राजस्थान की एक और वीरांगना “गोरां-धाय” की अलौकिक शौर्य गाथा (सत्रहवीं सदी की एक हृदयविदारक कहानी) -इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

0
203


♦️ जब सबसे बड़े त्याग की बात आती है तो पन्ना धाय का नाम विश्व विख्यात है, जिसने अपने बेटे का बलिदान दिया था । राजस्थान में यह मिसाल अकेली नहीं है, बल्कि एक और धाय मां हैं जिसने मारवाड़ के आन- बान और शान के लिए अपने कुलदीपक का बलिदान दिया था। उनका नाम गोरांधाय (Gora Dhay) है।
♦️ मारवाड़ की गोरांधाय के लिए सनातन धर्म- संस्कृति और मारवाड़ का अस्तित्व सर्वोपरी था। उसने मारवाड़ का राष्ट्र दीप प्रज्ज्वलित रखने एवं सनातन हिन्दू धर्म के संरक्षण के लिए ‌शैशव राजकुमार अजित सिंह को औरंगजेब के शिकंजे से छुड़ाकर सकुशल मारवाड़ ले आयी थी। अजीत सिंह के प्राणों की रक्षा के लिए उसने अपने कुलदीपक को क्रुर -अत्याचारी औरंगजेब के नज़र कैद में मृत्युशय्या पर छोड़ दिया था।
♦️ सम्राट व साम्राज्य ‌का इतिहास सभी बतलाते है,‌ लेकिन जिनके बलिदान से राष्ट्र खड़ा रहता है, धर्म तथा संस्कृति का रक्षण होता है उनके इतिहास से प्रेरणा लेना हमारा परम् कर्तव्य है।
1. गोरा धाय का परिचय —————————————-
गोरां धाय का जन्म 4 जून 1646 में जोधपुर के पास झंवर गांव में हुआ था। उनका जन्म राठौड़ राजपूत घराने में हुआ था। वह एक साहसी बाला थी। उनके पिता का नाम रतन जी टाक था और रुपा धाय( महाराजा जसवंत सिंह की धाय मां) उनकी माता थी।‌उनका विवाह मंडोर जोधपुर के मनोहर गहलोत के साथ संपन्न हुआ था। मनोहर गहलोत शासकीय अधिकारी थे।
2. मारवाड़ पर ऐतिहासिक संकट
———————————————
महाराजा अजीतसिंह का जन्म 19 फरवरी 1679 को हुआ। उनके जन्म के पूर्व ही काबुल अभियान में उनके पिता महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई थी।मारवाड़ के शासक की मृत्यु हो जाने के कारण औरंगजेब मारवाड़ पर अधिकार प्रस्थापित करना चाहता था।
औरंगजेब क्रुर एवं षड़यंत्रकारी था। उसने सरदारों एवं जसवंत सिंह की रानियों को दिल्ली बुलाया। जब वें दिल्ली पहुंचे और किसनगढ़ के रुपसिंह की हवेली में ठहरें हुए थे तब 16 जुलाई 1779 को औरंगजेब की सेना ने हवेली को घेर लिया और घोषित कर दिया कि अजित सिंह की परवरिश मुगल दरबार में होगी।
3. देशभक्त सरदारों के लिए चुनौती
———————————————–
इससे रुपसिंह की हवेली में रुके हुए राठौड़ समुदाय में बेचैनी फैल गयी। औरंगजेब की ये सियासत देशभक्त दुर्गादास राठौड़ और मारवाड़ के उमरावों के लिए के लिए एक बड़ी चुनौती थी । दुर्गा दास राठौड़, मारवाड़ के उमराव एवं राजपरिवार की निकटतम महिलाओं को ये समझने देर नहीं लगी कि औरंगजेब , राजकुमार अजीत सिंह का धर्मान्तरण करायेगा अथवा उचित समय आने पर निर्दयता पूर्वक उसकी हत्या करा देगा।
4. गोरांधाय का निर्णय
———————————
जिस समय औरंगजेब की सेना ने रुपसिंह की हवेली को घेरा डाला उस वक्त रानियों के साथ गोरा धाय भी मौजूद थी जिसका पुत्र एवं अजित सिंह की आयु समान थी । दोनों की शक्ल-सूरत भी लगभग एक जैसी थी । उसने पन्नाधाय की शौर्य गाथा पढ़ी थी एवं उनके त्याग और बलिदान से प्रेरित थी। इसलिए उसने मन बनाया कि यदि मारवाड़ के उमराव चाहेंगे तो वह राष्ट्रधर्म की रक्षा एवं मातृभूमि के सम्मान के लिए वह अपने पुत्र को राजकुंवर अजित सिंह के स्थान पर छोड़ कर राजकुमार के प्राणों की रक्षा कर सकती हैं।
5.दुर्गादास राठौड़ की योजना
—————————————-
गोरा मां के विचार जब दुर्गादास राठौड़ जैसे देशभक्त लोगों को अवगत हुए तो उन्हें अजित सिंह की मुक्ति की राह स्पष्ट दिखाई देने लगी और सब बहुत तेजी से उस दिशा में सोचना शुरु किया।
नियोजन के अनुसार गोरा धाय ने सफाई कर्मी का वेष धारण करके, टोकरे में अजीतसिंह को ‌रखके और उसपर कचरा झांक के उसने सुरक्षित रुप से अजीतसिंह को न केवल रुपसिंह की हवेली के बाहर बल्कि दिल्ली की सीमा के बाहर ‌ले गयी।
इसप्रकार गोरांधाय ने अपने कलेजे के टुकड़े को मृत्यु के मुख में धकेल कर राजकुमार अजीत सिंह के प्राणों की रक्षा की। बाद में राठौड़ सरदार अजीत सिंह को सुरक्षित स्थान पर लेके चले गये। इसके पश्चात प्रदीर्घ काल तक दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में मारवाड़ की स्वतंत्रता के लिए युद्ध लड़ा गया। गोरा धाय ने 20 वर्ष तक यानी जब-तक महाराजा नहीं बन जाते तब -तक अजीतसिंह का पालन-पोषण और देखभाल की।
‌गोरांधाय के पति की मृत्यु 1704 में हुई। इस समय मां गंगा धाय ने अग्नि स्नान करके मृत्यु का वरण कर लिया।
6.गोरांधाय का स्मारक
———————————
महाराजा अजीतसिंह ने मां गोरांधाय के प्रति कृतज्ञता पूर्वक जोधपुर में 1712 में एक स्मारक बनवाया है। जोधपुर में गोरांधाय के नाम से गोरंधा बावड़ी भी है।
अशोक गहलोत सरकार ने राजस्थान में उन्हीं के नाम से गोरां धाय पुनर्वास योजना चलाई है।
7. पन्नाधाय एवं गोरांधाय का त्याग और बलिदान: साम्य और भेद
——————————————
पन्नाधाय मेवाड़ राज्य की थी। उनके द्वारा किए गए अपने पुत्र चंदन के त्याग और बलिदान की घटना 1535 की है। उस त्याग और बलिदान के पूर्व रानी कर्णावती के नेतृत्व में 13,000 महिलाओं का जौहर, पन्नाधाय द्वारा रानी कर्णावती को उदय सिंह के पालन पोषण एवं रक्षा का वचन देना, बनवीर द्वारा चितौड़गढ़ में पन्नाधाय के आंखों के सामने उनके पुत्र चंदन की हत्या करना, पन्नाधाय द्वारा कीरत बारी की सहायता से उदय सिंह को चितौड़गढ़ के पश्चिम में लगभग 170 कि. मी. दूर कुंभलगढ़ ले जाना, कुंभलगढ़ में उदय सिंह का पालन-पोषण होना और बाद में उदय सिंह को मेवाड़ का महाराणा घोषित करना,आदि घटनाएं बहुत रोमांचक है।
गोरांधाय मारवाड़ राज्य की थी। उनके द्वारा किए गए अपने पुत्र के त्याग और बलिदान की घटना 1679 की है।इस घटना में गोरां धाय द्वारा राजकुमार अजित सिंह को औरंगजेब की कैद से मुक्त कराने के अपने पुत्र के त्याग और बलिदान का निर्णय लेना , अपने पुत्र को अजित सिंह के वस्र परिधान कराकर उसे दिल्ली में मृत्यु के लिए छोड़ देना और राजकुमार अजित सिंह को वहां से सुरक्षित मारवाड़ ले जाना, बीस वर्ष तक उसकी परवरिश करना और बाद में अजित सिंह का मारवाड़ के महाराजा घोषित किया जाना आदि सब घटनाएं भी बहुत रोमांचक है।
पन्नाधाय को अपने पुत्र का बलिदान बनवीर के षड़यंत्र के कारण देना पड़ा था। लेकिन गोरांधाय को अपने पुत्र का त्याग और बलिदान विदेशी आक्रांता बाबर के वंशज सम्राट औरंगजेब द्वारा अपनाई गई साम्राज्यवादी ,इस्लामीकरण एवं हिन्दुओं की क्रुरता पूर्वक हत्या, आदि नीति के कारण करना पड़ा था।
8.गोरांधाय का इतिहास में स्थान
———————————————
दोनों माताओं द्वारा दिए गए पुत्र के बलिदान के कारण और परिस्थितियां
भिन्न है। लेकिन पन्ना धाय एवं गोरांधाय इन दोनों का त्याग और बलिदान राजधर्म के पालन के लिए, मातृभूमि की आन- बान- शान के लिए दिया गया बलिदान था। गोरांधाय के त्याग और बलिदान में सनातन हिन्दू धर्म के संरक्षण का भाव भी निहित था। इसलिए गोरांधाय का त्याग और बलिदान का मूल्य पन्नाधाय के त्याग और बलिदान से कम आंकना उनके समर्पण के लिए अन्याय कारक साबित होगा। इसलिए अंततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि दोनों माताओं की शौर्य गाथा अथवा उनके द्वारा किया गया अपने प्रिय पुत्रों का त्याग और बलिदान अलौकिक है। दोनों बलिदानी माताओं में से किसी भी माता को प्रथम और द्वितीय स्थान निर्धारित करने का प्रयास, अमानवीय एवं असंवेदनशीलता का प्रतीक ही माना जाएगा।
-ओ सी पटले, आमगांव (M.S.)
बुध.1/5/2024.
♦️

Previous article‘त्या’आरोपीस १४ वर्षाचा सश्रम कारावास
Next articleमहाराष्ट्र का संक्षिप्त इतिहास ( प्राचीन काल से अब- तक)