हम विद्रोह की राह से नहीं, क्रांति की राह से पोवार समाज को समृद्धशाली बनायेंगे…! (We will make the Powar community prosperous not through rebellion but through revolution) -इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

0
178
♦️विद्रोह और क्रांति में एक महत्वपूर्ण अंतर होता है। विद्रोह किसी के खिलाफ होता है। क्रांति अपना परिष्कार है।
♦️ विद्रोह में किसी को हटाना होता हैं। क्रांति में किसी को हटाना नहीं होता। क्रांति तुम्हें बताती है कि बस तुम्हें ऐसा ही होना है।
♦️ क्रांति एक रोशनी है, मार्ग है,चमक है।
क्रांति में आकर्षण होता है, दूसरों का ध्यान आकर्षित करने की क्षमता होती है। क्रांति असरदार होती है। युवाओं को बहुत शीघ्र प्रभावित करती है।
♦️ क्रांति में सोचना, योजना बनाना,सशक्त विचारों के द्वारा समाज में नयी चेतना का संचार करना , विरोध का प्रतिरोध करना, सफलता की उम्मीद रखना, पूरी ताकत से कार्य करना और किए गए कार्य से समाज को उन्नत करना ये मुख्य चरण होते हैं।
♦️ वर्तमान पोवार समाज में सामाजिक क्रांति की आवश्यकता ‌,‌ क्रांति के उद्देश्य एवं क्रांति की पार्श्वभूमी स्पष्ट करना यह इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
1.समाज में क्रांति की आवश्यकता
———————————————एक अच्छे समाज निर्माण के लिए न केवल भौतिक और शैक्षणिक विकास की आवश्यकता होती है, बल्कि समाज के सदस्यों में अपनी मातृभाषा, संस्कृति, धर्म और ऐतिहासिक पहचान के प्रति प्रेम, अस्मिता एवं स्वाभिमान की भी आवश्यकता होती है। वर्तमान पोवार समाज में अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति स्वाभिमान की कमी महसूस की जा रही थी है। इसलिए इस समाज में सामाजिक क्रांति की नितांत आवश्यकता है।
हम अपने समाज की युवाशक्ति को मातृभाषा , संस्कृति, सनातन हिन्दू धर्म और ऐतिहासिक पहचान का महत्व अवगत कराते हुए उसमें इन सब तत्वों के प्रति प्रेम, अस्मिता और स्वाभिमान विकसित करने का कार्य अविरत दिन – रात करते है। इस कार्य को हम समग्र क्रांति के नाम से संबोधित करते है। इसमें वैचारिक क्रांति, भाषिक क्रांति, साहित्यिक क्रांति, सामाजिक क्रांति और सांस्कृतिक क्रांतियों का एवं सभी प्रकार के सुधारों का समावेश है।
2. क्रांति के महत्वपूर्ण उद्देश्य
—————————————–
पोवार समाज को समृद्धशाली बनाना यह हमारी क्रांति का अंतिम लक्ष्य है। समृद्धशाली समाज का अभिप्राय केवल आर्थिक समृद्धि तक सीमित नहीं है।इस संकल्पना में समाज को वैचारिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टि से समृद्ध करना यह भाव निहित है। अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमरे उद्देश्य और कार्य निम्नलिखित है –
(1) युवाशक्ति का वैचारिक विकास करना। उसमें अपने समाज का हित- अहित समझने का उचित दृष्टिकोण विकसित करना।
(2) युवाशक्ति में संस्कृति की संकल्पना को समझने की योग्यता विकसित करना एवं उसे अपनी संस्कृति के संरक्षण – संवर्धन के लिए प्रेरित करता।
(3) युवाशक्ति में समाज के प्रति, त्याग और समर्पण का भाव विकसित करना। समाज के निर्बल घटकों को सहयोग देने और ऊंचा उठाने का भाव विकसित करना। (4) मातृभाषा पोवारी को विकसित कर उसे भाषा का दर्जा दिलाना।
(5)पोवार समाज में साहित्यिक क्रांति को सफल करना। युवाशक्ति को साहित्य एवं सामाजिक माध्यम (social media) के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना।
(6) युवाशक्ति में समाज की ऐतिहासिक पहचान के प्रति अस्मिता और स्वाभिमान जागृत करना।
(7) युवाशक्ति में सनातन हिन्दू धर्म, परिसर एवं राष्ट्र के प्रति प्रेम, अस्मिता एवं स्वाभिमान विकसित करना।
3.पोवार समाज का स्थानांतरण
———————————————
पोवार समाज लगभग 1700 में मालवा से स्थानांतरित हुआ एवं वैनगंगा अंचल में स्थाई रुप से बस गया। उस समय हमारे पूर्वजों ने क्या धन-दौलत साथ में लाया था? ये तो शायद किसी को ज्ञात नहीं है।
‌‌ परंतु समाज का लोकसाहित्य,संस्कृति एवं परंपरा एवं जीवनशैली को देखते हुए हम निश्चित रूप से कह सकते कि हमारे पूर्वजों ने अपने साथ अपनी मातृभाषा पोवारी, पोवारी संस्कृति, पोवारी लोकसाहित्य, विवाह गीत, सनातन हिन्दू धर्म के प्रति निष्ठा , जीवन दर्शन और जीवनशैली ले आये थे।
4.पोवार समाज की आबादी
————————————-
पोवार समाज की घनी आबादी केंद्रीय भारत के वैनगंगा अंचल में पायी जाती है। मध्यप्रदेश के बालाघाट एवं सिवनी और महाराष्ट्र के गोंदिया एवं भंडारा जिले में लगभग 15 लाख जनसंख्या है। जनश्रुति से ज्ञात होता है कि जब यह समाज मालवा से स्थानांतरित होकर वैनगंगा अंचल में स्थाई हुआ, तब इसकी आबादी लगभग 4 हजार थी।
5. पोवार समाज का विस्तार
—————————————
पोवार समाज लगभग 1700 में स्थानांतरित हुआ था। इस समय वैनगंगा अंचल में देवगढ़ नामक राज्य था, जहां बख़्त बुलंद का शासन हुआ करता था।
ऐतिहासिक विवरणों से अवगत होता है कि पोवार समाज के लोग सर्वप्रथम रामटेक के समीप नगरधन आये थे। बख्त-बुलंद के समय उसने तुमसर क्षेत्र में अपने गांव बसाये। मराठा शासनकाल (1737-1818) में वें परगने तिरोड़ा कामठा, लांजी , रामपायली, कटंगी तथा वर्तमान सिवनी जिले के क्षेत्र में फैल गये और किसान, मालगुजार, जमींदार के रुप में प्रस्थापित हुए।
ब्रिटिश काल अथवा उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में पोवार समाज वर्तमान बालाघाट जिले के परसवाड़ा तथा बैहर क्षेत्र में बसा तथा खेती उद्योग को विकसित किया।इस कार्य में अंग्रेज अधिकारियों को लछमन पोवार, रोशना के जीवना पटेल, आदि पोवार समाज के प्रभावशाली व्यक्तियों ने सहयोग दिया। तात्पर्य, अठारहवीं एवं उन्नीसवीं सदी में वैनगंगा अंचल में जो कृषि उद्योग में क्रांति हुई, उसमें पोवार समाज का महत्वपूर्ण योगदान है।
6. आज़ादी के पहले शैक्षणिक स्थिति
————————————————-
आज़ादी के पूर्व पोवार समाज की औपचारिक शिक्षा में विशेष दिलचस्पी नहीं थी। बहुत मुश्किल से कुछ लोग चौथी कक्षा उत्तीर्ण करते थे। लेकिन जो थोड़ा बहुत पढ़ लेते थे वें रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, भागवत कथा आदि ग्रंथ पढ़ते और दूसरों को सुनाते थे। इन ग्रंथों के माध्यम से लोगों को अनौपचारिक रुप से जीवन शिक्षा प्राप्त होती थी।
शिक्षा का प्रचार -प्रसार यद्यपि कम था, लेकिन अपनी मातृभाषा,संस्कृति, धर्म, पहचान, समाज का ऐतिहासिक नाम आदि के प्रति किसी के मन में कोई द्वंद्व (Conflict) नहीं था।
ब्रिटिश काल में टेकाड़ी ( बालाघाट) के टुंडी लाल तुरकर साहाब (कृषि विभाग)और चतुर्भुज पोवार(हेडमास्टर ) समान कुछ ही व्यक्ति थोड़ा ज्यादा पढ़े लिखे पाये जाते थे।
7. आज़ादी के पश्चात शिक्षा की स्थिति
———————————————–
भारत की आज़ादी के पश्चात पोवार समाज में शिक्षा का खूब प्रचार -प्रसार हुआ। समाज में शिक्षक, प्रोफेसर, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर आदि की उल्लेखनीय संख्या हुई। स्वाभाविकता सामाजिक संगठनों की बागडोर इस नये प्रबुद्ध वर्ग के हाथों में गयी।
भारत ने आज़ादी के पश्चात प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली अपनाई थी। इसलिए यहां व्यक्ति स्वतंत्रता वादी, आधुनिकीकरण, पाश्चात्यीकरण, वामपंथी, धर्मनिरपेक्षतावादी, बहुजन वादी, आदि विचारधारा की आंधी भी आयी। इससे हमारे समाज के शिक्षित कर्णधार प्रभावित एवं दिग्भ्रमित भी हुए और मातृभाषा, संस्कृति, समाज की स्वतंत्र पहचान नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील हुए। इसकारण पूर्ण पोवार समाज दिग्भ्रमित हुआ और समाज में मातृभाषा पोवारी, समाज का ऐतिहासिक नाम, समाज की पहचान, संस्कृति, सनातन हिन्दू धर्म के प्रति निष्ठा आदि. सभी के प्रति‌ उदासीनता एवं पोवार समाज के स्वतंत्र अस्तित्व का संकट उपस्थित हुआ।
8. समग्र क्रांति अभियान की शुरुआत
———————————————–
आज़ादी के पश्चात हमारे समाज में मातृभाषा, संस्कृति, संस्कार, पहचान समाज का ऐतिहासिक नाम, आदि पर संकट के बादल मंडराने लगे। परिणामस्वरुप अंतर्जातीय विवाह, धर्मांतरण, सनातन हिन्दू धर्म का तिरस्कार, विवाह संस्कार में विकृतियां, मांस भक्षण, मदिरापान, आदि समस्याएं अपनी जड़ें जमाने लगी।इन सब संकटों से समाज को बचाने के उद्देश्य से 2018 में भाषिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक क्रांति की शुरुआत की गई। युवाशक्ति में भाषिक सामाजिक,सांस्कृतिक,धार्मिक, ऐतिहासिक पहचान के प्रति अस्मिता और स्वाभिमान जगाने का कार्य युद्ध स्तर पर प्रारंभ किया गया।
समाज में समग्र क्रांति को सफल करने के लिए प्रेरणादायक विचार, लेख, कविता,गीत , उदघोष (Slogan), मुक्तक आदि सबका प्रयोग किया गया। यह क्रांति पोवार समाज के सभी पहलुओं से संबंधित होने के इसे पोवारी क्रांति (Powari Revolution) के नाम से भी उल्लेखित किया गया। क्रांति को युवाशक्ति का प्रचंड प्रतिसाद मिलने के कारण वह आश्चर्यजनक गति से सफल हुई।
9.उपसंहार
——————–
क्रांति में चमक होती है। क्रांति समाज के भाषिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक उत्कर्ष का मार्ग है। क्रांति व्यक्ति और समाज का परिष्कार है। क्रांति के प्रति युवाशक्ति का ध्यान शीघ्र आकर्षित होता है।
क्रांति युवाओं की उर्जा को सही अवसर देती है। इसलिए पोवारी क्रांति की ओर हमारे समाज की प्रबुद्ध युवाशक्ति आकर्षित हुई एवं उसमें समर्पण भाव से सहभागी हुई। इस कारण पोवारी क्रांति अत्यंत तेज गति से अल्प समय में लोकप्रिय और सफल हुई।
2018 के पश्चात क्रांति को ग्रामीण स्तर एवं जन -जन तक पहुंचाने का कार्य अविरत शुरु है। कारवां निरंतर विशाल होते जा रहा है।अब अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार महासंघ के नेतृत्व में सर्वांगीण क्रांति लाने का कार्य प्रभावी रुप से किया जा रहा है। हम विद्रोह की राह से नहीं बल्कि क्रांति की राह से अपने समाज को वैचारिक , सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टि से समृद्धशाली बनाने के लिए कटिबद्ध है।
-ओ सी पटले
सोम 13/5/2024.
♦️