♦️ भोंसले घराने का शासन नागपूर में 1737 से 1818 तक था।उस समय नागपुर राज्य में प्रशासन की दृष्टि अनेक सूबों में बांटा गया था। सूबे का अधिकारी सुबेदार कहलाता था। इन सूबों में देवगढ़ नामक एक सुबा हुआ करता था।
♦️वर्तमान में पोवार समाज की घनी आबादी महाराष्ट्र के गोंदिया, भंडारा तथा मध्यप्रदेश के बालाघाट, सिवनी इन चार जिलों में पायी जाती है। इनमें से गोंदिया, भंडारा और बालाघाट जिले का अधिकांश प्रदेश देवगढ़ सुबे में समाविष्ट था।
♦️ प्रशासन की दृष्टि से देवगढ़ सुबे में अनेक परगने समाविष्ट थे।इन परगनों में परगने कामठा विशेष उल्लेखनीय था। प्रस्तुत लेखक ने 2008 से 2018 इस प्रदीर्घ कालखंड में “मराठाकालीन परगने कामठा ( 1751-1818)पर मौलिक अनुसंधान किया । यह शोध ग्रंथ भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग द्वारा संचालित ऐतिहासिक संशोधन परिषद (lCHR), नई दिल्ली द्वारा प्राप्त अनुदान से प्रकाशित किया गया।इस अनुसंधान में पोवार समाज के स्थिति संबंधी जो विभिन्न तथ्य (Facts) ज्ञात हुए उन्हें व्यवस्थित ढंग से बुनकर , मराठाकालीन परगने कामठा में पोवारों की क्या स्थिति थी? परगने कामठा के उत्कर्ष में उनका क्या योगदान था? वैनगंगा अंचल में पोवार समाज ने स्वयं को कैसे प्रस्थापित किया?इसका एक सुसंबद्ध चित्र प्रस्तुत करना,यह इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
1.कटक के बाराभाटी पर मराठों का जरिपटका
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मराठा शासनकाल में मध्य भारत भारत में स्थित कामठा जमींदारी एक बहुत बड़ी एवं उल्लेखनीय (Notable) जमींदारी थी। राजे रघुजी प्रथम (1737-1755) के समय कोलुबापू बहेकार एवं पोवार समुदाय के प्रतिभाशाली व्यक्ति कटक अभियान पर गये थे। इस अभियान में मराठों को ऐतिहासिक विजय प्राप्त हुई । परिणामस्वरुप कटक के बाराभाटी किले पर मराठों का जरिपटका फहराया गया। कटक को नागपुर राज्य में विलीन (1750) किया गया। इस विजय के कारण कटक ( ओडिशा) नागपुर राज्य का हिस्सा बन गया और राज्य की सीमा सीधे बंगाल की खाड़ी तक पहुंच गयी।
2. कामठा जमींदारी का उदय
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कटक विजय के उपलक्ष्य में नागपुर में भव्य विजयोत्सव (1751)का आयोजन किया गया था। इस विजयोत्सव के अवसर पर कोलुबापू बहेकार को कामठा की जमींदारी उपहार के रुप में दी गयी। (संदर्भ – The large and valuable Zamindari of Kamtha was first’ granted in the middle of the eighteenth century on a payment of ₹60 annually – Eyre Chatterson, Story of Gondwana, P.46)
3. पोवारों को कृषि उद्योग के लिए भूमि का उपहार
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मालवा से लगभग 1700 में पोवार समुदाय के लोग स्थानांतरित होकर वैनगंगा अंचल में आकर स्थाई रुप से बस गये थे। बख्त-बुलंद के शासनकाल में उनकी बसाहट तुमसर क्षेत्र तक सीमित थी। राजे रघुजी प्रथम के समय जब कोलुबापू बहेकार को कामठा जमींदारी दी गयी,उसी अवसर पर कटक विजय के उपलक्ष्य में पोवारों को तिरोड़ा ,कामठा, लांजी , रामपायली एवं कटंगी परगने में खेती उद्योग के लिए भरपूर कृषि योग्य भूमि उपहार के रुप में दी गई। परिणामस्वरुप अगले सौ साल(1850तक) में पोवारी गांवों की संख्या 325 तक पहुंच गयी। (संदर्भ -As a reward of assistance rendered to the Bhonslas in an expedition to Cuttack, they received land to the west of the Wyngunga.They also spread out over the northern part of the Wyngunga district, in the Pargannahs of Thurorah, Kompta, Lanjee and Rampylee,and over fifty years ago entered the waste land.The Tribe is now in the possession of three hundred and twenty -six villages,Hindu Tribes and Castes, volume ll, author m.a.s m.a.sherring, year 1879,P. 93 )
4. परगने कामठा की स्थापना (1751)
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कोलुबापू बहेकार को कामठा जमींदारी प्राप्त हुई उस समय उन्हें इस क्षेत्र की 1000 चौरस मील भूमि प्राप्त हुई,जो घने जंगल से व्याप्त थी। इस क्षेत्र में कृषि उद्योग विकसित करने के लिए कोलुबापू बहेकार ने तुमसर क्षेत्र के अनेक किसानों को आमंत्रित किया, अनेक उप-जमींदारियां एवं शिकमी जमींदारियां निर्मित की और परगने कामठा की स्थापना की। गोंड राजवंश के शासनकाल की बड़द एवं फुक्कीमेटा यह दो जमींदारी भी परगने कामठा में समाविष्ट की गयी।
5. कामठा जमींदार की प्रशासनिक स्थिति
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परगने कामठा की स्थापना करने के पश्चात कोलुबापू बहेकार कामठा के जमींदार तो पूर्ववत बनें रहें , लेकिन वें अब परगने कामठा के सर्वोच्च जमींदार भी बन गये।
कामठा में 1751से 1818 तक बहेकार घराने का शासन था। बहेकार घराने के कोलुबापू , गोंदिबापू एवं वीर राजे चिमना यह तीन जमींदार हुए। प्रत्येक जमींदार कामठा जमींदारी का शासक होने के साथ- साथ परगने कामठा का सर्वोच्च जमींदार भी हुआ करता था।
6. परगने कामठा में समाविष्ट जमींदारियां
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परगने कामठा में विभिन्न समय में नयी-नयी जमींदारियां बनते गयी। परगने कामठा में कामठा , हट्टा, लिंगा,किरनापुर, आमगांव, सालेकसा, डोंगरगांव , पलखेड़ा, बिंजली , बड़द, फुक्कीमेटा, तिरखेड़ी, रामा टोला, बोडुंदा, मलपुरी आदि अनेक जमींदारियां थी।
उपर्युक्त जमींदारियों में से कामठा ,हट्टा , लिंगा , किरनापुर , आमगांव सालेकसा और पलखेड़ा इन सात जमींदारियों में बहेकार घराने के व्यक्ति जमींदार हुआ करते थे। डोंगरगांव में डोये घराने का तो बिंजली में लोधी समाज के व्यक्ति का शासन रहा।
परगने कामठा में बड़द , फुक्कीमेटा , तिरखेड़ी, रामा टोला , बोडुंदा एवं मलपुरी इन छह जमींदारियों में पोवार समाज के प्रभावशाली व्यक्ति जमींदार थे। बड़द एवं फुक्कीमेटा में राहांगडाले घराने के, तिरखेड़ी , रामा टोला एवं बोडुंदा में कटरे घराने के और मलपुरी में ठाकुर घराने के जमींदार थे।
7.सेनापति बानाजी एवं तानाजी तुरकर
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मराठा शासनकाल में बड़े जमींदारों को अपनी सेना रखनी होती थी एवं युद्ध प्रसंगों में नागपुर के भोंसले शासन को सैनिक सहयोग करना पड़ता था। इसलिए कामठा जमींदार के पास सेना हुआ करती थी।काटी- बिरसोला परिसर में कोरणी गांव के पास परगने कामठा की सैनिक छावनी थी। उसके कुछ अवशेष आज भी यहां पाये जाते हैं।
बानाजी एवं तानाजी तुरकर नामक पोवार बंधु कामठा की सेना में कार्यरत थे।
क्षत्रिय, नौकरशाही एवं वफादार होने के कारण उन्हें सेनापति के रुप में नियुक्त किया गया था। ये दोनों भाई सिहोरा (तुमसर क्षेत्र )नामक गांव से आकर गिरोला ( काटी – बिरसोला क्षेत्र) में आकर बसे थें। उनका मुख्य व्यवसाय खेती- किसानी था। कालांतर में कामठा जमींदारी की सेना में वें कार्यरत हो गये। अपने सैनिक दायित्व के निर्वाह के अतिरिक्त बानाजी एवं तानाजी तुरकर ने परगने कामठा में कृषि उद्योग के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया।
8. पोवार मालगुजारों का उदय
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मराठा शासनकाल में सर्वोच्च स्थान पर पेशवा हुआ करता था। उसके अधीन राजा, सुबेदार, जमींदार, मालगुजार यह प्रशासनिक अधिकारी हुआ करते थे। परगने कामठा के उत्कर्ष के साथ -साथ यहां अनेक नये मालगुजार अस्तित्व में आये। मालगुजारों में कुनबी, लोधी एवं पोवारों का समावेश था। पोवार बहुल गांवों में पोवार समुदाय के मालगुजारों का उदय हुआ। पोवार समाज के लोग क्षत्रिय तो है ही, लेकिन वैनगंगा अंचल में इस समाज के लोगों की जमींदारी एवं मालगुजारी प्रस्थापित हो जाने के पश्चात जनमानस में इस समुदाय का गौरव बढ़ा।
9 सेनापतियों को उपहार में बारह गांव की मालगुजारी
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परगने कामठा के उत्कर्ष में सेनापति बानाजी और तानाजी तुरकर ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके उपकारों के प्रति कृतज्ञता का भाव मन मे होने के कारण कामठा के द्वितीय जमींदार गोंदिबापू बहेकार (1788-1816 ) ने उन्हें कामठा के उत्तर पश्चिम में जिस स्थान पर बाघ नदी वैनगंगा नदी में जाकर मिलती है, उस परिसर के काटी, बिरसोला,कोरणी, नीलज,दासगांव, सतोना, गर्रा,तेढ़वा, उमरी, शिवणी,माकड़ी एवं गिरोला इन पोवारों की घनी आबादी वाले गांवों की मालगुजारी उपहार स्वरूप दी। इस उदाहरण के द्वारा गोंदिबापू बहेकार ने समर्पण भाव से की गयी सेवा को सम्मानित करने का एक उंचा आदर्श समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया।
हिन्दू जीवन प्रणाली में बारह अंक को बहुत शुभ माना गया है। गोंदिबापू बहेकार ने इस मान्यता को महत्व देते हुए तुरकर बंधुओं को बारह गांव उपहार में दिए ।
हिन्दू जीवन प्रणाली के अनुसार ले़न -देन में पस्तुरी की पद्धति प्रचलित रही है। कोई भी वस्तु दूसरे को देते समय निर्धारित परिमाण से कुछ ज्यादा देने की परंपरा को “पस्तुरी” (Pasturi) कहा जाता है। इस परंपरा का निर्वाह करते हुए गोंदिबापू ने जिस समय तुरकर बंधुओं को 12 गांव की मालगुजारी उपहार स्वरूप दी,उसी समय उन्होंने उनकी कन्या को बिसरा(Bisra ) नामक गांव दहेज के रुप में तथा कासा (Kasa) नामक गांव एक ब्राह्मण परिवार को दान में दिया।( संदर्भ – वीर राजे चिमना बहादुर -2018, प्राचार्य ओ सी पटले,PP.68-69)
10.अनुसंधान की निष्पत्तियां
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10-1.पोवार समाज के अतीत की जानकारी
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एम. ए. शेरिंग द्वारा प्रस्तुत पोवारों संबंधी विवरण से ज्ञात होता है कि मराठा शासनकाल में कटक अभियान में सहयोग देने के कारण पोवारों को वैनगंगा अंचल में कृषि उद्योग के लिए विपुल भूमि उपहार स्वरूप प्राप्त हुई और उनका परगने तिरोड़ा, कामठा , लांजी, रामपायली क्षेत्र में विस्तार हुआ । लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में पोवारों ने अपने आप को कैसे प्रस्थापित किया? इसका विवरण इतिहास के किसी भी ग्रंथ में उपलब्ध नहीं हैं।
उत्तर मध्ययुगीन परगने कामठा पर किये गये अनुसंधान में हमें पोवार समाज के बानाजी एवं तानाजी तुरकर के संबंध में जानने का अवसर प्राप्त हुआ। विभिन्न समय पर पोवारों को मालगुजारी एवं जमींदारी किसे प्राप्त हुई इसकी जानकारी भी हमें अवगत हुई । इससे हम सहज अनुमान लगा सकते है कि मराठा शासनकाल में पोवार समाज के लोगों ने प्रशासन को सहयोग देकर और बदले में उपहार स्वरूप खेती- किसानी , मालगुजारी और जमींदारी प्राप्त करके वैनगंगा अंचल में स्वयं को प्रस्थापित किया।
10-2. शासकीय नीति की जानकारी
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नागपुर के युद्ध में अंग्रेजों ने आप्पासाहेब भोंसले को परास्त करने के कारण मराठा शासन1818 में समाप्त हुआ और उस स्थान पर ब्रिटिश शासन का प्रारंभ हुआ । अंग्रेजों ने मालगुजारी एवं जमींदारी पूर्ववत कायम रखी। इस आधार पर हम निश्चय पूर्वक कह सकतें है कि मराठा एवं ब्रिटिश इन दोनों शासनकाल में पोवार समुदाय के लोगों ने खेती – किसानी, मालगुजारी एवं जमींदारी के बल पर खुशहाली के साथ प्रतिष्ठापूर्ण अपना जीवन यापन किया।
11.उपसंहार(Conclusion)
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भारतवर्ष की आज़ादी के पश्चात नवयुग का अनुसरण करते हुए पोवार समाज ने शिक्षा और शहर की तरफ अपना रुख किया।पोवार समाज का अतीत गौरवशाली था इसलिए निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उसका भविष्य भी उज्ज्वल होगा।
-समग्र पोवारी चेतना एवं सामूहिक क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
सोम.29/4/2024.
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