छत्तीस कुल क्षत्रिय पंवार(पोवार) राजपूत समाज का परिचय और उसके वैनगंगा क्षेत्र में आने के बाद बसकर एक विशेष पहचान के साथ अपने मूल अस्तित्व, संस्कृति और पहचान को बनाये रखने के वर्तमान में किये जा रहे प्रयास

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ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार मालवा राजपुताना के राजपूत क्षत्रियों का विभिन्न कालक्रमों में मध्यभारत में आगमन होता रहा है। पंवार राजा मुंज और राजा भोज के समय तक मध्यभारत के बहुत बड़े क्षेत्र पर उनका शासन स्थापित हो गया था और उनके भतीजे राजा लक्ष्मणमन देव तथा राजा जगदेव पंवार, खुद विदर्भ में आकर मध्यभारत के बड़े भूभाग पर शासन किया था। इसके बाद बाद भी कई जत्थों में विभिन्न कारणों से उत्तर- पश्चिमी भारत से मध्यभारत में राजपूतों का आगमन होता रहा। इसी क्रम देवगढ़ और नागपुर के राजाओं के आव्हान पर सन १७०० से १७५० के बीच विभिन्न कुल के राजपूत सपरिवार, विदर्भ के नगरधन(रामटेक) नागपुर में आये फिर उसके कुछ वर्षों के बाद वैनगंगा क्षेत्र में स्थाई रूप से बस गये। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार पुरातन क्षत्रियों के छत्तीस कुल होते थे और नगरधन में इन छत्तीस क्षत्रियों के वंशज, एक क्षत्रिय संघ के रूप में इस क्षेत्र में स्थाई रूप से बस गये और इन्हे ही छत्तीस कुल पंवार(पोवार) कहा गया। आज यह समूह एक जातीय रूप में मुख्य रूप से बालाघाट, गोंदिया, सिवनी, भंडारा और नागपुर में निवास करने वाला एक महत्वपूर्ण जातीय समूह है जिसने अपनी मेहनत और त्याग से इस क्षेत्र में एक विशेष पहचान बनाई है।
मध्य भारत में छत्तीस कुल पंवारों के संगठन और पुनर्जागरण काल:
मालवा राजपुताना के क्षत्रियों के एक छत्तीस कुलीन महासंघ ने इस क्षेत्र में बसने के बाद अपने समुदाय के सामाजिक-सांस्कृतिक नियम बनाये और अपने वैवाहिक रिश्ते, वैनगंगा क्षेत्र में अपने साथ आकर स्थाई रूप से बसने वाले क्षत्रिय जत्थे तक ही सीमित रखा और संगठित होकर अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान बचाकर रखी जो आज भी कायम है। भारतवर्ष में उन्नीसवी सदी में विभिन्न रूप में सामाजिक और शैक्षणिक उत्थान के लिये क्षेत्रवार अनेक पुनर्जागरण आंदोलन चले और पंवार समाज भी इससे अछूता नही रहा। हालांकि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से क्षत्रिय पोवारों ने हमेशा, संगठित रहकर अपनी पहचान हमेशा कायम रखी लेकिन आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ समाज में बढ़ती बुराइयों को रोकने के लिये कदम उठाना भी शुरू किया तथा साथ में अपने समुदाय के उत्थान के लिये मिलकर निरंतर प्रयास करते रहे। इन्ही प्रयासों के तहत, पोवार राजपूतों को मराठा काल की तरह ब्रिटिश शासन में भी विभिन्न महत्वपूर्ण पद प्राप्त हुये। छत्तीस कुल पंवारों को वैनगंगा क्षेत्र के अलावा बैहर, परसवाड़ा, मंडला, छिंदवाड़ा में भी अनेक शासकीय पद प्राप्त हुये जिससे इन क्षेत्रों में पोवारों का विस्तार हुआ। छत्तीस कुल पंवारों को उनके अस्तित्व, पहचान और इतिहास से परिचित कराने के लिये, “पँवार धर्मोपदेश” का प्रकाशन कर छत्तीस कुलों के मध्य एकता बढ़ाने के लिये इन्हे पोवारों का छत्तीस धाम कहा गया। इससे सामाजिक चेतना बढ़ी और राष्ट्रीय पुनर्जागरण के साथ छत्तीस कुल पंवारों के सर्वांगीण विकास, सामाजिक-सांस्कृतिक उत्थान तथा समाज में मांसाहार और शराब को रोकने के साथ-साथ महिलाओं सहित सभी के लिये शिक्षा के प्रसार-प्रसार हेतु पोवार संघ के द्वारा पंवार जाति सुधारिणी सभा, पंवार राममंदिर समिति, सिहारपाठ, पंवार शिक्षा समिति, नूतन पंवार संघ, मध्यप्रान्त और बेरार क्षत्रिय पंवार संघ की स्थापना हुई। जिससे समाज में संगठनों का गठन कर समाजोत्थान हेतु सामूहिक प्रयास करने की प्रेरणा मिली।
देश की स्वंत्रतता के बाद समाज पर नई चुनौतियों का संकट :
भारत की स्वतंत्रता तक पोवारों ने कृषि सहित अनेक क्षेत्रों में खूब तरक्की की जो देश के स्वतंत्र होने के बाद भी निरंतर बढ़ती गई। समाज में क्षेत्रवार संगठन बनते रहे पर देश में प्रजातंत्रिक शासन व्यवस्था के कारण ये सभी संगठन, राजनीतिक विचारधारा के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे और धीरे-धीरे समाज की सांस्कृतिक अवनती का दौर शुरू हो गया। राजनीतिक और स्वार्थपरक कारणों से गलत इतिहास गढ़कर अन्य जातियों का पोवारों के साथ बेमेल एकीकरण के प्रयास किये गये जिससे नई पीढ़ी में भ्रम की स्थिति हो गई। साथ में अधिनिकता और भौतिकवाद के प्रभाव से सदा अपनी संस्कृति, पहचान और एकता के प्रति सजग रहने वाला समाज धीरे-धीरे इससे दूर होने लगा। समाजजन अपनी भाषा और संस्कृति से दूर होने लगें और “पँवार धर्मोपदेश” का आव्हान की, “मत भूलो अपनी छत्तीस कुरीय पहचान”, को भूलने लगें। इससे धर्मान्तरण, अंतरजातीय विवाह, सनातन विरोधी पंथ और विचारों का अतिक्रमण, समाज का नाम बदलाव, नैतिक पतन, सामाजिक धरोहर पोवारी भाषा का विलोपन, छत्तीस कुलों की संगठित एकता में कमी आदि अनेक सामाजिक समस्याएं छत्तीस कुल पोवार समाज के सामने आकर समाज के मूल अस्तित्व को ही चुनौती देने लगी और ये विघटनकारी ताकतें किसी न किसी रूप में आज भी सक्रिय है।
क्षत्रिय पंवार समाज में नवीन चेतना का उदय :
सन २०२० का लॉकडाउन, समाज के प्रबुद्धजनों को जोड़ने के लिये एक अवसर के रूप में सामने आया और उन्होंने समाज के अस्तित्व, इतिहास और संस्कृति पर चिंतन कर इस पर विघटनकारी ताकतों के प्रभाव को खत्म करने के लिये अपने पुरातन छत्तीस कुल पंवार क्षत्रिय संघ को पुनर्जीवित किया। इसी क्रम में पोवारी साहित्य और सामाजिक सांस्कृतिक उत्कर्ष संस्था, अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ, क्षत्रिय पंवार(पोवार) समाजोत्थान संस्थान जैसे संगठनों की स्थापना हुई और इसी क्रम में छत्तीस कुल पोवारों के मूल इतिहास की खोज के साथ समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहर, पोवारी भाषा को जीवित करने के लिये सौ से भी अधिक सामाजिक चिंतक, साहित्यकार, गीतकार, कवि, लेखक, इतिहासकार आदि दिन-रात प्रयास कर रहे है।
क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ का पुनर्जन्म और पोवारी संस्कृति के संरक्षण के प्रयास:
पोवारी भाषा के संरक्षण के लिये अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार(पोवार) महासंघ के द्वारा प्रतिवर्ष हिंदू नववर्ष के दिन “पोवारी दिवस” मनाया जाता है। इसी क्रम में पंवार महासंघ के द्वारा राजा भोज जन्मोत्सव कार्यक्रम के साथ “राष्ट्रीय पोवारी साहित्य सम्मेलन” का आयोजन किया जा रहा है। इसी प्रकार ०७/०५/२०२४ से पंवार महासंघ के द्वारा साप्ताहिक पत्रिका, “पोवार दर्पण” की शुरुवात की गई है। पोवारी भाषा को बच्चों में लोकप्रिय बनाने के लिये मासिक बाल ई-पत्रिका, “झुंझुरका” का प्रकाशन होता है। पोवारी साहित्य और सांस्कृतिक समूह के द्वारा साप्ताहिक कार्यक्रम, “पोवारी साहित्य सरिता” का आयोजन पंवार(पोवार) महासंघ के द्वारा किया जाता है। क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ के द्वारा युवाओं के उत्थान के समय-समय पर मार्गदर्शन कार्यक्रम का आयोजन कर उनको रोजगार उपलब्ध कराने के लिये यथा सम्भव प्रयास किये जा रहे हैं। इस संस्था के द्वारा अनेक कृषक कल्याण कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं और साथ में समाज के हर वर्ग को अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक से जोड़ने के लिये अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।
समाज और संगठनों से आव्हान :
पोवारी संस्कृति के रक्षण के साथ समाज के सर्वांगीण एवं सतत् विकास के लिये समाज के सभी संगठनों को निस्वार्थ भाव से निरंतर कार्य करने की आवश्यकता है। पिछले चार वर्षों में छत्तीस कुल पंवार(पोवार) समाज के सही इतिहास और पहचान को सामने लाया गया है जिसे हर स्वजातीय भाई-बहन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। ये सभी शोध, ऑनलाइन उपलब्ध है जिसे कोई भी कहीं से भी निशुल्क पढ़ कर अपनी सही पहचान और संस्कृति से परिचित हो सकता है। इस तरह के कार्यक्रमों से पोवार समाज की सांस्कृतिक अवनती पर काफी हद तक विराम लगा है और इससे अनेक सामाजिक समस्याओं के समाधान में निश्चित ही सहायता मिल सकेगी तथा अपनी प्राचीन क्षत्रिय परम्पराओँ के अनुरूप व्यवहार करने में सहायता मिलेगी।
क्षत्रिय पंवार(पोवार) समाजोत्थान संस्थान, बालाघाट