♦️2018 में पोवारी भाषिक क्रांति युवाशक्ति के सहयोग से आश्चर्यजनक गति से सफ़ल हुई।
♦️ पोवारी अलिखित साहित्य का सृजन पुरातन काल से ही हो रहा है।भारत की आज़ादी के पश्चात पोवारी भाषा पर कुछ पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। 2018 की पोवारी भाषिक क्रांति के कारण पोवारी साहित्य प्रकाशन को तेज गति प्राप्त हुई। क्रांति से प्रेरित कुछ महानुभावों ने 2018 में अपने-अपने पोवारी काव्यसंग्रह प्रकाशित किये। लेकिन हम क्रांति को आगे बढ़ाने में व्यस्त रहने के कारण अपना ग्रंथ प्रकाशित करने का समय नहीं मिल पा रहा था।
♦️ हमारा ग्रंथ 2022 ” पोवारी भाषा संवर्धन: मौलिक सिद्धांत व व्यवहार” नामक शीर्षक से प्रकाशित हुआ।असल में यह ग्रंथ 2018 में साकार हो गया था। लेकिन इसकी विषय वस्तु एवं शीर्षक में कई बार परिवर्तन और सुधार होते रहे। ग्रंथ की विषयवस्तु के अनुसार ग्रंथ के लिए नये – नये शीर्षक भी बनते गये और बार -बार बदलते गये। ऐसा घटनाक्रम ,2018 से 2022 तक निरंतर चलता रहा।
1. ग्रंथ का शीर्षक: एक महत्वपूर्ण पहलू
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ग्रंथ के नाम को ग्रंथ का शीर्षक कहते हैं। जिस प्रकार अच्छा ग्रंथ साकार करना कठिन होता है,उसी प्रकार साकार हुए ग्रंथ का शीर्ष निर्धारित करने का कार्य कभी बहुत सरल होता है, तो कभी बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। ग्रंथ के शीर्षक में जो गुण होने चाहिए वें निम्नलिखित है –
1-1. विषय वस्तु का बोध
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शीर्षक, ग्रंथ की विषय वस्तु का सूचक होना चाहिए। शीर्षक पढ़ते ही पाठक को ग्रंथ में समाविष्ट विषय वस्तु का अनुमान आ जाना चाहिए। यह शीर्षक की अनिवार्य शर्त होती है। इसलिए किसी भी ग्रंथ का शीर्षक सुनिश्चित करना कठिन होता है।
1-2.देश-काल-परिस्थिति के अनुरुप
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ग्रंथ के शीर्षक में नवीनता होनी चाहिए। शीर्षक देश-काल -परिस्थिति के अनुरूप होना चाहिए।
1-3.छोटा ,सुंदर और प्रभावी
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शीर्षक छोटा, सुंदर एवं प्रभावी (Short , Sweet and effective) होना चाहिए। शीर्षक ऐसा होना चाहिए कि उसे पढ़ते ही पाठकों में ग्रंथ पढ़ने की जिज्ञासा जागृत होना चाहिए। शीर्षक में ये सब गुण निहित होने की अपेक्षा की जाती है, इसलिए शीर्षक निर्धारित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।
2. शीर्षक संबंधी निजी निर्णय
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पोवारी भाषा संवर्धन के लिए प्रेरक विचारों एवं क्रांतिकारी कविताओं पर आधारित हमारा एक ग्रंथ 2018 में साकार हुआ। इस ग्रंथ में भाषा संवर्धन की Philosophy होने के कारण इसे “पोवारी भाषा संवर्धन को नवो तत्वज्ञान” ( The New Philosophy of Promotion of the Powari language) ऐसा शीर्षक देने का मानस भी हमने बना लिया था।
3. धनराज जी भगत का उपयुक्त सुझाव
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एक दिन धनराज जी भगत (वर्तमान संपादक न्यूज़ प्रभात) इनके साथ परस्पर संवाद में ग्रंथ के शीर्षक का विषय निकल गया। इसपर धनराज जी ने हमें आगाह कराया कि सरजी.! जब आप भाषा संवर्धन संबंधी अपने मौलिक विचारों के लिए तत्वज्ञान (Philosophy) शब्द का प्रयोग करते है तो पोवारी साहित्य क्षेत्र से संलग्न कुछ व्यक्ति अनसुहाता कर सकते है। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि समाज के प्रबुद्ध वर्ग के व्यक्तियों को भी यह शीर्षक सामान्य (General) प्रतीत होगा।
इसके पश्चात तुरंत धनराज जी ने सुझाया कि कॉलेज की पुस्तकों के शीर्षक रहते है, जैसे – “अर्थशास्त्र के मौलिक सिद्धांत” अथवा “अर्थशास्त्र के मूलतत्व” इसप्रकार का शीर्षक पोवारी भाषा संवर्धन के ग्रंथ को देना संभव हो तो बहुत सुंदर कार्य हो जायेगा। आपके द्वारा अपने मौलिक विचारों के लिए तत्वज्ञान शब्द का प्रयोग, जिन्हें विभिन्न कारणों से अच्छा नहीं लगता, उन्हें भी शायद इसप्रकार का शीर्षक अच्छा लगेगा और वें भी ऐसे शीर्षक की दिल की गहराई से प्रशंसा करेंगे।
धनराज जी की बात साफ दिल से, बहुत सम्मानजनक ढ़ंग से और विचारपूर्वक रखी गई थी। इसलिए हमने उनके सुझाव की दिशा में सोचना प्रारंभ किया।
4. संकल्पनाओं का अध्ययन
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सबसे पहले हमने विभिन्न ग्रंथों का अध्ययन करके तत्वज्ञान(Philosophy), सिद्धांत(Theory), मौलिक तत्व( Basic Principles), एवं व्यवहार (Practice)इन चारों संकल्पनाओं का अर्थ अवगत किया।
तत्पश्चात अपने ग्रंथ के लिए ” पोवारी भाषा संवर्धन: मौलिक सिद्धांत व व्यवहार” यह शीर्षक निर्धारित किया।
5.ग्रंथ को सही शीर्षक मिला!
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इस बार शीर्षक निर्धारण के अनुभव ने हमें एक नया दृष्टिकोण दिया। इस दृष्टिकोण के अनुसार हमने ग्रंथ को दो विभागों में विभाजित किया। प्रथम विभाग को मौलिक सिद्धांत(Basic Principles) के नाम से संबोधित किया और द्वितीय विभाग को व्यवहार (Practice) के नाम से!
प्रथम, गद्य विभाग है और इसके 15 अध्यायों में भाषा संवर्धन के विचार और सिद्धांत दिये गये है। द्वितीय, पद्य विभाग है और इसमें 108 प्रेरक कविताएं है, जो भाषा संवर्धन के लिए साहित्यिकों को विविध विषयों पर साहित्य का सर्जन करने के लिये प्रोत्साहित करती है और राह प्रदर्शित करती है।
जब हमने ग्रंथ की विषय वस्तु को सिद्धांत एवं व्यवहार इन दो विभागों में बांट दिया तब हमें पूरा विश्वास हो गया कि पूर्व-निर्धारित शीर्षक गलत तो नहीं था, लेकीन उसकी तुलना में नया शीर्षक ज्यादा सही , बेहतर एवं प्रभावशाली है।
6. भारतीय भाषा संस्थान मैसूर द्वारा स्वीकृत
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भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा संचालित भारतीय भाषा संस्थान (CIIL), मैसूर द्वारा इस ग्रंथ को अपने भारतवाणी नामक परियोजना में सम्मिलित किया गया है। भारतीय भाषाओं में निहित ज्ञान विभिन्न भाषाओं के माध्यम से प्रचारित – प्रसारित करना यह इस परियोजना का उद्देश्य है। भारत सरकार की महत्वपूर्ण परियोजना में पोवारी भाषा का ग्रंथ समाविष्ट हो जाने के कारण मातृभाषा पोवारी को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है।
7.निष्कर्ष
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साहित्यिक क्षेत्र के इस महत्वपूर्ण अनुभव से हमें दो प्रकार की महत्वपूर्ण सीख मिलती है। प्रथम, हमें किसी भी व्यक्ति द्वारा की गयी आलोचना सुनने के पश्चात अपना कार्य पहले की अपेक्षा ज्यादा बेहतर तरीके से संपन्न करना चाहिए। द्वितीय, कोई हितचिंतक व्यक्ति हमसे ज्यादा बेहतर कार्य की अपेक्षा करता हो तों स्वयं को उस योग्य बनाने का प्रयास करना चाहिए।
अंत में हम श्री धनराज जी भगत एवं मातृभाषा पोवारी के उत्थान संबंधी हमारे कार्य के आलोचकों को भी अति धन्यवाद देते हुए उनका आभार व्यक्त करना चाहेंगे कि जिनके महत्वपूर्ण सुझाव एवं आलोचना के कारण भाषा संवर्धन संबंधी हमारा ग्रंथ भौतिक और सामाजिक विज्ञान के ग्रंथों जैसा शीर्षक एवं स्वरूप धारण कर पाया । इस शीर्षक के साथ अब यह ग्रंथ न केवल लेखक के लिए अपितु पोवारी भाषा एवं पोवार समाज के लिए भी परम् गौरवास्पद है।
-समग्र पोवारी चेतना एवं सामूहिक क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
रवि.21/4/2024.
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