नागपूर :पोवार समाज के लोग औरंगजेब के शासनकाल में मालवा से स्थानांतरित हुए एवं वैनगंगा अंचल में स्थाई रुप से बस गये। उन्हें वैनगंगा अंचल में आने लगभग 325 साल हो चुके है। पोवार समाज के लोग मालवा से क्यों स्थानांतरित हुए ? वैनगंगा अंचल में उन्होंने स्वयं को कैसे प्रस्थापित किया ? यहां उन्हें कृषि उद्योग के लिए भूमि कब एवं किसके द्वारा प्रदान की गई होगी? आदि प्रश्न जन-मन में सदैव उठते रहें। इन प्रश्नों के सार्थक उत्तर खोजने के उद्देश्य से मा.प्राचार्य ओ सी पटले ने पोवारों के इतिहास (1658- 2022) पर अनुसंधान का मानस बनाया । प्राचार्य ओ सी पटले ने 2018 में पोवार समाज में भाषिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक क्रांति की शुरुआत की। इसी समय से उन्होंने पोवार समाज पर ऐतिहासिक अनुसंधान का भी प्रारंभ किया। यह अनुसंधान 2022 में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद,(ICHR)नई दिल्ली को प्रेषित किया गया। अनुसंधान परिषद द्वारा नियुक्त विषय विशेषज्ञ द्वारा मा.ओ सी पटले के शोध ग्रंथ को जांचा गया। जांचने के पश्चात सुधार संबंधी अनेक सुझावों के साथ 2023 में यह ग्रंथ वापस भेजा गया और ग्रंथ में सुधार का एक अवसर शोधकर्ता को दिया गया। ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद के निर्देशों की परिपूर्णता हेतु शोधकर्ता द्वारा पुनः भरपूर प्रयास किया गया और मई 2024 में यह शोध ग्रंथ अपेक्षित सभी सुधारों के साथ पुनः ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद को प्रेषित किया गया। इस वक्त अनुसंधान परिषद द्वारा शोधग्रंथ को पुनः जांचा गया एवं अनुदान के लिए उसे पात्र समझा गया। इस प्रदीर्घ प्रक्रिया के पश्चात पोवारों का इतिहास इस ग्रंथ के प्रकाशन के लिए ₹40,000 की राशि स्वीकृत की गई एवं प्रकाशन संबंधी उपयुक्त निर्देश लेखक को प्रेषित किए गए है। इतिहास के जानकारों का कथन हैं कि ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद द्वारा अनुदान के लिए चयनित शोधग्रंथ का स्तर पीएचडी (आचार्य)के स्तर का ही होता है। बहुत बार अनुसंधान परिषद द्वारा चयनित ग्रंथ का स्तर पीएचडी उपाधि के लिए प्रस्तुत शोध ग्रंथ से भी ऊंचा होता है।पोवारों का इतिहास यह ग्रंथ इतिहासकार ओ सी पटले द्वारा निरंतर 6 वर्षों तक ( 2018-2024) किए गए मौलिक अनुसंधान का प्रतिफल है। भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद द्वारा चयनित मा. ओ सी पटले का यह दूसरा शोध ग्रंथ है। इसके पहले 2018 में उत्तर मध्ययुगीन परगने कामठा के विशेष संदर्भ में- “वीर राजे चिमना बहादुर” इस शोध ग्रंथ को ₹30,000 का अनुदान प्राप्त हुआ था। पोवारों का इतिहास नामक उपर्युक्त शोध ग्रंथ मौलिक अनुसंधान (Fundamental Research) पर आधारित है तथा इसमें शोधकर्ता द्वारा समाज की ऐतिहासिक पार्श्वभूमी के आधार पर संशोधित “समाजोत्थान के मौलिक सिद्धांतों का भी समावेश” है। इसलिए यह ग्रंथ न केवल पोवार समाज के विगत 325 वर्षों का इतिहास जानने के लिए बल्कि भावी समाजोत्थान के लिए भी पथ-प्रदर्शक साबित होगा और ऐतिहासिक अनुसंधान की एक अनमोल राह भी आलोकित करेगा। इस उपलब्धि के पावन अवसर पर समस्त पोवार समुदाय में हर्ष व्यक्त किया जा रहा। मा. ओ सी पटले का सुशीला रोहिल्ला , संपादिका – शब्दों की आत्मा , हरियाणा, संगीता राजपूत “श्यामा”, प्रकाशिका -मुक्तकेशी पुस्तक प्रकाशन,अलिगढ़ ( उत्तर प्रदेश) , अनिकेत सांबरे प्रकाशक – नचिकेत प्रकाशन नागपुर ( महाराष्ट्र ) , तथा विजय बाहेकर संस्थापक – वीर राजे चिमना बहादुर फाउंडेशन, गोंदिया (महाराष्ट्र) द्वारा हार्दिक अभिनन्दन किया गया है।