समाज के अस्तित्व के लिए हमें अपने पूर्व इतिहास, समाज एवं धर्म के प्रति प्रामाणिक होना अनिवार्य…! – इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

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समाज के अस्तित्व के लिए हमें अपने पूर्व इतिहास, समाज एवं धर्म के प्रति प्रामाणिक होना अनिवार्य…!
– इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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1. प्रामाणिकता का अर्थ एवं महत्व
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प्रामाणिकता एक जीवन-मूल्य है। सच्चाई, ईमानदारी एवं निष्कपटता को ही प्रामाणिकता कहा जाता है। जीवन के हर क्षेत्र में प्रामाणिकता का विशेष महत्व है। प्रामाणिकता के बल पर ही जन-जीवन में सभी व्यवहार आगे बढ़ते है। जहां प्रामाणिकता समाप्त होती है, वहां विश्वास टूट जाता है, संबंध बिगड़ते है और समाप्त हो जाते हैं।
2.प्रामाणिकता का नया अर्थ बोध
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प्रामाणिकता के उपरोक्त अर्थ सबको विदित है । लेकिन 2018 मे हमने पोवारी भाषिक, सामाजिक सांस्कृतिक एवं वैचारिक क्रांति की शुरुआत की । इस समय हमारे समझ में आया कि आज़ादी के पश्चात 70 वर्षों तक से समाज के कर्णधारों ने मातृभाषा पोवारी के प्रति तिरस्कार के भाव उत्पन्न किए। समाज एवं मातृभाषा के ऐतिहासिक नामों को नष्ट करके गलत नाम प्रस्थापित करने का षड़यंत्र शुरू किया और इसके लिए झूठ का सहारा लिया। इस पार्श्वभूमी के आधार पर हमें “प्रामाणिकता” के कुछ नये अर्थ समझ में आये, जिन्हें सामाजिक संगठनों के हर पदाधिकारी ने समझ लेना बहुत अनिवार्य है। इसलिए प्रामाणिकता को विस्तार पूर्वक परिभाषित करना, इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। 3. प्रामाणिकता के विविध अर्थ
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समाज हित की दृष्टि से प्रामाणिकता के विविध अर्थ निम्नलिखित है –
(1) पूर्व इतिहास के प्रति प्रामाणिकता
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पोवार समाज के इतिहास के अनुशीलन से अवगत होता है कि ” पोवार” यह इस समाज का ऐतिहासिक नाम है। उसी प्रकार “पोवारी” यह इस समाज की मातृभाषा का ऐतिहासिक नाम है। इन तथ्यों को खुले मन से स्वीकार करना एवं अपने साहित्य में इन तथ्यों के साथ किसी प्रकार से छेड़छाड़ न करना, इसे इतिहास के प्रति प्रामाणिकता कहा जायेगा। लेकिन राष्ट्रीय क्षत्रिय पवार महासभा द्वारा इन नामों की ऐतिहासिकता को झूठलाया जा रहा है और इन्हें देहाती बताकर उनके स्थान पर पवार एवं पवारी यह झूठे नाम प्रतिस्थापित करने का षड़यंत्र शुरू है। अतः महासभा का यह व्यवहार सरासर अप्रामाणिकता और अपने अस्तित्व के साथ धोखा है।
(2) मातृभाषा के प्रति प्रामाणिकता
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पोवार समाज के लोग बख्त-बुलंद के शासनकाल में मालवा से स्थानांतरित होकर वैनगंगा अंचल में स्थाई रुप से बस गये। मराठाकालीन एवं ब्रिटिशकालीन इतिहास से अवगत होता है कि पोवार समाज की मातृभाषा का ऐतिहासिक नाम “पोवारी” (Powari )है। यह ऐतिहासिक नाम प्रचलन में भी है। इस वास्तविकता को स्वीकार करना ही ईमानदारी हैं। इसके विपरित अपने निजी स्वार्थ अथवा अपनी इच्छा आकांक्षा के अनुसार पोवार समाज की मातृभाषा के नाम के स्थान पर किसी अन्य भाषा का नाम प्रतिस्थापित करने का षड़यंत्र करना यह विशुद्ध रुप से प्रामाणिकता नहीं बल्कि बेईमानी और समाज के साथ विश्वासघात है।
मातृभाषा का नाम संपूर्ण पोवार समाज की आस्था का विषय है।मातृभाषा का नाम बदलने से समाज का उसके प्रति प्रेम और आस्था नष्ट होगी और यह आस्था का संकट मातृभाषा के विकास में बाधक साबित होगा। इसलिए उसके नाम से छेड़छाड़ करने का किसी को अधिकार नहीं है। लेकिन समाज के कुछ तथाकथित कर्णधार न तो लोगों की भावना की इज्जत करते है और ना ही मातृभाषा के ऐतिहासिक नाम का महत्व जानते हैं ।इसलिए वें 1998 से पोवारी(Powari) नाम के स्थान पर पवारी (Pawari )यह गलत नाम प्रतिस्थापित करने के लिए प्रयत्नशील है। इन्हीं महानुभावों ने 2018 में राष्ट्रीय पवारी साहित्य कला संस्कृति मंडल की स्थापना की और मातृभाषा पोवारी के ऐतिहासिक नाम को दरकिनार कर दिया है।
मातृभाषा पोवारी का सही नाम नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील महानुभावों द्वारा प्रचार किया जाता है कि स्थानीय परिस्थिति के अनुसार पोवारी भाषा के पोवारी,पंवारी एवं पवारी यह तीनों नाम प्रचलित है। इनका इस प्रकार का प्रचार पूर्णतः झूठ ,असत्य, अप्रामाणिक, अनैतिक एवं अनैतिहासिक है।
मातृभाषा पोवारी का यदि संरक्षण- संवर्धन करना है तो हमें अपनी मातृभाषा के नाम के प्रति प्रामाणिक ( Honest) होना चाहिए। झूठ को अपनाकर न तो हम मातृभाषा के विकास में सफल होंगे और न नयी पीढ़ी को सत्य की राह पर चलने प्रेरित कर पायेंगे। सत्य एक शक्ति है, जो आत्मबल बढ़ाती है तथा सफलता की राह प्रशस्त करती है। इसलिए सही नाम के साथ मातृभाषा को उन्नत करनें के दृढ़ संकल्प के साथ हम निरंतर आगे बढ़ेंगे।
(3) समाज के प्रति प्रामाणिकता
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सजातीय विवाह जातिप्रथा की विशेषता है। पोवार समाज के नाम से जिसे हम संबोधित करते है वह वास्तविकता एक जाति है। इसमें लगभग 36 क्षत्रिय कुल है। इसलिए इसे छत्तीस कुलीय पोवार समाज के नाम से संबोधित किया जाता है। छत्तीस कुल के लोग परस्पर एक दूसरे कुल से विवाह संबंध प्रस्थापित करते हैं तथा इसमें अंतर्जातीय विवाह वर्जित है।
सजातीय विवाह प्रथा ही पोवार जाति की रीढ़ है। अतः सजातीय विवाह प्रथा के पक्ष में कार्य करना , उसे प्रोत्साहित करना पोवार समाज मॅरेज ब्यूरो की स्थापना कर संचालित करना, आदि कार्य सामाजिक प्रामाणिकता (Social Honesty)की श्रेणी में आते हैं। इसके विपरित अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहित करने का षड़यंत्र करना यह समाज के साथ अप्रामाणिकता (Dishonesty ) है।
(4) धर्म के प्रति प्रामाणिकता
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सनातन हिन्दू धर्म अत्यंत प्राचीन एवं महान धर्म है। सनातन धर्म संपूर्ण सृष्टि को ईश्वर का अंश मानता है एवं सभी सुखी तथा निरोगी हो ऐसी प्रार्थना करता हैं। सनातन धर्म ने ही सबसे पहले संसार को सभ्यता का पाठ पढ़ाया।पोवार समाज सदियों से सनातन हिन्दू धर्म का उपासक है। सनातन हिन्दू धर्म ही पोवारी संस्कृति का मूलस्रोत है। इसलिए सनातन हिन्दू धर्म के संरक्षण – संवर्धन में ही पोवार समाज एवं इसके हर व्यक्ति की भलाई है।
उपर्युक्त स्थिति में पोवार समाज के किसी व्यक्ति ने यह कहना कि “वह किसी धर्म को नहीं मानता! वह मानवतावादी है!” उसका ऐसा वक्तव्य हिन्दू धर्म के प्रति उसका अज्ञान, दंभ और अप्रामाणिकता है।
पोवार समाज के व्यक्ति द्वारा सनातन हिन्दू धर्म का विरोध करना और पीर – फकीर अथवा येशु मसीह की पूजा करना यह कृत्य भी धर्म के प्रति अप्रामाणिकता है। उसी प्रकार वामपंथी, बहुजनवादी , धर्मनिरपेक्षतावादी और जो राजनीतिक दल कानून के माध्यम से इस्लाम एवं ईसाईयों को विशेष लाभ पहुंचाने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं, ऐसे राजनीतिक दलों की सदस्यता अपनाना, मतदान करना अथवा किसी तरह से उनका समर्थन करना यह भी वास्तव में सनातन हिन्दू धर्म के प्रति अप्रामाणिकता और अपने अस्तित्व के साथ धोखा है। अतः नयी पीढ़ी में सनातन हिन्दू धर्म के प्रति योग्य दृष्टिकोण एवं प्रामाणिकता विकसित करना यह समाज के प्रबुद्ध वर्ग एवं सामाजिक संगठनों का बुनियादी दायित्व है।
4.वर्तमान समाज का चित्र और चरित्र
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वर्तमान पोवार समाज का चित्र और चरित्र निम्नप्रकार का परिलक्षित होता है –
(1) समाज एवं मातृभाषा का ऐतिहासिक नाम मिटाने के लिए षड़यंत्र शुरू है।
(2) वामपंथी और नास्तिक विचारधारा से ग्रसित कुछ लोग सनातन हिन्दू धर्म की आलोचना करके अपने को प्रगतिशील बताने की भूल कर रहे हैं।इन सब कारणों से वर्तमान पोवार समाज में सर्वत्र झूठ का माहौल दिखाई देता है, जो बेहद दु:खद है।
(3) हमारी युवाशक्ति में समाज हित के प्रति उदासीनता दिखाई देती है। राजनीतिक चर्चा में उसकी अधिक दिलचस्पी दिखाई देती है।
(4) पोवार समाज का हिन्दू जीवन दर्शन पर अटूट विश्वास है। हिन्दू जीवन दर्शन के अनुसार ही पोवार समाज जीवन यापन करता है। हिन्दू जीवन दर्शन एवं भारतीय राष्ट्रवादी विचारधारा में साम्य है। इसलिए पोवार समाज में राष्ट्रवादी विचारधारा को पसंद करने वालों की जनसंख्या अधिक है। राष्ट्रवादी विचारधारा ही पोवारी संस्कृति के संरक्षण -संवर्धन की दृष्टि से उपयोगी है।
(5) पोवारी संस्कृति के संरक्षण -संवर्धन की दृष्टि से वामपंथी, बहुजनवादी एवं धर्मनिरपेक्षतावादी विचारधाराएं हानिकारक है। लेकिन पोवार समाज के जो व्यक्ति वामपंथी, बहुजनवादी, धर्मनिरपेक्षतावादी विचारधारा के शिकार हुए हैं उनके द्वारा समाज की धार्मिक आस्था को कमजोर करने का प्रयास निरंतर किया जा रहा है।
5. समाज हित में नयी चेतना की आवश्यकता
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उपर्युक्त स्थिति में पोवार समाज के इतिहास एवं सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक हितों की रक्षा की रक्षा कर समाज के स्वतंत्र अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए युवाशक्ति में नयी भाषिक , सामाजिक , सांस्कृतिक , धार्मिक , राजनीतिक, राष्ट्रीय चेतना जागृत करना यह समाज के प्रबुद्ध वर्ग एवं सामाजिक संगठनों का बुनियादी दायित्व है।
6. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक विशेष दायित्व
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भारत प्रजातांत्रिक राष्ट्र हैं। यहां विभिन्न विचारधाराएं और उन पर आधारित राजनीतिक दल है। अतः पोवार समाज में ‌विभिन्न‌ दलों के नेतृत्व एवं अनुयाई है। इसलिए सबसे अपेक्षा की जाती है कि ‌वें पोवार समाज के धर्म एवं संस्कृति के अनुरूप राजनीतिक दल का ही समर्थन करें एवं उसे मतदान भी करें।
परंतु संपूर्ण समाज द्वारा किसी एक ही राजनीतिक दल को अपनाना भी संभव नहीं है। कुछ लोग सनातन हिन्दू धर्म और संस्कृति को नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील राजनीतिक दलों के भी सदस्य हो सकते हैं। ऐसी अवस्था में समाज द्वारा यह अपेक्षा की जाती है कि ‌कोई भी व्यक्ति जो ऐसे राजनीतिक दल से संबंध रखता हो, जिसकी विचारधारा सनातन हिन्दू धर्म एवं सनातनी पोवारी संस्कृति के विपरीत हो तो उसने पोवार समाज के कार्यक्रमों में ‌उपस्थित होने पर अपनी राजनीतिक विचारधारा को समाज पर थोपने का गलत प्रयास नहीं करना चाहिए।
7. निष्कर्ष एवं सुझाव
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पोवार समाज के स्वतंत्र अस्तित्व एवं उत्कर्ष के लिए क्या महत्वपूर्ण है ? इसपर बिना बाहरी दबाव के निश्चित रुप से सोचना, निर्णय लेना एवं कार्य करना इसे ही सामाजिक प्रामाणिकता ( Social Honesty) के नाम से संबोधित किया जा सकता है। अतः पोवार समाज के प्रत्येक व्यक्ति ने अपने जाति समुदाय का स्वरूप जान लेना चाहिए तथा समुदाय की मातृभाषा, परंपराएं, संस्कृति एवं धर्म के प्रति निष्ठावान, प्रामाणिक एवं वफादार होना चाहिए।
वर्तमान प्रजातांत्रिक युग में राजनीति ‌सर्वव्यापक बन गयी है। हर व्यक्ति राजनीति में दिलचस्पी लेता है और किसी न किसी राजनीतिक दल की विचारधारा को पसंद करता है। इसलिए किसी व्यक्ति के राजनीतिक स्वार्थ एवं सामाजिक हित के बीच अंतर्विरोध ( Contradiction) होना स्वाभाविक है। अतः वर्तमान युग में समाज के सभी सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वें समाज और राजनीति के बीच की सीमारेखा को पहचानें और समाज को राजनीतिक चश्मे से न देखते हुए उसे सामाजिक दृष्टि से ही ‌देखें। तात्पर्य, सामाजिक कार्यक्रमों में सबने अपना अलग-अलग राजनीतिक चश्मा ‌पंडाल के बाहर उतारकर ही मंच पर जाना चाहिए। इस अपेक्षा का पालन न केवल समाज की खुशहाली बल्कि उसके उत्कर्ष तथा पोवार समाज के शाश्वत हितों के संरक्षण – संवर्धन के लिए भी अनिवार्य है।

-सामूहिक चेतना एवं समग्र क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
शुक्र.21/6/2024.
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