का स्पष्ट संकेत हमें मिलता है।
2. देवगढ़ का राज्य
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जिस समय पोवारों का स्थानांतरण हुआ,उस समय वैनगंंगा क्षेत्र देवगढ़ राज्य में निहित था। बख्त-बुलंद देवगढ़ का शासक था। छिंदवाड़ा का देवगढ़ किला इसकी राजधानी था।
बख्त-बुलंद औरंगजेब के अधीन मांडलिक राजा था ।‌ वह 1668 से 1706 तक देवगढ़ का राजा था, लेकिन वह छत्रपति शिवाजी तथा महाराजा छत्रसाल बुंदेला के स्वराज्य स्थापना के प्रयासों से प्रेरित था।1.(संदर्भ- मराठी विश्वकोश ,खंड 8, 1979, महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृति मंडळ ,P.414)
3.देवगढ़ का सत्ता संघर्ष
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बख़्त बुलंद छत्रपति शिवाजी महाराज एवं छत्रसाल बुंदेला से प्रेरित था। उसने अपना सैनिक सामर्थ्य बढ़ाकर देवगढ़ को शक्तिशाली बनाया। इसकारण औरंगजेब ने उसे 1691 में पद से हटा दिया। इसके पश्चात उसने स्वतंत्र सेना संगठित की। इसमें उसका काफी समय निकल गया। “उसने 1696 में औरंगजेब के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। किन्तु 1698 में युद्ध में पराजित हो गया। युद्ध में पराजित होते ही सैनिक सहायता मांगने के लिए सीधे मालवा चला गया।” ( संदर्भ – The defeated Bakht Buland leaving his capital moved into Malva.He requested Chattrasal to recruit masketteers for him- Bhandara District Gazetteer,1978, PP.93-94.)
4.सादत खान का आत्मसमर्पण
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बख्त-बुलंद जब मालवा गया तब मुगल सेना ने उसके प्रबल सहकारी सादत खान अफगान पर आत्मसमर्पण के लिए दबाव बनाया। जब सादत खान ने आत्मसमर्पण कर दिया तो बख्त बुलंद की 3700 सैनिक टुकड़ियां मुगलों की सेवा में चली गयी । (They forced Sadat Khan Afghan, a supporter of Bakht Buland to submit. About 3,700 troops of Bakht Buland came over to the Mughal Service.-Bhandara District Gazetteer,p.174.)
5. महाराजा छत्रसाल बुंदेला
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छत्रसाल बुंदेला भी शौर्यशाली व्यक्ति था एवं छत्रपति शिवाजी महाराज की स्वराज्य स्थापना से प्रेरित था। उसने औरंगजेब की अधीनता से बुंदेलखंड को मुक्त कराकर 1778 में स्वराज की स्थापना कर ली थी। मालवा के परमार सरदारों के कहने पर उसने मालवा को भी 1699 में औरंगजेब की अधीनता से मुक्त करा लिया था और वहां अपना शासन प्रस्थापित कर लिया था।
6. बख्त-बुलंद का अज्ञातवास(1699)
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‌‌बख्त बुलंद 1698 में मालवा चला गया, यह इतिहास तो लिखित स्वरुप में उपलब्ध है। लेकिन बख्त-बुलंद का 1698 से 1699 इस कालखंड का इतिहास अज्ञात ही है। छत्रसाल एवं बख्त-बुलंद के बीच क्या बातचीत हुई, यह इतिहास को अवगत नहीं हैं।
7.देवगढ़ में पोवार सरदार की उपस्थिति ———————————————-
एक पोवार राजपूत मालवा से आया था और 1700 में बख्त-बुलंद के पास 2000 अश्वारोही सेना का नायक था। (संदर्भ – Bhandara District Gazetteer P.714. )
उपर्युक्त उदाहरण के आधार पर स्पष्ट होता है कि 1700 में मालवा के पोवार सरदार एवं सैनिक बख्त-बुलंद के पक्ष से युद्ध लढ़ने देवगढ़ पहुंच गये थे।
8.दरियापुर की तेज लड़ाई
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बख्त-बुलंद एवं औरंगजेब की सेना के बीच मार्च 1701 में अमरावती के पास दरियापुर में एक तेज लड़ाई ( Sharp Battle) हुई। इस युद्ध में बख़्त बुलंद को निर्णायक विजय प्राप्त हुई। वह देवगढ़ का स्वतंत्र शासक बन गया।एवं मार्च 1701 में उसने देवगढ़ की खोई हुई सत्ता प्राप्त कर ली। वह देवगढ़ का स्वतंत्र शासक बन गया। ( Bhadara District Gazetteer, P.94.)
9.छत्रपति शिवाजी की प्रेरणा —————————————–
मराठी विश्वकोश से अवगत होता है कि छत्रसाल बुंदेला और बख्त-बुलंद यह दोनों व्यक्ति छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज्य स्थापना के कार्य से अत्यधिक प्रभावित थे एवं उनके ही नक्शे कदम पर उन्होंने अपने -अपने स्वतंत्र राज्य प्रस्थापित किये। शिवाजी महाराज की प्रेरणा ने भारत के इतिहास को एक नया मोड़ एवं एक नयी दिशा दिया।
10.तुमसर क्षेत्र में पहली बसाहट
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पोवार समुदाय के लोग जब वैनगंंगा अंचल में आकर बसे तब देवगढ़ का शासक बख्त-बुलंद कन्हान और वैनगंंगा के बीच के क्षेत्र में खेती किसानी विकसित करने के लिए प्रयत्नशील था। इसलिए पोवारों ने अपनी पहली बसाहट इस क्षेत्र में की।‌बख्त-बुलंद के शासनकाल में ही तुमसर क्षेत्र का विकास हुआ।(Bakhta Buland was the most distinguished rular of the Devgad house. During Bakht Buland’s reign the rich lands to the south of Devagad, between Wainganga and Kanhan were steadily developed. Bhandara District Gazetteer,1978,P.46.)
11.रघुजी प्रथम द्वारा भूमि का उपहार
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गोंड राजवंश की सत्ता 1637 मराठा शासन की ओर हस्तांतरित हुई। ईस्वी सन् 1642-16501इस कालखंड में बंगाल का नवाब अलीवर्दीखान और मराठों के बीच लड़ाई शुरु थी। इस युद्ध को दसवार्षिक युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में मराठों को विजय हासिल हुई और कटक पर मराठों का अधिकार प्रस्थापित हो गया। इस विजय के उपलक्ष्य में राजे रघुजी प्रथम द्वारा नागपुर में 1651 में भव्य जश्न का आयोजन किया गया था। इस जश्न में कटक युद्ध में जिनका जैसा योगदान था, उसके अनुसार उन्हें मालगुजारी, जमींदारी, कृषि उद्योग के लिए भूमि आदि उपहार के रुप में दिए गए।‌इस समय कृषि उद्योग के लिए परगने तिरोड़ा, रामपायली, कामठा, लांजी तथा वैनगंंगा के उत्तरी क्षेत्र की विपुल भूमि पोवार समुदाय को उपहार स्वरूप प्राप्त हुई।( संदर्भ- वीर राजे चिमना बहादुर के विशेष संदर्भ में परगने कामठा का इतिहास 1751-1818- इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले,PP.39-50.)
12. पोवारों के स्थानांतरण की नयी व्याख्या
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उपर्युक्त विवेचन एवं लिखित सबूतों के आधार पर प्रस्तुत लेखक का निष्कर्ष निम्नलिखित है –
(1) बख्त-बुलंद 1698 में मालवा जाने के पश्चात महाराजा छत्रसाल एवं उसके बीच कोई ऐसा समझौता हुआ कि जिसके तहत अनेक पोवार सरदार और सैनिक बख़्त बुलंद को सैनिक सहयोग करने वैनगंंगा अंचल में आये।
(2) इस लेख में दिए गए संपूर्ण विवरण के आधार पर स्थानांतरण के समय संबंधी सभी अटकलों को विराम लग जाता है और स्पष्ट होता है कि पोवार समुदाय के लोग (1699-1700 इस कालखंड में ही नगरधन स्थानांतरित हुए थे।
(3) पोवार समुदाय के लोग नगरधन आने के पश्चात बख्त-बुलंद जब देवगढ़ में अपनी स्वतंत्र सत्ता प्रस्थापित करने में सफल हो गया तब पोवार समुदाय के लोग सर्वप्रथम तुमसर क्षेत्र में स्थायी रुप से बस गये । गोंड राजवंश के शासनकाल में उनकी बसाहट केवल तुमसर क्षेत्र में थी। मराठा शासनकाल में वें धीरे-धीरे तिरोड़ा, कामठा, लांजी, रामपायली और वैनगंंगा नदी के उत्तरी भाग में फैले।‌
(4) 36 कुलीय पोवार समुदाय की घनी आबादी वैनगंंगा अंचल में है। लेकिन इसी कबीले के कुछ परिवार सदियों पूर्व अमरावती तथा यवतमाल में क्यों स्थायी हुए होंगे? इसका कोई कारण आज तक समझ से परे था। लेकिन बख्त-बुलंद के समय अमरावती के तरफ दरियापुर में भी लड़ाई लड़ी गयी थी,इस आधार पर प्रस्तुत लेखक का अनुमान है कि उसकी सेना में भर्ती होकर पोवार सरदार, सैनिक जब अमरावती, यवतमाल की तरफ गये तो कुछ व्यक्तियों को शायद ज्वार, बाजरा, कपास उत्पादक प्रदेश अच्छा लगा होगा और उन्होंने उस क्षेत्र में बसाहट करने का निर्णय लिया होगा। इसीलिए 36 कुलीय पोवार समुदाय के कुछ परिवार सदियों से अमरावती, यवतमाल में भी पाये जाते है।
13.उपसंहार(Conclusion )
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आजतक पोवारों के स्थानांतरण का प्रामाणिक इतिहास मूक एवं निर्वासित जीवन जी रहा था। इस नये संशोधन के कारण वह इतिहास पूर्ण आवेग के साथ प्रगट होकर समाज और राष्ट्र के सामने आया है। इससे पोवारों के इतिहास की ओर देखने की सबको सही दृष्टि प्राप्त होगी।
-ओ सी पटले
रवि.31/3/2024.
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