इतिहास में अनुसंधान कैसे किया जाता है ❓ : एक रोचक अनुभव – इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

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♦️ इतिहासकार द्वारा समाज के इतिहास में निहित सच्चाई को अपने शब्दों के माध्यम से संगठित कर समाज के सामने लाने का कार्य किया जाता है।
♦️ अंग्रेज इतिहासकारों ने भारत के विभिन्न प्रदेशों का इतिहास ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर लिखा है। लेकिन कुछ बातें लोगों से मिली जानकारी के आधार पर एवं भारतीयों में हीन भावना उत्पन्न करने की कूटनीति के कारण लिखा है।
♦️ अंग्रेज लेखकों द्वारा लिखित सभी बातें प्रमाणिक नहीं है। अतः स्वतंत्र भारत में उनके द्वारा लिखित इतिहास पर शोध करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है ।
♦️ इतिहास में नया अनुसंधान कब और कैसे संभव होता है? इस संबंध में हमारा एक रोचक अनुभव सबको अवगत कराना यह इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।


1.परगने कामठा पर संशोधन
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“उत्तर मध्ययुगीन परगने कामठा के विशेष संदर्भ में वीर राजे चिमना बहादुर” इस विषय पर 2008 में हमने संशोधन प्रारंभ किया। कामठा जमींदारी एवं कामठा परगना के संस्थापक कोलुबापू बहेकार थे।
कामठा जमींदारी की स्थापना के संबंध में बंदोबस्त अधिकारी मि.लॉरेन्स ने बंदोबस्त प्रतिवेदन (1867) में लिखा है कि चिमनाजी भोंसले के साथ कोलुबापू बहेकार एवं पोवार समाज के लोग कटक की लड़ाई पर गये थे। राजा की वापसी के बाद उपहार के रुप में कोलुबापू को कामठा की जमींदारी एवं पोवारों को वैनगंंगा क्षेत्र में कृषि उद्योग के लिए भूमि दी गई थी। (Chimnaji Bhosla took the kunbi agent,by name Kolu, with him to Cuttack.On the Rajas return ,while he gave to many of the Powars lands to cultivate, to Kolu, he gave general authority over the whole of Kamtha, which at that time,was an inhabited Jungle…) 2.First Settlement Report (1867)- A.J. Lawrence, PP. 92-96.
लॉरेन्स के कथन पर यदि विश्वास किया जाए तो कामठा जमींदारी की स्थापना 1779 में हुई ऐसा मानना अनिवार्य था। क्योंकि 1779 में वह अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करने कटक गया था।
परंतु कामठा के कुछ व्यक्तियों द्वारा हमें जानकारी प्राप्त हुई थी कि कटक विजय के उपलक्ष्य में 1751 में नागपुर में एक भव्य विजयोत्सव मनाया गया था। उस विजयोत्सव में उपहार स्वरूप कोलुबापू बहेकार को कामठा जमींदारी एवं पोवारों को वैनगंंगा क्षेत्र की भूमि प्राप्त हुई थी।
लॉरेन्स एवं स्थानीय लोगों लोगों के कथन में भिन्नता थी। इसलिए हमने आमगांव के जमींदार बाड़े में उपलब्ध वंशावली तथा ऐतिहासिक दस्तावेजों की छानबीन की। इस समय हमें आमगांव जमींदार के वंशज स्व. मदनलाल भाऊ बहेकार ने कामठा और आमगांव जमींदारी के समस्त दस्तावेज अध्ययन के लिए उपलब्ध कराया।खोज की इसी श्रृंखला में मराठों का एवं चिमना जी भोंसले का इतिहास जाना तथा नागपुर जश्न के समय नागपुर के राजा कौन थे?उनका व्यक्तित्व कैसा था?उनके कार्य क्या थे?आदि इतिहास अवगत किया।
इतिहास की छानबीन करने के पश्चात हमें बंदोबस्त अधिकारी मि लॉरेंस का कथन असत्य प्रतीत होने लगा। इसलिए नये ‌संशोधित तथ्यों के आधार पर उसका खंडन किया और पूर्ण आत्मविश्वास के साथ यह सिद्ध किया कि कोलुबापू बहेकार को नागपुर के महान शासक रघुजी प्रथम(1737-1755) के करकमलों द्वारा कटक विजय के उपलक्ष्य में ‌ कामठा की जमींदारी उपहार के रुप में दी गई थी।
इस संशोधन पर 210 पृष्ठों का एक ग्रंथ साकार करने के पश्चात ICHR नयी दिल्ली द्वारा उसे जांचा गया था एवं प्रकाशित करने के लिए अनुदान प्राप्त हुआ। यह शोध ग्रंथ 2018 में प्रकाशित हुआ।
2. पोवार समुदाय के स्थानांतरण पर संशोधन
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अंग्रेज लेखकों द्वारा लिखित पुस्तकों में निहित विवरणों में पोवार समुदाय के लोग औरंगजेब (1658-1707) और बख्त-बुलंद (1668-1706) के शासनकाल में मालवा से वैनगंंगा अंचल में स्थानांतरित हुए है, यह उल्लेख पाया जाता है। एक दिन हमने रेज़ीडेन्ट जेनकिन्स का कथन पढ़ा। उसने पोवारों के संबंध में लिखा है – “वें बताते है कि उनके पूर्वजों को खदेड़ा गया था।” (They say their ancestors were expelled from Dhar, in Malva, in the reign of Aurangzeb.(संदर्भ- Report on the territories on the Raja of Nagpur, Richard Jenkins, 1827, P.36.)
इसके तुरंत बाद एम.ए. शेरिंग का कथन हमारे पढ़ने में आया। उसने पोवारों के संबंध में लिखा है -” पोवारों ने औरंगजेब के शासनकाल में मालवा छोड़ा।”” (Powars of Malwa, quitted their country in the reign of the Emperor Aurungzebe. “(संदर्भ- Hindu Tribes and Castes, Volume ll- M.A.Sherring,1879, P.93.)
उपर्युक्त दोनों लेखकों के विचारों को पढ़ने के पश्चात हमारे ध्यान में आया कि इन दोनों लेखकों ने सुनी सुनाई बात लिखी है‌ और दोनों के कथन में अंतर हैं। एकने लिखा है कि पोवारों को खदेड़ा( expelled )गया तथा दूसरे ने कहा हैं उन्होंने मालवा छोड़ा( quitted)था।
अतः हमारे मन में स्थानांतरण का वास्तविक कारण जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुयी और हमने समकालीन राजनीतिक परिस्थिति(political cercumtances) का सूक्ष्म अध्ययन किया। इस अध्ययन में पाया कि पोवारों ने छत्रसाल बुंदेला के कहने से और बख्त-बुलंद को सैनिक सहयोग करने के उद्देश्य से 1799-1700 में मालवा छोड़ा और वैनगंंगा अंचल में अपनी बसाहट की। इसके पश्चात स्थानांतरण के समस्त कारण एवं संपूर्ण घटनाक्रम को हमने अपनी ‌लेखनी से निबद्ध किया। इस प्रकार पोवारों के स्थानांतरण के इतिहास पर एक मौलिक अनुसंधान ( fundamental research)संपन्न हुआ।
3.पोवार समाज को भूमि के उपहार संबंधी
अनुसंधान
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परगने कामठा पर शोध ग्रंथ लिखने के कारण हमें ज्ञात था कि कोलुबापू बहेकार ( 1751-1788) को कामठा जमींदारी एवं पोवार समुदाय को वैनगंंगा क्षेत्र में विपुल भूमि उपहार स्वरूप मिली थी।
उसी प्रकार परगने कामठा पर संशोधन के समय हमें चिमनाजी भोंसले राजा नहीं था, वह कटक का सुबेदार था, अंग्रेजों के विरुद्ध कटक अभियान में उसने मराठों को धोखा दिया था, इसी कारण उसे पुणे के नाना साहब पेशवा की डांट पड़ी थी और उसे कटक के स्थान पर मंडला का सुबेदार बनाया गया था, आदि तथ्य अवगत थे।( नागपूर राज्याचा अर्वाचीन भारत – डॉ. श.गो.कोलारकर , PP. 138-142)इसलिए नागपुर के महान शासक रघुजी प्रथम के करकमलों द्वारा 1751 में पोवार समुदाय को उपहार स्वरूप वैनगंंगा अंचल में भरपूर परिमाण में कृषि उद्योग के लिए भूमि प्राप्त हुई, यह महत्वपूर्ण अनुसंधान भी संपन्न हुआ।
4. निष्कर्ष(Conclusion)
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इतिहास में रुचि, संशोधन पद्धति का ज्ञान, घटनाओं का सूक्ष्म अध्ययन, चिंतन – मनन और घटनाओं को अपने शब्दों में संगठित करके समाज के सामने लाने की प्रबल इच्छाशक्ति के कारण महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संशोधन संभव होते है। इतिहास गर्व का विषय है जो मनुष्य को अतीत से जोड़ता है तथा उसे समाज के ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों का भी बोध कराता है।
-ओ सी पटले
बुध.3/4/2024.
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