प्रधानमंत्री हेमाद्रि, हेमाड़पंथी वास्तुशिल्प एवं कर्पूर बावली का महत्वपूर्ण इतिहास
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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♦️ रामटेक के श्रीराम मंदिर के उत्तर में एक मध्ययुगीन बावली है और उसके किनारे पर एक हेमाड़पंथी मंदिर है,जो अब खंडहर के रुप में है।
♦️ भारतवर्ष की विख्यात बावलियों में रामटेक की कर्पूर बावली का समावेश है। इस बावली को 1200 वर्ष पुरानी बताया जाता है और कहा जाता है कि विगत बारह सौ वर्षों में इसका जलस्तर कभी कम नहीं हुआ है। इसके जल में कपूर का औषधीय गुण होने के कारण इसे कर्पूर बावली के नाम से जाना जाता है।
♦️ अनेक व्यक्तियों ने हेमाड़पंथी वास्तुशिल्प देखा है, अनेक लोगों ने इस वास्तुशिल्प का नाम सुना है और अनेक व्यक्तियों के मन में हेमाड़पंथी वास्तुशिल्प का अभिप्राय जानने की जिज्ञासा भी हुआ करती है। इसलिए इस वास्तुशिल्प का इतिहास अवगत कराना यही इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
1. यादव राजवंश का परिचय
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महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में तेरहवीं एवं चौदहवीं शताब्दी में यादवों का शासन था। उनकी राजधानी छिंदवाड़ा के समीप देवगढ़ थी। इसलिए उन्हें देवगढ़ के यादव नाम से संबोधित किया जाता है।
यादवों में राजा महादेव (1259-1271) और राजा रामचंद्र (1271-1309) नामक राजा हुए। हेमाद्रिपंत उनके प्रधानमंत्री थे। हेमाद्रिपंत एक कुशल प्रशासक, वास्तुकार,कवि एवं आध्यात्मिक थे। उनके प्रधानमंत्रीत्व काल में यादवों का सूर्य अपने चरम पर था।
2.प्रधानमंत्री हेमाद्रिपंत का इतिहास
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हेमाद्रिपंत का जन्म कर्नाटक के एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता कालदेओ ने उन्हें बहुत छोटी उम्र में महाराष्ट्र ले आये थे। आगे चलकर वें यादवों के प्रधानमंत्री बनें।
हेमाद्रिपंत विद्वान लेखक थे। उन्होंने राजकाज और प्रशासन पर एक ग्रंथ लिखा लिखी थी। उसी प्रकार उन्होंने हेमाड़पंथी बखर नामक इतिहास विषयक ग्रंथ, चतुर्वर्ग चिंतामणि नामक धार्मिक ग्रंथ, आयुर्वेद रहस्यम नामक औषधी शास्त्र पर भी एक-एक ग्रंथ की रचना की।
3.हेमाड़पंथी वास्तुकला
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हेमाद्रिपंत को हेमाड़पंथी वास्तुशिल्प के जनक है। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध हेमाड़पंथी मंदिर निम्नलिखित है –
(1) कर्पूरा बावली मंदिर – रामटेक, जिला -नागपुर
(2) तुलजा भवानी मंदिर – तुलजापुर, जिला – उस्मानाबाद
(3)अमृतेश्वर मंदिर – रतनगढ़,भंडारदरा,तह – अकोले , जिला -अहमदनगर
(4)गोंदेश्वर मंदिर – सिन्नर, जिला – नाशिक
(5) ज्योतिर्लिंग मंदिर – आमर्दकपुर,औंढ़ा – नागनाथ, जिला – हिंगोली
4.दक्षिण में परमारों का शासन
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अलग-अलग समय पर देवगढ़ नामक राज्य पर अलग-अलग राजवंश का शासन रहा। दक्षिण भारत का वाकाटक राजवंश इतिहास में प्रसिद्ध है।वाकाटकों की राजधानी नगरधन ( रामटेक)थी। वाकाटकों का शासन 3 री सदी से 6 सदी तक था। वाकाटकों के समय पदमपुर ( आमगांव) यह राष्ट्रकूट वंश के सामंत राजा की राजधानी था। वाकाटकों का राज्य कमजोर हो जाने के पश्चात दक्षिण भारत पर कुछ समय तक राष्ट्रकूट राजवंश( 6 वीं से 8 वीं सदी) का शासन रहा। ( संदर्भ – अकोला एवं मुलताई ताम्रपट, स्त्रोत – भवभूति,डॉ. व्ही व्ही मिराशी PP.15 and 51) इसके पश्चात यहां कुछ समय कल्चुरी एवं चालुक्य राजाओं का शासन रहा।
5. रामटेक की कर्पूर बावली संबंधी प्रश्न
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चालुक्य राजवंश के समय देवगढ़ नामक प्रदेश पर परमार राजवंश की सत्ता थी। ईस्वी सन् 1104 के नागपुर प्रशस्ति के अनुसार उस समय मालवा के परमार राजवंश के प्रतिनिधि के रुप में यहां लक्ष्मण देव का शासन था। यह प्रशस्ति नागपुर के म्युजिअम में है।( संदर्भ – नागपुर शिलालेख , विक्रम संवत 1161, ईस्वी सन् 1104, महाराष्ट्र)
देवगढ़ नामक प्रदेश पर परमारों का शासन रहा है और कर्पूर बावली को 12 सौ वर्ष पुरानी बताया जाता है। इसलिए कुछ प्रबुद्ध व्यक्तियों द्वारा रामटेक की कर्पूर बावली का निर्माण कार्य परमार शासनकाल में होने की संभावना व्यक्त की जाती है।
6. कर्पूर बावली संबंधित निष्कर्ष
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इस बावली के किनारे पर हेमाड़पंथी मंदिर बना हुआ है और वास्तुशिल्प की यह शैली यादवों के शासनकाल में प्रधानमंत्री हेमाद्रि के द्वारा विकसित की गयी। इसलिए नि: संदेह यह मंदिर यादव काल में निर्मित हुआ ऐसा माना जाता है। इस आधार पर कर्पूर बावली का निर्माण कार्य भी यादव काल में हुआ है ऐसा प्रतीत होता है।
कर्पूर बावली के जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है।इस आधार पर बावली एवं किनारे पर बना हुआ हेमाडपंथी मंदिर का निर्माण अलग-अलग राजवंश के शासनकाल में हुआ हो, इस संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। लेकिन किसी पुरातात्विक अथवा अन्य ऐतिहासिक साक्ष्य के अभाव में, कर्पूर बावली का निर्माण परमार वंश के शासनकाल में हुआ ऐसा नहीं कहा जा सकता।
7. ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण आवश्यक
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रामटेक की कर्पूर बावली एवं मंदिर हमारी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है। वर्तमान में पुरातात्विक विभाग द्वारा दुर्लक्षित एवं उपेक्षित है। ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण करते हुए ऐसे ऐतिहासिक स्थानों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना परम् आवश्यक है।
– ओ सी पटले
शुक्र.12/4/2022.
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