पोवार समाज द्वारा सार्वजनिक श्रीराम मंदिर का निर्माण (सिहारपाठ बैहर) : पार्श्वभूमी का विश्लेषण एवं संक्षिप्त इतिहास

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♦️ मध्यप्रदेश में स्थित बैहर एक ऐतिहासिक नगर है। यहां कुछ प्राचीन वास्तुशिल्प पाये जाते है। बैहर से 3 कि. मी.दूरीपर सतपुड़ा पर्वत माला की लगभग 300 फीट ऊंची एक ऐतिहासिक पहाड़ी है।
♦️इस ऐतिहासिक पहाड़ी की तराई पर प्राचीन काल से एक सिंह मंदिर स्थित है। मंदिर में हाथी के ऊपर सिंह विराजमान है।इसे सिहारपाठ कहा जाता है। इसलिए यह पहाड़ी सिहारपाठ के नाम से विख्यात है।
♦️ सिहारपाठ के सिंह मंदिर के आधार पर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि पहले यह पहाड़ी घने वनों से आच्छादित थी और यहां जंगली पशुओं का आतंक बना हुआ रहता था।
♦️पोवार समाज द्वारा 1909-1912 इस कालखंड में सिहारपाठ पर श्रीराम मंदिर का निर्माण किया गया। इस समय से सिहारपाठ को पोवार राम तीर्थ के नाम से संबोधित किया जाता है।जन -जन को इस तीर्थ क्षेत्र के विकास की पार्श्वभूमी एवं उसका संक्षिप्त इतिहास अवगत कराना इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
1. श्रीराम मंदिर निर्माण की पार्श्वभूमी
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सिहारपाठ पर पोवार समाज द्वारा राममंदिर के निर्माण की पार्श्वभूमी निम्नलिखित है –
1-1. बैहर क्षेत्र का आर्थिक विकास
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बैहर वर्तमान बालाघाट जिले की एक तहसील एवं तहसील का मुख्यालय है। बैहर परिसर पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण 1867 में बालाघाट जिले की स्थापना होने के पश्चात भी अविकसित ही था। बालाघाट के अंग्रेज कलेक्टर मि. डेवर ने पोवारों का सहयोग लेकर बैहर क्षेत्र में कृषि उद्योग का विकास किया। उसके इस कार्य में ग्राम रोशना के समकालीन पोवार मालगुजार श्री जीवना पटेल ने बहुत सहयोग किया था। ब्रिटिश सरकार ने जीवना पटेल को केशरे -ए-हिन्द की उपाधि से नवाजा था। उन्होंने गवर्नर के दरबारी के रुप में भी कार्य किया था। ( संदर्भ -पंवार समाज दर्शन, अखिल भारतीय पंवार क्षत्रिय महासभा – 2006./,P.19.)
कृषि उद्योग के विकास के साथ-साथ अंग्रेजों ने बैहर क्षेत्र में पोवार समाज के कुछ प्रभावशाली लोगों को मालगुजारी दी। बैहर क्षेत्र का आर्थिक विकास होने के कारण सभी समुदायों के जीवन में सुख समृद्धि आयी। इस कारण स्वाभाविकता पोवार समाज का ध्यान धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों की ओर गया और सिहारपाठ पर राममंदिर के निर्माण के विचार अनेक लोगों के मन में उठने लगा ।
1-2. सामाजिक – धार्मिक पुनर्जागरण
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भारत में उन्नीसवीं सदी को सुधारयुग के नाम से संबोधित किया जाता। इस सदी में राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद विद्यासागर आदि अनेक समाज सुधारक हुए। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। स्वामी विवेकानंद का 1893 में ‌शिकागो में ऐतिहासिक भाषण हुआ तथा उन्हें संसार में श्रेष्ठतम विद्वान के रुप में मान्यता मिली।इस सब का परिणाम भारतीय जनमानस पर पड़ा। पोवार समाज में भी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जनजागृति आयी। परिणामस्वरुप पोवार समाज सिहारपाठ पर भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण के लिए तथा सिहारपाठ को पोवार तीर्थ क्षेत्र के रुप में विकसित करने की ओर अग्रसर हुआ।
1-3. संस्कृति के प्राणतत्व”श्रीराम”
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प्रभु श्रीराम ही पोवारी संस्कृति के प्राणतत्व, पोवार समाज के सर्वोच्च आदर्श एवं प्रथम आराध्य होने के कारण इस समाज ने 1905 में अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार महासभा नामक संगठन की नींव रखी थी। इसके पश्चात अपने समाज के गरीब और धनवान सबसे चंदा जमा करके बैहर के समीप सिहारपाठ पहाड़ी पर राममंदिर का निर्माण किया। इस स्थान को “पोवार राम तीर्थ” के नाम से संबोधित किया जाता है। प्रतिवर्ष रामनवमी को यहां भव्य मेला लगता है।
2.श्रीराम मंदिर का संक्षिप्त इतिहास
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पोवार समाज का सार्वजनिक श्रीराम मंदिर सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की सिहारपाठ नामक ऐतिहासिक पहाड़ी पर होने से प्रेक्षणीय और महत्वपूर्ण है। इसका निर्माण 1909-1912 इस कालखंड में हुआ। इसके पश्चात धीरे-धीरे इसे पोवार तीर्थ-स्थल के रुप में विकसित करने का कार्य शुरु है।
यहां राममंदिर के साथ -साथ हनुमान मंदिर, महामाया मंदिर, शंकर जी का मंदिर, राजा भोज की भव्य प्रतिमा एवं सभा भवन का निर्माण भी किया गया है। पहाड़ी पर पहुंचने के लिए पक्की सड़क बनाई गई है और पायरी की व्यवस्था भी है ।150 पायरिया चढ़कर देवस्थान के दर्शन किए जा सकते है।
3. श्रीराम मंदिर के आय का साधन
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राममंदिर के नाम पर 20 एकड़ खेती है। श्रीराम मंदिर को स्व. परसराम पटेल, पौंडी द्वारा 2 एकड़ तथा स्व. गोपाल पटेल, कंजई द्वारा 2 एकड़ भूमि दान के रुप में दी गई है। इसके अतिरिक्त श्रीराम मंदिर को समाज के कुछ मान्यवरों द्वारा 52 एकड़ खेती खरीद कर दी है, जो ग्राम राजपुर में है। श्रीराम तीर्थस्थान की देखभाल पंवार राममंदिर ट्रस्ट ,बैहर द्वारा की जाती है।(संदर्भ 1.आय-व्यय पत्रक एवं राममंदिर का इतिहास (ईस्वी सन् 1982-83)
4.गौरवपूर्ण उपलब्धि
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ब्रिटिशकाल में पोवार समाज के मान्यवरों ने सिहारपाठ में श्रीराम मंदिर का निर्माण कर उसे पोवार तीर्थ-स्थल के रुप में विकसित किया गया, यह समाज की बहुत गौरवशाली उपलब्धि है। यह कार्य एक ऐतिहासिक एवं प्रेरणादायक कार्य है तथा सदैव नयी पीढ़ी को जनहित में अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरणास्रोत का कार्य करता रहेगा।
प्रभु श्रीराम न् केवल पोवारी संस्कृति के बल्कि सनातन हिन्दू संस्कृति एवं भारतवर्ष के प्राणतत्व है। इस दृष्टि से सिहारपाठ की ऐतिहासिक पहाड़ी पर श्रीराम मंदिर का निर्माण करना एवं उसे पोवारी तीर्थ के रुप में विकसित करने का कार्य पूर्वजों की दूरदर्शिता का परिचायक है। सनातन हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना यही श्रीराम मंदिर के निर्माता पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि साबित होगी।
– पोवार समाज रिसर्च अकॅडमि, भारतवर्ष.
मंग.16/4/2024.
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