इतिहास एक विज्ञान है,कला है और दर्शन भी है…! – इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले ‌

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इतिहास एक विज्ञान है,कला है और दर्शन भी है…!
– इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले ‌
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♦️ इतिहास की प्रकृति आंशिक रुप से एक विज्ञान की,आंशिक रुप से कला के एक विषय की और आंशिक रुप से एक दर्शन की है।
♦️समाज में घटित घटनाओं के संबंध में उपलब्ध तथ्यों की वस्तुनिष्ठ जांच -पड़ताल करके इतिहास लिखा जाता है। इसलिए इतिहास को विज्ञान कहा जाता है।
♦️ इतिहास में घटित घटनाओं को इतिहासकार अपनी लेखनी से परिभाषित करता है। घटनाओं को परिभाषित करना एक कला होने के कारण इतिहास को कला के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
♦️इतिहास में समाज के धर्म, नैतिक मूल्य , जीवन दर्शन आदि पहलुओं का अध्ययन किया जाता है और वह नैतिक मूल्यों की शिक्षा देता है।‌ इसलिए इतिहास न केवल विज्ञान और कला बल्कि अंशत: वह दर्शन भी है।
1.पोवारों का इतिहास (1658-2022)
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‌प्रस्तुत लेखक द्वारा 2023 में “पोवारों का इतिहास (1658-2022)” यह ग्रंथ साकार हुआ । ग्रंथ की प्रकृति त्रिगुणात्मक है। इसके विज्ञान,कला एवं दर्शन यह तीन आयाम है। इस ग्रंथ में इन तीनों विषयों की विशेषता कैसे समाहित है, इसे स्पष्ट करना यही इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
2.पोवारों का इतिहास: आंशिक रुप से एक विज्ञान
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पोवारों का इतिहास इस ग्रंथ में ‌तीन महत्वपूर्ण अनुसंधानों का समावेश है। यह अनुसंधान निरीक्षण – परीक्षण के आधार पर किया गया है। इसलिए पोवारों का इतिहास विज्ञान की श्रेणी में आता है। हमारे तीन अनुसंधान निम्नलिखित है-
2-1. स्थानांतरण का इतिहास
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पोवार समाज संबंधी ऐतिहासिक विवरणों में ” मालवा से वैनगंंगा अंचल में पोवारों का स्थानांतरण बख़्त बुलंद के शासनकाल में हुआ।‌इस समय पोवार समुदाय के लोग सर्वप्रथम रामटेक के पास नगरधन आये थे। इसके पश्चात वें चांदपुर, अंबागढ़ क्षेत्र में स्थाई रुप से बस गये। कालांतर में धीरे-धीरे उनका विस्तार संपूर्ण वैनगंगा क्षेत्र में हुआ है।” यह जानकारी उपलब्ध होती है।
पोवारों के स्थानांतरण के संबंध में एम . ए. शेरिंग के अनुसार पोवारों ने औरंगजेब के शासनकाल में मालवा छोड़ा (They were quitted Malwa)था। किन्तु रेज़ीडेन्ट जेनकिन्स के अनुसार औरंगजेब के शासनकाल में पोवारों को मालवा से खदेड़ा गया( They were expelled from Malwa)था।
दोनों अंग्रेज लेखकों के कथन में भिन्नता होने के औरंगज़ेब के समकालीन राजनीतिक परिस्थिति का अध्ययन एवं विश्लेषण किया गया और अंततः निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया कि पोवारों ने बख्त-बुलंद को सैनिक सहयोग एवं देवगढ़ में अच्छे भविष्य की आकांक्षा से 1699-1700 में मालवा को छोड़ा एवं वैनगंंगा अंचल में स्थानांतरित हुए।
उपर्युक्त अध्ययन, निरीक्षण, परीक्षण, विश्लेषण एवं निष्कर्ष वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष होने के कारण यहां पोवारों के इतिहास का स्वरूप पूर्णतः वैज्ञानिक है।
2-2.पोवारों को भूमि का उपहार
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कृषि क्षेत्र में 1867 के बंदोबस्त रेकार्ड (Settlement Report) को बहुत महत्व है। खेती- किसानी संबंधी न्यायालयीन मामलों में इस रेकार्ड के आधार पर न्यायालयीन निर्णय होते आये है।
ब्रिटिशकालीन भारत में भूमि का पहला सर्वेक्षण मि. लॉरेन्स के नेतृत्व में हुआ था। इसे बंदोबस्त के नाम से जाना जाता है। मि. लॉरेन्स ने बंदोबस्त रेकार्ड में लिखा है कि ” चिमनाजी भोंसले के साथ कटक युद्ध में गये थै इसलिए राजा की वापसी के बाद जब पोवारों को उपहार स्वरूप वैनगंंगा अंचल की भूमि दी गयी तब कोलुबापू बहेकार को कामठा जमींदारी दी गयी।”
मि. लॉरेन्स द्वारा दिया गया विवरण प्रामाणिक माना जा रहा था। लेकिन प्रस्तुत लेखक ने जब मराठा शासनकाल का अध्ययन किया तब उसने विभिन्न प्राथमिक स्त्रोतों के आधार पर मि. लॉरेन्स के उपर्युक्त विवरण को गलत पाया। उसके अनुसंधान में पाया गया कि राजे रघुजी प्रथम के शासनकाल में कटक विजय के उपलक्ष्य में उनके द्वारा 1751 मे पोवारों को वैनगंंगा अंचल में विपुल भूमि तथा कोलुबापू बहेकार को कामठा जमींदारी उपहार स्वरूप दी गई थी।
उपर्युक्त अनुसंधान का अध्ययन, निरीक्षण, परीक्षण , विश्लेषण एवं निष्कर्ष पर आधारित होने के कारण वैज्ञानिक हैं।इसी प्रकार के विषयों के कारण पोवारों के इतिहास को शास्त्र का स्वरूप प्राप्त हुआ है।
2-3. पोवारों का वैनगंगा क्षेत्र में विस्तार
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‌ वैनगंंगा क्षेत्र में पोवारों के विस्तार संबंधी उपलब्ध विभिन्न तथ्यों का अध्ययन करने के पश्चात प्रस्तुत लेखक ने निरुपित किया है कि गोंड राजवंश के शासनकाल (1668-1736) तक पोवार समाज के लोगों की बसाहट तुमसर क्षेत्र में थी। मराठा शासनकाल में 1751 के पश्चात पोवारों का विस्तार वैनगंगा अंचल के पूर्वोत्तर उत्तरी क्षेत्र के तिरोड़ा, कामठा, लांजी, रामपायली आदि परगनों हुआ।
वर्तमान सिवनी जिले में पोवारों का विस्तार 1857 के स्वतंत्रता संग्राम तक हो चुका था। लेकिन उन्नीसवीं वीं सदी के मध्य तक वर्तमान बालाघाट जिले का परसवाड़ा तथा बैहर क्षेत्र अविकसित था। ब्रिटिश अधिकारियों ने पोवार समाज के लक्ष्मण पोवार, जीवना पटेल आदि प्रभावशाली लोगों का सहयोग लेकर इस क्षेत्र में कृषि-उद्योग विकसित किया।
पोवारों का वैनगंंगा अंचल में विस्तार का उपर्युक्त विवरण अंग्रेज लेखकों के ग्रंथ, भंडारा जिला गजे़टीयर, बालाघाट जिला गज़ेटीयर एवं सिवनी जिला गजे़टीयर के आधार पर प्रस्तुत किया है। इसलिए पोवारों के इतिहास का ग्रंथ शास्त्र कहलाने के योग्य बन पाया है।
3.पोवारों का इतिहास : कला के विषय समान रोचक
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पोवारों के इतिहास में विविध घटनाओं और उनके कारणों को सरल ,सुगम एवं रोचक ढंग से परिभाषित किया गया है। किसी विषय को कैसे परिभाषित करना यह लेखक के लेखन कौशल पर निर्भर है, और यह कौशल एक कला है। इसलिए यह ग्रंथ आंशिक रुप से कला के एक विषय जैसा रोचक बन पाया है।
4. पोवारों का इतिहास अंशत: एक दर्शन
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पोवारी संस्कृति को सनातन धर्म एवं हिन्दू जीवन दर्शन का अधिष्ठान प्राप्त है। समाज की इस ऐतिहासिक पार्श्वभूमी के आधार पर पोवारों के इतिहास नामक ग्रन्थ में पोवारों की जीवन-शैली, धर्मनिष्ठता, आराध्य, कुलदेवता, कुलदेवी, नैतिक मूल्य और दर्शन आदि विषयों को भी स्पष्ट किया गया है।
इस ग्रंथ में समाज में उभरती हुई समस्याओं का अध्ययन किया गया है और समाधान के उपाय भी सुझाए गए हैं।ग्रंथ में समाज की ऐतिहासिक पार्श्वभूमी एवं वर्तमान युग के परिप्रेक्ष्य में समाजोत्थान के मौलिक सिद्धांत भी दिये गये है। पोवार समुदाय का शाश्वत कल्याण हिन्दू जीवन दर्शन में ही निहित है, इसे भी अंकित किया गया हैं। ग्रंथ में विवेचित इन विषयों के कारण पोवार समाज का इतिहास यह न केवल विज्ञान और कला है बल्कि अंशत: यह एक दार्शनिक ग्रंथ (Philosophy ) भी बन गया है।
5. उपसंहार
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पोवारों के इतिहास (1658-2022)इस ग्रंथ में समाज के सभी पहलुओं का अध्ययन विस्तार के साथ किया गया है। इसलिए यह ग्रंथ न केवल पोवार समाज को जानने समझने की दृष्टि से बल्कि समाज को अपनी भावी दिशा निर्धारित करने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह ग्रंथ किसी भी समुदाय के लेखक को अपने समुदाय का इतिहास लिखने में पथ-प्रदर्शक भी साबित होगा।
-ओ सी पटले
बुध.10/4/2024.
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