1.विषय प्रवेश (Introduction)
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♦️वीर राजे चिमना बहादुर, मराठा शासनकाल में परगने कामठा के लोकप्रिय, शौर्यशाली एवं विख्यात जमींदार थे। राजधर्म के पालन के लिए उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ तलवार उठायी। उन्हें वैनगंगा वीर के नाम से संबोधित किया जाता था।
♦️ ब्रिटिश साम्राज्यवाद के कारण 1817 में एक साथ विभिन्न स्तर के तीन भारतीय शासकों के राष्ट्रप्रेम, मातृभूमि के प्रति प्रेम तथा राजनीतिक इच्छा -आकांक्षाओं पर पानी फिर गया। ये तीन शासक थे – पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय, नागपुर के राजे आप्पासाहेब भोंसले एवं परगने कामठा के जमींदार वीर राजे चिमना बहादुर! परिणामस्वरुप 1818 में अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई लड़ी गयी।
♦️1857 के भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम को सब जानते है। परंतु इसके पहले 1818 में अंग्रेजों के साम्राज्यवाद के खिलाफ एक आज़ादी की जो लड़ाई लड़ी गयी थी। उसे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्रामके नाम से जाना जाता है।
♦️ये आजादी की लड़ाई वैनगंगा एवं पचमढ़ी क्षेत्र में लड़ी गयी थी। वैनगंगा अंचल में आज़ादी की लड़ाई का नेतृत्व परगने कामठा के सर्वोच्च जमींदार वीर राजे चिमना बहादुर ने किया था। पचमढ़ी क्षेत्र में इसका नेतृत्व नागपुर के निर्वासित युवा राजा आप्पासाहेब भोंसले ने किया था।
♦️वीर राजे चिमना बहादुर के व्यक्तित्व को ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर परिभाषित करना इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
2.चिमना बहादुर का स्वतंत्र परिचय
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(1) चिमना बहादुर का बालपन
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वीर राजे चिमना बहादुर का जन्म 18 फरवरी 1782 को हुआ था। उनकी माता का नाम यशोदा तथा पिता नाम गोंदिबापू बहेकार था। गोंदिबापू बहेकार न केवल कामठा के जमींदार थे, बल्कि वें परगने कामठा मे निहित लगभग 12 जमींदारी के सर्वोच्च जमींदार थे। इस कारण उनकी स्थिति छोटे राजा के समान थी।
कामठा के जमींदार को नागपुर शासन के आदेश के अनुसार स्वयं की सेना रखना होता था। कामठा जमींदारी की सैनिक छावनी कामठा के उत्तर पश्चिम में लगभग 20 कि. मी. दूरी पर कोरनी
के जंगल में थी। इसके कुछ अवशेष आज भी कोरनी गांव के पास पाये जाते हैं। इस आधार पर हम कह सकते है कि चिमना बहादुर का जन्म एक समृद्ध, शौर्यशाली और राजनीति कुशल घराने में हुआ था।
(2)चिमना बहादुर का व्यक्तित्व
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चिमना बहादुर शक्तिशाली, निर्भय ,उत्साही एवं गतिशील व्यक्ति था।
वह अश्वारोहण एवं युद्ध कौशल में पारंगत था तथा राजनीति में उसकी रुचि थी। वह बचपन से ही किसी भी कठिनाई का सामना करने के लिए हरदम तैयार रहता था और किसी भी स्थिति में अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करता था। उसकी प्रतिभा एवं शौर्य देखकर ही लोगों ने उसे चिमना बहादुर कहना प्रारंभ कर दिया था। भविष्य मे जब वें कामठा के परिपूर्ण जमींदार बन गये तब लोग उन्हें वैनगंगा वीर अथवा वीर राजे चिमना बहादुर कहकर संबोधित करने लगे। मि. लॉरेन्स ने 1867 के बंदोबस्त प्रतिवेदन में कामठा जमींदारी के उदय का इतिहास लिखते समय ‘ चिमना बहादुर के लिए Vigorous Person शब्द का प्रयोग किया है।”( संदर्भ – Settlement Report,1867,PP. 92-96.)
(3)चिमना बहादुर की नागपुर में पैरवी
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कामठा के पूर्व में लगभग 20 कि .मी. दूरी पर आमगांव जमींदारी थी। यहां गोंदिबापू बहेकार के बड़े भाई पांडु बापू बहेकार का शासन था । लेकिन यह एक स्वतंत्र जमींदारी थी। पांडु बापू बहेकार का निधन 1796 में निधन हो गया। इस समय राजे रघुजी द्वितीय से आदेश लाकर लांजी के सोनबा नामक राजपूत जमींदार ने आमगांव जमींदारी पर अपना अधिकार कर लिया। यह कार्य कामठा के जमींदारी के लिए अपमानजनक थी।
आमगांव लांजी के दक्षिण में 25 कि.मी. दूरी पर , और कामठा के पूर्व में 20 कि. मी.दूरी पर स्थित है। लांजी के जमींदार ने जब आमगांव जमींदारी पर अधिकार कर लिया तब वीर राजे चिमना बहादुर की आयु केवल 14 वर्ष की थी, लेकिन रघुजी द्वितीय द्वारा किया गया यह पक्षपात किशोर चिमना बहादुर को असहनीय था।
इस छोटी अवस्था में भी चिमना बहादुर में पर्याप्त राजनीतिक सुझबुझ थी।
वह अपने पिता गोंदिबापू बहेकार की आज्ञा लेकर , आयु में अपने से बड़े आमगांव के अपने चचेरे भाई सोनबा को साथ लेकर नागपुर गया। वहां उसने आमगांव जमींदारी को परगने कामठा में सम्मिलित करना क्यों आवश्यक है? तथा इसे परगने लांजी में समाविष्ट कैसे अनुचित है? इसकी विनम्रतापूर्वक शानदार पैरवी की। इस पैरवी के समय चिमना बहादुर ने विभिन्न जमींदारियों की भौगोलिक स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘आमगांव के पूर्व में कामठा जमींदारी है और आमगांव के पश्चिम में स्थित बिंजली और सालेकसा जमींदारी भी परगने कामठा में निहित है। इसलिए परगने कामठा के अधिकारक्षेत्र के बीच में परगने लांजी की सीमा होना सर्वथा अनुचित है।”
राजे रघुजी द्वितीय ने चिमना बहादुर की पैरवी सुनकर आमगांव जमींदारी को कामठा की उप-जमींदारी बनाने का तथा सोना बापू बहेकार को आमगांव का जमींदार घोषित करने का मानस बनाया।
(4)आमगांव जमींदारी की प्राप्ति
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इसके पश्चात चिमना बहादुर, नागपुर शासन के सही- सिक्के के साथ अपने भाई सोनाबापू के नाम आमगांव जमींदारी की सनद ले आया और साथ ही साथ आमगांव जमींदारी को कामठा की उप-जमींदारी के रुप में मान्यता का आदेशपत्र भी ले आया।
(5) चिमना बहादुर की लोकप्रियता
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नागपुर के राजे रघुजी द्वितीय द्वारा आमगांव जमींदारी के संबंध में लिए गए निर्णय से कामठा के बहेकार में खुशी का माहौल था। इसलिए बहेकार घराने द्वारा 1796 में बहुत हर्षोल्लास के साथ सोना बापू का आमगांव के जमींदार के रुप में राज्याभिषेक समारोह संपन्न कराया गया था। इस घटना के कारण न केवल परगने कामठा में बल्कि नागपुर राज्य में किशोर चिमना बहादुर का नाम लोकप्रिय एवं चर्चा का विषय बन गया।
(6)राज-काज में सहभागिता
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चिमना बहादुर एक आज्ञाकारी पुत्र होने के कारण वें आमगांव जमींदारी की सनद लाने के पश्चात अपने पिता गोंदिबापू को राजकाज और प्रशासन के सुसंचालन में सहयोग करते रहे तथा परगने कामठा में कृषि उद्योग में विकास के लिए प्रयत्नशील रहे।
पिता- पुत्र दोनों नागपुर राज्य के प्रति निष्ठावान, तथा परगने कामठा की प्रजा के विकास के लिए प्रतिबद्ध होने के कारण उनके प्रयासों से संपूर्ण मध्य-भारत में परगने कामठा को एक समृद्धशाली, शक्तिशाली एवं नागपुर राज्य के प्रति निष्ठावान परगने के रुप में ख्याति प्राप्त हुई।
(7) राजधानी नागपुर की राजनीति
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राजे रघुजी का1816 में निधन हुआ।उनका पुत्र परसोजी अपंग होने के कारण भोंसले घराने का एक योग्य व्यक्ति होने के कारण नागपुर में आप्पासाहेब भोंसले का शासन प्रस्थापित हुआ।
राजे रघुजी द्वितीय के शासनकाल में की गयी एक संधि के अनुसार ब्रिटिश शासन ने अपनी रेज़ीडेंसी की स्थापना की थी। यहां रिचर्ड जेनकिन्स नामक एक रेज़ीडेंट नियुक्त था।
रघुजी द्वितीय के पश्चात आप्पासाहेब के खिलाफ बाका बाई नामक उनकी विधवा पत्नी ने सत्ता प्राप्ति के लिए षड़यंत्र करना प्रारंभ किया। इस कारण रेज़ीडेंट जेनकिन्स राजघराने की इस फूट का लाभ उठाने के लिए और नागपुर राज्य पर ब्रिटिश सत्ता प्रस्थापित करने के लिए प्रयत्नशील हो गया।
(8) चिमना बहादुर को जमींदारी की सनद
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राजधानी नागपुर में जब रेज़ीडेंट जेनकिन्स की कूटनीति के कारण आप्पासाहेब के लिए शासन संचालन में संकट परेशानियां उत्पन्न की जा रही थी, तब उस संकटपूर्ण स्थिति मे इधर कामठा के जमींदार गोंदिबापू बहेकार ने अपने पुत्र चिमना बहादुर को कामठा की संपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय लिया। पिता का आदेश होते ही “चिमना बहादुर ने नागपुर जाकर आप्पासाहेब भोंसले को ₹ 3 लाख नजराना ( अथवा उत्तराधिकार शुल्क)देकर अपने नाम से कामठा जमींदारी की सनद प्राप्त की।” 1. इसप्रकार 1816 में चिमना बहादुर कामठा के तीसरे जमींदार नियुक्त हुए।इस समय चिमना बहादुर की आयु 42 वर्ष की थी।( संदर्भ -Bhandara District Gazetteer 1779,P.136)
(9)कामठा के सैनिक सामर्थ्य में वृद्धि
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रेज़ीडेंट जेनकिन्स कट्टर साम्राज्यवादी था एवं वो प्रतिदिन अपनी कूटनीति के सहारे नागपुर राज्य को युद्ध की ओर धकेलने का प्रयास कर रहा था।
वीर राजे चिमना बहादुर पर नागपुर राज्य के प्रति निष्ठा के संस्कार उनके दादा कोलुबापू बहेकार एवं पिता गोंदिबापू बहेकार से ही मिले थे। कामठा के जमींदार एवं नागपुर के भोंसले राजवंश के बीच अत्यंत आत्मीयता पूर्ण संबंध थे। राजे जानोजी भोंसले को पुत्र न होने के कारण गोंदिबापू बहेकार का मानस पुत्र माना था। उसी प्रकार राजे रघुजी द्वितीय का पुत्र परसोजी भोंसले अपंग होने की वजह से वीर राजे चिमना बहादुर को अपना मानसपुत्र माना था।
नागपुर में चल रही राजनीति को जानकर चिमनाजी भोंसले को अनुमान हो गया था कि नागपुर राज्य के साथ- साथ परगने कामठा भी युद्ध की ओर धकेला जा रहा है। इसलिए उन्होंने गुप्त रुप से अपना सैनिक सामर्थ्य बढ़ाना प्रारंभ कर दिया।
(10) नागपुर का युद्ध (1817)
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प्लासी का युद्ध (1757) और बक्सर के युद्ध (1764) में विजय के कारण अंग्रेजों का बंगाल, बिहार, उड़िसा, मद्रास पर अधिकार प्रस्थापित हो गया था। इसके बाद उनका अगला लक्ष्य मराठा साम्राज्य था।
अंग्रेजों ने 1817 में पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय को खड़की के युद्ध में परास्त करके उसके अधीन प्रदेश पर अधिकार प्रस्थापित कर लिया। इसी वर्ष अंग्रेजों ने नागपुर के युद्ध में आप्पासाहेब भोंसले को पराजित करके महाल स्थित उनके महल पर जरिपटका के स्थान पर युनियन जॅक फहरा दिया और आप्पासाहेब
को नज़र कैद कर लिया।
(11)नागपुर राज्य में असंतोष
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आप्पासाहेब नागपुर राज्य की जनता में बहुत लोकप्रिय थे। सभी किलेदार उनके प्रति वफादार थे। इसलिए जब भी अंग्रेजी सेना किसी किले पर अधिकार प्रस्थापित करने जाती थी तो उन्हें मराठों के विरोध का सामना करना पड़ता था।
आप्पासाहेब ने गुप्तचरों के माध्यम से पेशवा बाजीराव द्वितीय के साथ संपर्क प्रस्थापित कर अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का युद्ध छेड़ने की योजना बना रहे थे। नागपुर के कुछ देशद्रोही व्यक्तियों के द्वारा अंग्रेजों को इसका पता चल जाने के कारण उन्होंने पेशवा बाजीराव द्वितीय को कैद कर लिया। और आप्पासाहेब को जबलपुर की जेल में रखने के लिए रवाना कर दिया।
(12)पेशवा का आत्मसमर्पण
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पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों के जुल्मों के कारण आत्मसमर्पण कर दिया और अंग्रेजों द्वारा प्राप्त पेंशन पर आगे का अपना जीवन गंगा नदी के किनारे ब्रम्हा व्रत में व्यतीत किया।
(13)आप्पासाहेब का रहस्यमय पलायन
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अंग्रेज अधिकारी आप्पासाहेब को लेकर जब जबलपुर जा रहें थे तब, जबलपुर के दक्षिण में रायचूर नामक स्थान में एक रात में उनका मुकाम था। यहां पर आप्पासाहेब ने रात में 2-3 बजे वेषांतर किया और वें यहां से अपने विश्वस्त साथी राजाराम के साथ पलायन कर गये। यहां से सीधे वें पचमढ़ी गये और वहां आश्रय लिया।
(14 )पचमढ़ी में युद्ध का नियोजन
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पचमढ़ी में आप्पासाहेब भोंसले, पचमढ़ी का ठाकुर मोहनसिंह, कामठा के वीर राजे चिमना बहादुर, हरई का गोंड राजा चैन शाह,छत्तु पिंढ़ारी आदि व्यक्ति एकत्रित होकर स्वतंत्रता संग्राम की एक योजना बनाई। इस योजना के अनुसार यह युद्ध पचमढ़ी और वैनगंगा क्षेत्र में लड़ने का निर्धारित किया गया। पचमढ़ी क्षेत्र में नयी सेना भर्ती करके आप्पासाहेब के नेतृत्व में युद्ध लड़ना तय हुआ। अंग्रेजों के खिलाफ वैनगंगा अंचल में युद्ध छेड़ने का दायित्व वीर राजे चिमना बहादुर ने अपने कंधों पर लिया।
(15)1818 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का स्वरूप
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भारत में अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का प्रथम युद्ध नागपुर के विस्थापित राजा आप्पासाहेब भोंसले,कामठा के जमींदार वीर राजे चिमना बहादुर,हरई का गोंड राजा चैनशाह एवं पचमढ़ी का ठाकुर मोहनसिंह के नेतृत्व में लड़ा गया । यह युद्ध जुलाई 1818 से फरवरी 1819 इस कालखंड में लड़ा गया। युद्ध उत्तर में सागर दमोह से दक्षिण में मेलघाट तक और पश्चिम में पचमढ़ी से पूर्व में लांजी की पहाड़ियां इतने विस्तृत क्षेत्र में लड़ा गया।
(15)युद्ध में चिमना बहादुर की भूमिका
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चिमना बहादुर कामठा के जमींदार तो थे ही, लेकिन उत्तर में सिवनी -छपारा से दक्षिण में प्रतापगढ़ तक और पश्चिम में वैनगंगा नदी से पूर्व में लांजी तक सभी जमींदार उन्हें अपना नेता मानते थे। इसलिए इस स्वतंत्रता संग्रामके समय आप्पासाहेब के सभी सहयोगियों चिमना बहादुर,साधन – संपत्ति, सामर्थ्य एवं प्रभाव की दृष्टि से सबमें अधिक शक्तिशाली सहयोगी माने जाते थे। इस स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने लगभग आप्पासाहेब के बराबर का योगदान दिया।( संदर्भ – In respect of resources and influence,Chimna Patel, who was at the head of this insurrection,was of superior consequence to any of Appasaheb’s partisans.-dispech No.38 of 10th January 1819, Resident Jenkins.)
क्रमशः…
ओ सी पटले
शनि.4/5/2024.
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