♦️ मजबूत एवं सुंदर समाज के लिए मातृभाषा, संस्कृति, धर्म एवं ऐतिहासिक पहचान के प्रति स्वाभिमान होना अत्यंत आवश्यक है। उसी प्रकार आवश्यकता होती है आदर्शों की एवं महान व्यक्तित्व के नेतृत्व की!
♦️भारत की आज़ादी के पहले पोवार समाज में यद्यपि शिक्षा का प्रचार -प्रसार कम था, लेकिन समाज को अपनी ऐतिहासिक पहचान, मातृभाषा एवं संस्कृति पर स्वाभिमान था।
♦️ भारत की आज़ादी के पश्चात शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। सामाजिक संगठनों का दायित्व उच्च शिक्षा विभूषित व्यक्तियों ने अपने हाथों में लिया और इन लोगों ने समाज की पहचान, मातृभाषा एवं संस्कृति की उपेक्षा करना प्रारंभ किया।
1. राष्ट्रीय महासभा की ग़लत नीति
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सामाजिक संगठनों पर समाज हितों की रक्षा का दायित्व होता है। लेकिन राष्ट्रीय क्षत्रिय पवार महासभा ने आज़ादी के पश्चात मातृभाषा पोवारी के संरक्षण -संवर्धन के लिए कारगर उपाय नहीं किए। समाज और मातृभाषा के ऐतिहासिक नाम बदलने का कार्य 1998 से प्रयास प्रारम्भ किया और सनातन हिन्दू धर्म को दरकिनार करने की नीति अपनाई । इस कारण हमारी युवाशक्ति भ्रमित हुई और उसमें मातृभाषा, संस्कृति, ऐतिहासिक पहचान, सनातन हिन्दू धर्म एवं सजातीय विवाह के प्रति स्वाभिमान का भाव नष्ट होना प्रारम्भ हुआ।
2. भाषिक क्रांति का उदय (2018)
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उपर्युक्त स्थिति से व्यथित होकर प्रस्तुत लेखक ने सर्वप्रथम मातृभाषा के संरक्षण- संवर्धन के लिए सामूहिक चेतना जागृत करने का कार्य युद्धस्तर पर प्रारंभ किया। इस समय लेखक ने महासभा की ग़लत नीति के कारण धीरे-धीरे मातृभाषा पोवारी, पोवारी संस्कृति एवं पोवार समाज का स्वतंत्र अस्तित्व भविष्य में नष्ट हो जायेगा यह रहस्योद्घाटन किया और इसका भरपूर प्रचार -प्रसार किया। इस कारण युवाशक्ति में महासभा और लेखक के परस्पर विरोधी विचारों पर सामूहिक वैचारिक मंथन प्रारंभ हुआ। अंततः युवाशक्ति ने लेखक द्वारा प्रारंभ की गयी भाषिक क्रांति में गर्मजोशी के साथ पदार्पण किया और यह क्रांति 2018 में ही आश्चर्यजनक गति से सफल हुई।
3. भाषिक क्रांति का समग्र क्रांति में रुपांतरण (2018-2020)
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2018 में जब पोवारी भाषिक क्रांति की शुरुआत की तब इसका उद्देश्य केवल मातृभाषा के संरक्षण – संवर्धन तक मर्यादित था। लेकिन उस समय हमने, मातृभाषा पोवारी यह पोवारी संस्कृति की संवाहक है। अतः मातृभाषा पोवारी यदि विलुप्त हुई तो भविष्य में पोवारी संस्कृति एवं पोवार समाज का स्वतंत्र अस्तित्व भी नष्ट हो जायेगा, इस तथ्य का खूब प्रचार -प्रसार किया।
उसी प्रकार “पोवारी संस्कृति को सनातन हिन्दू धर्म का अधिष्ठान है। सनातन हिन्दू धर्म ही पोवारी संस्कृति का स्त्रोत एवं प्राणशक्ति है। सनातन हिन्दू धर्म को उपेक्षित – दुर्लक्षित करने से पोवारी संस्कृति नष्ट होगी।” इस तथ्य का भी खूब प्रचार -प्रसार किया। इसलिए भाषिक क्रांति के साथ धर्म और संस्कृति ये मुद्दे भी जुड़ गये। इसी तरह भाषिक क्रांति के साथ समाज की ऐतिहासिक पहचान, समाज का स्वाभिमान, वैचारिक क्रांति, साहित्यिक क्रांति आदि अन्य विषय भी जुड़ते गए। परिणामस्वरुप भाषिक क्रांति देखते ही देखते संपूर्ण क्रांति में परिवर्तित हो गयी।
4.समग्र क्रांति: युवाओं के आकर्षण का केन्द्र
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भाषिक क्रांति के प्रचार- प्रसार के समय संस्कृति के संरक्षण- संवर्धन में मातृभाषा एवं सनातन हिन्दू धर्म के स्थान एवं भूमिका को बहुत बेहतरीन तरीके से परिभाषित किया गया। इस कारण युवाशक्ति एवं प्रबुद्ध वर्ग को मातृभाषा और सनातन हिन्दू धर्म के महत्व के नए पहलू अवगत हुए। अतः समग्र क्रांति शिक्षक, प्राध्यापक, प्राचार्य, इंजीनियर, वकील, डॉक्टर, प्रशासनिक अधिकारी,उद्योजक, उन्नत किसान आदि सबके आकर्षण का केन्द्र और चर्चा का विषय बन गयी। ये लोग क्रांति के समर्थन में आगे आते गए और क्रांति के प्रचार -प्रसार में सम्मिलित होते गये। इस प्रकार क्रांति का कारवां धीरे-धीरे विराट और शक्तिशाली बन गया।
5. समग्र क्रांति की सफलता के महत्वपूर्ण कारण
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2018 की भाषिक क्रांति के साथ ही पोवार समाज में समग्र क्रांति का सूत्रपात हुआ । आगामी तीन वर्षों (2018-20) में पोवारी भाषिक क्रांति ने समग्र पोवारी क्रांति का स्वरूप धारण कर लिया। इस समग्र क्रांति के उदय और विकास के महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित है –
5-1. मातृभाषा के प्रति सकारात्मक नीति
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आज़ादी के पश्चात शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण मातृभाषा पोवारी के सम्मुख अस्तित्व का संकट उत्पन्न हुआ। इस संकट का एहसास हो जाने के कारण चार पांच व्यक्तियों में मातृभाषा के प्रति प्रेम, अस्मिता, स्वाभिमान जागृत हुआ और वें पोवारी के संरक्षण के लिए प्रयत्नशील हुए थे । इसी समय हवा का रुख देखते हुए महासभा द्वारा मातृभाषा पोवारी के उत्कर्ष के लिए सामूहिक प्रयासों की शुरुआत करनी आवश्यक थी। लेकिन कुछ कर्णधारों द्वारा मातृभाषा पोवारी के प्रति तिरस्कार के भाव फैलाना प्रारंभ हुआ। कुछ व्यक्तियों द्वारा पोवारी एवं भोयरी को एक ही भाषा है कहते हुए समाज को भ्रमित करने का कार्य प्रारंभ हुआ और वें मातृभाषा के पोवारी इस ऐतिहासिक नाम के स्थान पर पवारी नाम प्रतिस्थापित करने की साज़िश करने लगे।
समग्र क्रांति द्वारा महासभा की मातृभाषा विरोधी गलत नीति के दुष्परिणाम समाज के सम्मुख स्पष्ट किए गए। इसके साथ ही साथ मातृभाषा के संरक्षण -संवर्धन के लभ का प्रचार प्रसार किया गया।उत्कर्ष की अपनी नीति उसके संभावित लाभ के साथ स्पष्ट की गयी। ऐसा करने पर सुशिक्षित युवाओं ने दोनों पक्ष की विचारधारा पर चिंतन- मनन किया। इसपर समग्र क्रांति की नीति उन्हें अच्छी लगी। इस कारण वें क्रांति के पक्ष में खुलकर सामने आये। मातृभाषा के प्रति सकारात्मक नीति यह समग्र क्रांति के उदय और सफलता का सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारण है।
5-2.समग्र क्रांति की प्रगतिशील दृष्टि
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महासभा ने आज़ादी के पश्चात 70 वर्षों तक केवल समाज की शैक्षणिक प्रगति पर ध्यान केंद्रित किया था। इस कारण समाज में शिक्षक, प्रोफेसर, वकील, डॉक्टर, प्रशासनिक अधिकारी ,उद्योजक, उन्नत किसान का एक प्रबुद्ध वर्ग अस्तित्व में आया। लेकिन मातृभाषा पोवारी, पोवारी साहित्य, इतिहास लेखन, कला, पत्रकारिता , प्रकाशन आदि क्षेत्रों में भी समाज की उल्लेखनीय प्रगति होनी चाहिये , इस ओर महासभा के कर्णधारों ने कभी सोचा ही नहीं। महासभा की यह भूल भी समग्र क्रांति के लिए उत्तरदाई है।
पोवार समाज में 2018 में जब क्रांति की शुरुआत हुई तब उसने युवाशक्ति में उपर्युक्त क्षेत्र में प्रगति का सपना जगाया गया और भाषिक क्रांति की राह से ही यह सपना सहज साकार होने की बात भी स्पष्ट की गयी। इसलिए युवाशक्ति समग्र क्रांति की ओर आकर्षित हुई और क्रांति सफ़ल हुई।
5-3.धर्म के प्रति सापेक्ष दृष्टिकोण
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पोवार समाज सनातन हिन्दू धर्म का अनुयाई है। प्रभु श्रीराम ही इस समुदाय के प्रथम आराध्य है, देवों के देव महादेव कुलदेवता है और माता दुर्गा भवानी कुलदेवी है। लेकिन सामाजिक संगठनों ने कुछ नया करने के लिए नये – नये आदर्श अपनायें। मां सरस्वती ,प्रभु श्रीराम, शिवजी एवं भगवा ध्वज को दरकिनार किया।
समाज के कुछ परिवारों ने धर्मांतरण किया तो भी महासभा के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी और आस्था का सवाल है, ऐसा कहते हुए धर्म के संबंध में नकारात्मक भूमिका अपनायी। महासभा द्वारा सनातन हिन्दू धर्म की गई उपेक्षा भी समग्र पोवारी क्रांति के लिए उत्तरदाई है।
5-4.सजातीय विवाह के प्रति अनुकूल नीति
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पुरातन काल में रिश्तेदारों द्वारा विवाह जोड़े जाते थे। आज़ादी के पश्चात जो ग्रामीण लोग नगरों में बसे, उन्हें सजातीय विवाह जोड़ने के लिए मॅरेज ब्यूरो की आवश्यकता महसूस हुई। पोवार समाज के कुछ समाज सेवियों ने पुणे , नागपुर जैसे बड़े नगरों में पोवार मॅरेज ब्यूरो नाम से संस्थाएं स्थापित की और अंतर्जातीय विवाह जोड़ने का कार्य करने लगे। इन मॉरेज ब्यूरो को महासभा का गुप्त समर्थन था। समग्र क्रांति द्वारा इस ग़लत नीति का विरोध करते हुए सजातीय विवाह के पक्ष में तर्क़ प्रस्तुत करने पर युवाशक्ति क्रांति के पक्ष में खड़ी हो गई। प्राचार्य खुशाल कटरे जी ( गोंदिया) ने पोवार समाज में सजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 2022 में पोवार मॅरेज ब्यूरो की स्थापना की और प्रबुद्ध वर्ग ने उनके कार्य को पूरा समर्थन दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि समग्र क्रांति द्वारा अपनायी गयी, सजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने की नीति यह इस क्रांति के उदय, विकास एवं सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण है।
5-5. भाषा, संस्कृति एवं धर्म के पारस्परिक संबंध पर सुलझे हुए विचार
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प्रस्तुत लेखक ने अपने जीवन में समाज के कर्णधारों की वाणी से संस्कृति में सुधार की बातें तो हमेशा सुनी , लेकिन इन कर्णधारों की वाणी से मातृभाषा और धर्म के संरक्षण – संवर्धन की बातें कभी नहीं सुनी। इस आधार पर कहा जा सकता है कि शायद उन्हें भाषा, संस्कृति एवं धर्म के बीच निहित पारस्परिक संबंधों का स्पष्ट ज्ञान नहीं था अथवा उन्होंने जानबूझकर इस महत्वपूर्ण संबंध की उपेक्षा की।
6.क्रांति से नये सामाजिक नेतृत्व का उदय
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भाषिक क्रांति में कई मुद्दे जुड़ते गये और उस क्रांति ने संपूर्ण क्रांति का स्वरूप प्राप्त कर लिया। संपूर्ण क्रांति के भाषिक, सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, बौद्धिक ( वैचारिक), आर्थिक यह सात अंग है।इस संपूर्ण क्रांति के विभिन्न अंगों के विकास में समाज के प्रबुद्ध वर्ग का योगदान है।
क्रांति से प्रभावित होकर जो महानुभाव इससे जुड़ते गये और इसे समर्थन देते गये, उन्हीं में से कुछ नये सामाजिक नेतृत्व उभरकर सामने आये और 9 जून 2020 को अखिल भारतीय पोवार महासंघ अस्तित्व में आया।
विश्व की छोटी – बड़ी किसी भी सामाजिक, राजनीतिक अथवा आर्थिक क्रांति का अध्ययन करने से अवगत होता है कि सफल क्रांति में से ही अनेक नये नेतृत्व उभरकर सामने आते है। यह सच्चाई पोवार समाज में हुई समग्र सामाजिक क्रांति में भी देखी जाती है।
7. समग्र क्रांति का चित्र और चरित्र
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इस लेख में प्रारंभ से अबतक जो क्रमशः बिंदू (मुद्दे) दिये गये है, उन्हें जोड़ती हुई एक सीधी रेखा खींच दी जाएं तो पोवार समाज में हुई समग्र क्रांति का एक संपूर्ण चित्र आंखों के सामने साकार हो जाता है और यही समग्र क्रांति की सही कहानी है।
8. क्रांति का श्रेय कोरोना काल को देना सर्वथा गलत
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भारत में दिसंबर 2019 से कोरोना की शुरुआत हुई। इसे Covid -19 के नाम से जाना जाता है। भारत में लगभग डेढ़ वर्ष तक कोरोना की समस्या रहीं। इस काल में कार्यालयों को भी छुट्टियां घोषित की गई।इसी कोरोना काल में 9 जून 2020 को अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार महासंघ की स्थापना हुई। इसलिए कुछ महानुभाव महासंघ की स्थापना का श्रेय कोरोना काल को देते हुए प्रतीत होते है। इसप्रकार के लेखन से जाने -अनजाने में सामूहिक चेतना, भाषिक क्रांति, समग्र क्रांति आदि महत्वपूर्ण बिंदुओं पर परदा डालने का कार्य होता है।
समग्र क्रांति के द्वारा समाज को घनघोर अंधेरे की खाई से उबारकर प्रकाश के धरातल पर लाया गया है, लेकिन जब हम अनावश्यक स्थान पर कोरोना की बात उछालकर समग्र क्रांति के महत्वपूर्ण पड़ावों को दुर्लक्षित करते है तब हमें लगता है कि फिर से हम अनजाने में समाज को अंधेरे की खाई में धकेलने का कार्य करते है।
9.निष्कर्ष एवं सुझाव
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अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार महासंघ की स्थापना यह सामूहिक चेतना एवं समग्र क्रांति की एक मधुर फलश्रुति है। यह महासंघ वैनगंगा अंचल के 36 कुलीय पोवार समुदाय की ऐतिहासिक पहचान का संरक्षण करते हुए समाजोत्थान के लिए प्रभावी रुप से कार्य कर रहा है।
महासंघ की उद्देश्य पत्रिका को देखते हुए प्रतीत होता है कि इस राष्ट्रीय संगठन के नेतृत्व में वैनगंगा अंचल के पोवार समाज की ऐतिहासिक पहचान एवं उसका स्वतंत्र अस्तित्व कायम रहेगा और यह समाज भविष्य में एक मजबूत , समृद्ध एवं विकसित समाज के रुप में उभरकर सामने आयेगा।
– ओ सी पटले
मंग.21/5/2024.
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