समाज का किसान वर्ग पोवारी संस्कृति एवं समाज की रीढ़ है…!
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♦️हमारी मातृभाषा, संस्कृति, एवं ऐतिहासिक पहचान हमारे समाज के बुनियादी तत्व है।
♦️ समाज के अधिकांश लोगों का जीवन कृषि उद्योग पर निर्भर है और समाज में किसानों की संख्या अधिक है।
♦️ किसान भाईयों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वें अपने को आधुनिकता के माहौल में ढालने की कल्पना भी नहीं करते । वें अपने परिवार में मातृभाषा पोवारी का प्रयोग करते है, परंपराओं का पालन करते है और गर्व के साथ अपने जाति को पोवार एवं मातृभाषा को पोवारी के नाम से संबोधित करते है। किसान भाई परंपराओं के पालन में अग्रसर दिखाई देते हैं।
♦️वर्तमान में पोवार समाज की मातृभाषा, समाज का ऐतिहासिक नाम, समाज की सनातनी संस्कृति पर संकट के जो बादल मंडरा रहें है उसके लिए गांवों में बसा हुआ किसान वर्ग उत्तरदाई नहीं है। नगर निवासी, उच्चशिक्षाविभुषित, बड़े पद एवं धन-दौलत वाले लोगों से उत्पन्न नये वर्ग को भी संस्कृति प्रिय होती है। लेकिन इस नये वर्ग के कुछ लोग कुछ नया करने की चाहत में संस्कृति विरोधी रीति को अपनाते है। इन्हीं लोगों का अनुकरण फिर धीरे-धीरे अन्य लोग भी करने लगते है ओर समाज में उपजी समस्या सर्वव्यापी बन जाती है।
1.वर्तमान समाज की महत्वपूर्ण समस्याएं
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1-1. जाति नाम की उपेक्षा
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नये उदित वर्ग के कुछ लोग अपनी जाति का नाम “पोवार ” बताने और लिखने में लज्जा महसूस करते है। पोवार के स्थान पर पवार नाम धारण करने में गर्व महसूस करते है। इससे समाज की ऐतिहासिक पहचान मिटेगी, समाज की एकरुपता नष्ट होगी,जो समाज की एकता के लिए अत्यंत हानिकारक है।
1-2. मातृभाषा की उपेक्षा
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नये उदित वर्ग के कुछ लोग स्वयं मातृभाषा बोलनें में लज्जा का अनुभव करते है एवं अन्य कोई मातृभाषा में बातचीत करता हो तो उसे देहाती समझकर हेय दृष्टि से देखते हैं।
1-3. संस्कृति की उपेक्षा
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पोवारी संस्कृति को सनातन हिन्दू धर्म का अधिष्ठान है। इस संस्कृति में निहित परंपराएं विज्ञान एवं मनोविज्ञान पर आधारित है। विवाह को संस्कार माना जाता है और विवाह गीत तथा विवाह की रस्में बहुत संस्कारक्षम है। लेकिन नये वर्ग के कुछ लोग पाश्चात्यीकरण की धूंद में रिंग सिरेमनी, प्रि-वेडिंग शूटिंग, अंतर्जातीय विवाह को अपनाकर स्वस्थ पोवारी संस्कृति को नष्ट करने का कार्य कर रहे हैं।
1-4. धर्म की उपेक्षा
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इस्लाम एवं क्रिश्चियन धर्म के लोग तो हिन्दू धर्म का द्वेष करते ही हैं, लेकिन वामपंथी, धर्मनिरपेक्षतावादी एवं बहुजनवादी विचारधारा के लोग भी श्रेष्ठ सनातन हिन्दू धर्म का आये दिन विरोध -उपहास करते दिखाई देते है। हिन्दू धर्म विरोधी विचारधारा के शिकार हमारे समाज में उदित शिक्षित वर्ग के कुछ लोग सनातन धर्म की श्रेष्ठता को जाने समझे बिना पीर -फकीर की मज़ारो पर या दरगाह में जाकर माथा टेकने में स्वयं को धन्य महसूस करते है। कुछ लोग शिरडी के साईं की भक्ति करते है तो परमात्मा एक पंथ अपनाकर हिन्दू धर्म विरोधी व्यवहार करते है। इसप्रकार धार्मिक निष्ठा का पतन यह भी वर्तमानकालीन पोवार समाज की एक महत्वपूर्ण समस्या है।
1-5.धर्मध्वजा की उपेक्षा
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सनातन हिन्दू धर्म की निशानी ” भगवा ध्वज” है। लेकिन समाज में उदित नये वर्ग के लोगों के नेतृत्व मे आयोजित राजा भोज रैली में पिले ध्वज की ध्वजाओं का प्रयोग करते हुए देखा जाता है जो अत्यंत दु:खदायी है।
2. किसानों का स्वाभिमान अनुकरणीय
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पोवार समाज का किसान वर्ग यद्यपि समृद्ध नहीं है और न अधिक पढ़ा लिखा है, लेकिन उसके मन में मातृभाषा, समाज का ऐतिहासिक नाम, सनातन हिन्दू धर्म, सजातीय विवाह, विवाह संस्कार की विभिन्न रस्में आदि के संबंध में कोई द्वंद्व नहीं है। हमारे किसान भाई गांव में पोवारी भाषा का प्रयोग करते है, गर्व से स्वयं को पोवार संबोधित करते है। विवाह को एक संस्कार के स्वरूप में संपन्न करते है। मंदिर छोड़कर मस्जिद या चर्च में माथा टेकने नहीं जाते। इसलिए भलेही हमारे किसान भाई गरीब हो लेकिन उनपर हमें गर्व होना चाहिए।
3. किसान वर्ग संस्कृति की रीढ़
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वर्तमान पोवार समाज में व्याप्त हो रही नयी
समस्याओं का सही निदान करना महत्वपूर्ण था।
यही सोचकर समस्या एवं समस्या के निदान को परिभाषित करने का प्रयास किया है। इससे संस्कृति के संरक्षण – संवर्धन संबंधी हमारे प्रयासों का भटकाव दूर होगा तथा समस्या सुलझाने के लिए उचित स्थान पर हम अपना ध्यान केंद्रित कर पायेंगे।
जहां तक संस्कृति की उपेक्षा का प्रश्न है, हम निश्चयपूर्वक कह सकते है कि अपने को उच्च शिक्षित, प्रगतिशील, धनवान, उच्च अधिकारी समझने वाले हम लोगों ने संस्कृति का पाठ किसान भाईयों से सीखना चाहिए। संस्कृति के मामले में हम शिक्षित व्यक्तियों ने किसान भाईयों से प्रेरणा लेनी चाहिए। हमारे किसान भाई हमारी संस्कृति एवं समाज की रीढ़ है।
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
सामूहिक चेतना एवं समग्र क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
रवि.7/7/2024.
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