।। लीलावती कथा-काव्य ।।

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।। लीलावती कथा-काव्य ।।
( पोवारीमा एकमेव बहुचर्चित काव्य-कथा)
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१. पार्श्वभूमी
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राजाभोज ला मध्ययुगीन महान शासक को रुप मा प्रतिष्ठित स्थान से. महाकाल की नगरी उज्जयिनी मा वसंत पंचमी ईस्वी सन् ९८० मा उनको जन्म भयेव. पिता सिंधुलराज व माता सावित्री देवी का वय पुत्र आत. अधिकांश इतिहासकारों को अनुसार इस्वी सन् १०००पासून १०५५ वरी वय मालवा का शासक होता. आम्हीं सब अनुभव कर रहया सेजन कि हजार साल को बाद भी भारतीय जनमानस मा उनला श्रद्धा को स्थान प्राप्त से. उनकी धर्मपत्नी लीलावती एक प्रख्यात विदुषी, गणितज्ञ, कवयित्री,शिक्षा विशेषज्ञ,कुशल शिक्षिका,अध्यापन की प्रशिक्षिका व प्रजा वत्सल रानी होती. इतिहास साक्षी से कि राजदरबार मा महारानी लीलावती ला प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त होतो. राज्य को उत्कर्ष व प्रजा को कल्याण को प्रति महाराजा भोज व महारानी लीलावती दूही समर्पित होता. दूही का विचार मेल खात होता. दूही की इच्छा -आकांक्षा समान व परस्पर पूरक होती. शिक्षण को प्रचार- प्रसार मा लीलावती की मुख्य भूमिका होती.भोजदेव को राज-काज का उत्तम योगदान देनो येव लीलावती को परम् ध्येय होतो.लेकिन इतिहासकारों न् इतिहास लेखन मा लीलावती को उत्तम चरित्र ला दुर्लक्षित करीन. येको कारण महारानी लीलावती ला इतिहास मा सही न्याय नहीं मिलेव अना राष्ट्रीय गौरव पासून वंचित भयी. वर्तमान भारत मा लीलावती को चरित्र ला न्याय देनो आमरी सबकी नैतिक जिम्मेदारी से.
२. लीलावती को परिचय
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स्वजनों ! आता सबला निवेदन से कि राजा भोज की अनुगामिनी महारानी लीलावती को काव्यात्मक परिचय ध्यान पूर्वक आयको –

भारत निर्माता शासकों मा
भोजदेव ला से स्थान।
अज भी धरा पर होसे
नित्य उनको गुणगान।
मध्ययुगीन सब शासकों मा
‌ वय सब दून महान।
भोज की अर्धांगिनी की कथा
सुनो लगायके ध्यान।।१।।

महारानी लीलावती होती ।
राजा भोज की अनुगामिनी।
शील सौंदर्य ना राजकाज मा,
विख्यात होती महारानी।।२।।

भोजदेव चक्रवर्ती महाराजा होतो।
आसेतू हिमालय वोको प्रभाव होतो।
भोजदेव को राजदरबार मा,
महारानी को दिव्य प्रभाव होतो।।३।।

राजा रानी होता
जसा शिव अना शिवानी।
देह दूय होता
सोच एक अन् एक वाणी।।४।।

कन्या शिक्षण की
कर्णधार होती महारानी।
शासन की सलाहकार
लीलावती महारानी।।५।।

३. एक अनुत्तरित प्रश्न
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इतिहास मा लीलावती नामक दूय विदूषियों को गणितज्ञ व कवयित्री को रुप मा उल्लेख से.
प्रथम, भोजदेव की पत्नी अना दूसरी, गणितज्ञ भास्कराचार्य की कन्या! भास्कराचार्य उज्जयिनी की वेधशाला का प्रमुख होता . येको कारण भास्कराचार्य की कन्या भोजदेव ला ब्याही गयी रहे, असो भाव मन मा उत्पन्न होसे. परंतु इतिहास को अनुसार भोजदेव ११वीं सदी मा(ईस्वी सन् ९८०-१०५५) व भास्कराचार्य १२ वीं सदी मा(ईस्वी सन् १११४-११४४) भया असो उल्लेखित से.अत: ये दूही लीलावती एकच आत का? येको होकारार्थी उत्तर गहण ऐतिहासिक अनुसंधान को बिना देनो उचित नाहाय.
भारतवर्ष ला आज़ादी मिलेव को पश्चात प्राथमिक पाठशालाओं मा काही साल वरी ” लीलावती गणीत” नाव लक एक अंकगणित शिकायेव जात होतो.भास्कराचार्य , “लीलावती गणीत” नामक ग्रंथ की रचनाकार आत. येको मा लीलावती द्वारा प्रस्थापित गणित का सिद्धांत भी सेती .या वस्तुस्थिति अवगत होनो पर महारानी लीलावती व भास्कराचार्य की कन्या लीलावती ये दूही एकच आत का? येव रहस्य जानन की जिज्ञासा बढ़ जासे. प्रस्तुत लेखक को अनुसार ये दूही लीलावती एकच रहेत असी प्रबल संभावना से. कारण कि येन् दूही विदूषियों को नाव, योग्यता व ख्याति मा पूर्ण एकरुपता से. परंतु येको उत्त्तर केवल परिकल्पना को आधार पर देनो उचित नाहाय. प्रिय स्वजनों! येको विषय मा प्रस्तुत लेखक को आंतरिक मनोभाव ध्यानपूर्वक सुनो –

कन्या कौन की, विवाह भयेव कब्
अज्ञात से इतिहास ना तिथि।
परंतु भोजदेव की अर्धांगिनी
होती महारानी विदूषी लीलावती।।६।।

गणितज्ञ भास्कराचार्य की
कन्या को नाव भी होतो लीलावती।
गणितज्ञ ना कवयित्री को रुप
होती इनको कन्या की भी ख्याति।।७।।

भोज ना भास्कराचार्य को
कालखंड मा से सौ साल को अंतर।
प्रश्न को सही हल छिपि से
इतिहास की अंधेरी खाई को भीतर।।८।।

४. लीलावती की महत्वपूर्ण भूमिका
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प्रिय स्वजनों! आता इतिहास को आधार पर राजा भोज को शासन मा महारानी लीलावती की भूमिका ‌विशद कर रही सेव. ध्यानपूर्वक श्रवण करो –

वाग्देवी को परम् उपासक,
भोज होतो परम् ज्ञानी ना विद्वान ।
माता सरस्वती को पाई होतीस,
राजाभोज न् आशीष वरदान ।
अर्धांगिनी होती विदूषी लीलावती
राज्य मा होतो मोठो मान ।
प्रजा वत्सल होती रानी,
भारतीय संस्कृति की वा होती शान।।९।।

राजाभोज की प्रिय रानी,
लीलावती होती महान ।
कवयित्री ना गणितज्ञ को,
पायी होतीस सम्मान ।
राजा -रानी को सात्विक प्रेम,
जग मा प्रकाशमान ।
शरद पूर्णिमा की रात्रि को,
शीतल चंद्रमा समान ।।१०।।

भोज को राजदरबार
नवरत्नों लक होत होतो शोभायमान ।
रानी लीलावती की उपस्थिति
कर दे वोला अधिक दैदीप्यमान ।
वहां की शास्त्रर्थ चर्चा मा
महारानी को भी रव्हत होतो सहभाग ।
महारानी होती प्रख्यात विदुषी
शास्त्रार्थ मा होतो वोको कीर्तिमान ।।११।।

शुभघड़ी शुभ मुहूर्त देखके
युद्धसाती सेना होत होती तैयार ।
मंगलमय वाद्य ना रणसिंग को
स्वर लक, जागत होतो विश्वास ।
असंख्य- योद्धा कुशल-सेनापति
रव्हत होता विराट सेना को साथ ।
सुहागिन नारियों संग महारानी
करत होती राजा पर फूलों को वर्षाव ।।१२।।

सेना करत होती जब् प्रस्थान
मार्ग मा होत होतो धूल को संचार ।
उर्ध्वगामी घनी धूल को कारण
ओझल होत होतो सूर्य को प्रकाश ।
वायुवेग लक भोज की सेना
युद्धभूमि कर होत होती गतिमान।
लीलावती युद्ध विजय साती
परम् सत्ता ला मागत होती वरदान ।।१३।।

राजाभोज को शौर्य को
सम्मुख झूकी, राजाओं की तलवार ।
भारत को चौरासी राजाओं न्
करीन अधीनता स्वीकार ।
नवी राजधानी बनाई गयी,
उज्जैन को ऐवज मा धार ‌।
चक्रवर्ती राजाभोज को
होतो, नवरत्नों को दरबार ।।१४।।

श्रीभोज को शासन मा महिला
होती सुरक्षित,होतो विशेष सम्मान ।
रानी लीलावती ला करीस वोन्
राजकाज मा सहभागिता प्रदान ।
युद्ध प्रसंगों मा महिला ना बालकों की
सुरक्षा ला भी देईस प्राधान्य ।
परनारी ला राजाभोज न् मानीस
सदा निज माता -बहीन समान ।।१५।।

राजधानी धार मा करीन
एक विश्वविद्यालय प्रस्थापित ।
भोजशाला को नाव लक वोला
करेव जात होतो संबोधित ।
विदेशी छात्र भी यहां आय के
करत होता ज्ञानार्जन ।
वर्षभर होत होतो यहां
परिसंवादों को आयोजन ।।१६।।

राजाभोज को मनमंदिर मा
होतो विद्वानों को सम्मान ।
शिक्षा ना संस्कृति की
लीलावती को हाथ मा होती कमान ।
कृषि ला मानीस सदा
राष्ट्र विकास को श्रेष्ठ अधिष्ठान ।
भोज शासन मा होतो
होतो समृद्ध स्वर्णयुग समान ।।१७।।

राजाभोज न् लोकहित जानकर
राष्ट्रधर्म खूब निभाईस ।
शासनकाल मा साहित्य- कला
ना धर्म को, सम्मान खूब बढ़ाईस ।
जनशक्ति की महिमा जानकर,
जन-जन मा राष्ट्रप्रेम जगाईस ।
राष्ट्र ला बलवान बनाईस,
समाज ला राष्ट्रवाद सिखाईस ।।१८।।

राजाभोज को शासन होतो
समर्पित, राष्ट्र को कल्याण साती ।
सकल भारतवर्ष ला
एकसूत्र मा,संगठित करनसाती ।
प्रजा तत्पर होती, प्रजावत्सल
भोज की राजाज्ञा पालनसाती ।
भोज -लीलावती तत्पर होता,
पुण्यभूमि को पुनरुत्थान साती ।।१९।।

साहित्य कला को उत्कर्ष मा
राजाभोज की महिमा से महान ।
दार्शनिकों कलाकारों को
राजदरबार मा करत होतो सम्मान ।
वर्तमान यदि कर लेये, भोज
लीलावती को आदर्शों को स्वीकार ।
होये भारतीय हिन्दू संस्कृति को
समाज ना राष्ट्र को भी उत्थान ।।२०।।

५.राजा – रानी को सात्विक प्रेम
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महाराजा भोज व महारानी लीलावती येन् दूही की विद्वता मा ख्याति से. राजा भोज रचित चारु चर्या नामक ग्रंथ मा जीवनचर्या संबंधित उत्तम ज्ञान समाहित से. येन् ग्रंथ मा आभूषण धारण करन को व तांबूल सेवन को लाभ को वर्णन से. बिड़ा को पान ला संस्कृत मा तांबूल कसेत व येको मा औषधि गुण सेती,पुरातन काल पासून राजमहलों मा पान को सेवन होत होतो. अतः राजा भोज द्वारा पान को सेवन स्वाभाविक होतो.
भोज लीलावती को बीच परस्पर एक दूसरों को प्रति प्रगाढ़ प्रेम व आदर होतो. येको कारण मालवा राज्य प्रगति को उच्च शिखर पर पहुंचेव. भोज- लीलावती को प्रेम अत्यंत मर्यादाशील व सात्विक होतो. स्वजनों ! लीलावती व भोज को सात्विक प्रेम की, मोरों हृदयस्थ मनोरम कथा आता ध्यानपूर्वक सुनो …

लीलावती की सौंदर्य काति लक
राजमहल भी होत होतो रोशन।
अना उनको गुणों को कारण
गौरव पावत होतो सिंहासन।।२१।।
भोजदेव होतो गौरवर्णी
भालचंद्र उनको होतो विशाल ।
तेजस्वी उनको मुखमंडल।
बाहु वरि शाम चमकीला बाल ।।२२।।शूरवीरों ‌वानी देह बलवान
कानों मा कुंडल,कंठ मा हार ।
हाथ मा रत्नजड़ित अंगूठी
अना चमकत होती तलवार ।।२३।।
किंमती वस्त्र वय करत सदा
अनमोल देह पर परिधान ।
स्नान -ध्यान भोजन को पश्चात
सेवन करत स्वादिष्ट पान ।।२४।।
बिड़ा को स्वाद लक करत होता
लीलावती को पान की पहचान ।
उनला सदा आवत होतो पसंद
लीलावती को हाथ को पान ।।२५।।
जेन् दिवस नहीं मिलेव उनला
रानी को करकमलों को पान ।
वय स्वयं महारानी की वाणी लक
आतुर रव्हत जानन ला कारण ।।२६।।
असो प्रसंग पर लीलावती
कव्हत होती राजश्री ला ससम्मान ।
तुमरो समान प्रिय पति पायकर
मी स्वयं भी कहलावू सू महान ।।२७।।
तुम्हारों येव प्रेम याच मोरी शक्ति
येव प्रेम याच मोरी से आराधना ।
तुम्हारो प्रति मोरी नाराजगी की
कभी न करों मन मा कल्पना ।।२८।।
व्यस्तता को कारण न देय पाई।
निज हाथों लक बनाएव पान ।
परंतु मी हरपल राजश्री को
अनन्य प्रेम लक ठेवू सू ध्यान ।।२९।।
लीलावती का वचन आयक के
भोज ला मिलत होतो समाधान ।
असोच आत्मिक प्रेम को कारण
भयेव होतो राजकाज को उत्थान ।।३०।।
भोज -लीलावती विख्यात भया
प्रेम की प्रतिबद्धता को कारण ।
सौरभ दूही हासिल करीन
प्रेम की येन् शक्ति को कारण ।।३१।।
‌‌मर्यादाओं मा बंधेव होतो येव प्रेम
राजा -रानी को प्रेम होतो सात्विक ।
भोज -लीलावती ये होता दूही
उच्च जीवन लक्ष्य मा आसिक्त ।।३२।।
येको कारण राजा भोज भया
श्रेष्ठ शासक को रुप मा विख्यात ।
महारानी लीलावती भी भयी
श्रेष्ठ विदूषी को रुप मा प्रख्यात ।।३३।।
असो निश्छल प्रेम को कारण
वय भया विश्व का प्रेरणास्थान ।
दाम्पत्य जीवन को आदर्शों लक
पाईन उनन् संसार मा सम्मान ।।३४।।
अध्यात्मनिष्ठ जीवन उनको
भाव मन मा होतो जनकल्याण ।
जीवन मा शक्ति की उपासना
ज्ञान की साधना को अधिष्ठान ।।३५।।

चौरासी ग्रंथों का सृजेता
राजा भोज की महिमा से महान ।
महारानी लीलावती ला
राजदरबार मा मिलत होतो सम्मान।
जन-मानस यदि कर लेये ,भोज
लीलावती को आदर्शों को स्वीकार।
होये भारतवर्ष की संस्कृति को
समाज ना धर्म को भी उत्थान।।३६।।

६.अद्वितीय राजत्व
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प्रिय स्वजनों! राजाभोज सनातन हिन्दू संस्कृति का एक महान संरक्षक व संवाहक होता. वय साहित्य,कला, संस्कृत अना संस्कृति का पोषक होता.उनको शासन मा रानी लीलावती को भी सहभाग ‌होतो. राजा भोज को राजत्व की या विशेषता विश्व को इतिहास मा अद्वितीय व समस्त भारतवासियों साती अत्यंत गौरवास्पद से.
७.उपसंहार
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भोज- लीलावती की संक्षिप्त कथा को अंत मा सबला विनम्र निवेदन से कि …

महिला दिवस जब् मनाओ।
स्मरण अवश्य करत जाओ लीलावती ला।
जयंती मनाओ जब् भोजदेव की,
श्रद्धासुमन चढ़ाओं‌ लीलावती ला।।३७।।

।।इति कथा समाप्त।।

-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
प्रणेता – पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
शुक्र .१२/७/२०२४.