हम इतिहास के आलोक में पोवार समाज को आगे बढ़ायेंगे …! -इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

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हम इतिहास के आलोक में पोवार समाज को आगे बढ़ायेंगे …!
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
♦️इतिहास का अध्ययन समाज को समझने में एवं उसे सही दिशा और आकार देने में उपयोगी साबित होता है ।
♦️वर्तमान समाज ने किस अवस्था से गुजरते हुए प्रगति की है? समाज की प्रकृति , संरचना अथवा स्वरुप क्या है? समाज के विभिन्न आयाम क्या हैं? आदि जानकारी अवगत होती है और इस आधार पर हम अदम्य आत्मविश्वास के साथ समाज को सही दिशा दे सकते हैं।
♦️पोवार समाज के अस्तित्व की रक्षा करने, उसे सही दिशा देने एवं भविष्य को सही आकार देने के उद्देश्य से समाज के स्वरूप को परिभाषित करना यह इस लेख का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
1. पोवार समाज का स्वरूप
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समाज के लोग अपने इतिहास का अनुकरण करते हुए आगे बढ़ना पसंद करता है। इसलिए वें अपनी परंपराओं का पालन करते हुए आगे बढ़ते हैं और इसी में समाज की भलाई निहित होती है।
पोवार समाज का स्वरूप निम्नलिखित है –
1-1. स्वतंत्र मातृभाषा
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पोवार समाज की स्वतंत्र मातृभाषा है,जिसे पोवारी के नाम से संबोधित किया जाता है। मातृभाषा में समाज का लोकसाहित्य निहित है। लोकसाहित्य में विवाह गीत, परहे के गीत, फुगड़ी गीत, लावणी, झड़ती, हाना,उखाणे,कथा कहानी, आदि का समावेश है।पोवारी भाषा के लोकसाहित्य में समाज का इतिहास, धर्म और संस्कृति समाहित है और यह मातृभाषा ही पोवारी संस्कृति की संवाहक है।
मातृभाषा समाज की पहचान हैं और समाज के लोगों में अपनत्व का भाव विकसित करती है। ग्रामीण अंचल में बसे हुए समाज के किसान, कारीगर और मजदूर भाई -बहन मातृभाषा में स्वाभिमान के साथ बातचीत करते है। मातृभाषा को इन लोगों से कोई खतरा नहीं है। शहरी अंचल के लोगों से खतरा है। ये स्वयं मातृभाषा का प्रयोग नहीं करते और मातृभाषा में बातचीत करनेवालों का तिरस्कार करते है।
1-2.सजातीय विवाह
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पोवार समाज में बिसेन, पटले, कटरे, टेंभरे, राहांगडाले आदि 36 कुल हुआ करती थी। इसलिए इस समाज को छत्तीस कुलीय पोवार समाज के नाम से भी संबोधित किया जाता है।अब इस समुदाय में 31 कुल ही अस्तित्व में है फिर भी इस समुदाय को छत्तीस कुलीय पोवार समाज के नाम से पहचान प्राप्त है। सजातीय विवाह को भी ग्रामीण अंचल के लोगों से नहीं, बल्कि शहरी लोगों से ज्यादा खतरा है।
1-3. पोवारी संस्कृति
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पोवार समाज को विरासत में गौरवशाली संस्कृति प्राप्त हुई है। सनातन हिन्दू धर्म एवं संस्कृति ही पोवारी संस्कृति के मौलिक स्त्रोत है।
इसलिए पोवारी संस्कृति में उदारता निहित है।
1-4.सनातन हिन्दू : समाज का धर्म
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पोवार समाज सनातन हिन्दू धर्म का उपासक है। पोवारी संस्कृति यह सनातनी संस्कृति का ही प्रतिबिम्ब है। सनातन हिन्दू धर्म ही पोवारी संस्कृति का मूल स्त्रोत है। सनातन हिन्दू एवं संस्कृति के अलग पोवारी संस्कृति का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। अतः पोवार समाज एवं सनातन हिन्दू धर्म का हित अभिन्न है। दोनों के हितों के बीच सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती।
कुछ प्रबुद्ध वर्ग में गलतफहमी है कि धर्म हित से जाति का हित श्रेष्ठ है। यह ग़लत फहमी इन्हें संकुचित बनाती है और ये लोग सनातन हिन्दू धर्म का अनादर, उपहास, उपेक्षा करते है जो पोवार समाज के शाश्वत हित के लिए ख़तरनाक है। अतः हम यहां दो बातें स्पष्ट कर देना चाहते हैं। प्रथम, जो व्यक्ति हिन्दू धर्म का विरोधी है, वह पोवार समाज के लिए हानिकारक है। द्वितीय, जो सामाजिक संगठन नास्तिक, वामपंथी, बहुजनवादी, धर्मनिरपेक्षतावादी विचारों के शिकार हो गये है, वे भी पोवार समाज के शाश्वत हित के लिए हानिकारक है। तात्पर्य, पोवार समाज की सेवा की हामी भरने वाले व्यक्तियों ने अपना आत्मपरीक्षण करना चाहिए कि वें सनातन हिन्दू धर्म के कितने हितचिंतक है?
1-5. पोवारी साहित्य
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पोवारी साहित्य अलिखित एवं लिखित स्वरूप में है। ईस्वी सन् 2018 की पोवारी भाषिक एवं साहित्यिक क्रांति के पश्चात अलिखित साहित्य को लिखित साहित्य के रुप में संजोने का एवं नये पोवारी साहित्य के सृजन का कार्य व्यापक पैमाने पर संपन्न हुआ है।
समाज में ईस्वी सन् 2020 से झुंझुरका नामक पोवारी बाल ई- द्विमासिक एवं 2024 से साप्ताहिक गोंदिया टाइम्स पोवार समाज दर्पण का प्रकाशन प्रारंभ हुआ है, यह विशेष उल्लेखनीय है।
1-6. राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति
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पोवार समाज यह एक राष्ट्रप्रेमी और राष्ट्रभक्त समाज है। पोवार समाज में राष्ट्रद्रोही को कोई स्थान नहीं है। इसलिए अपनी युवाशक्ति में मातृभाषा, जाति ओर धर्म के प्रति स्वाभिमान विकसित करने के साथ राष्ट्रप्रेम एवं राष्ट्रभक्ति विकसित करना भी सामाजिक संगठनों का महत्वपूर्ण दायित्व है।
2. इतिहास के साथ विद्रोह का प्रयास
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आज़ादी के पश्चात पोवार समाज के संगठनों ने समाज के शैक्षणिक विकास के लिए उल्लेखनीय कार्य किया। लेकिन 1965 से कुछ संगठनों ने निजी स्वार्थ के कारण समाज की ऐतिहासिक पहचान, स्वतंत्र अस्तित्व तथा समाज एवं मातृभाषा का क्रमशः पोवार एवं पोवारी इन दोनों नामों के स्थान पर अन्य गलत नाम प्रतिस्थापित करने का अनुचित प्रयास प्रारम्भ किया। उनका यह प्रयास इतिहास के साथ सीधा विद्रोह था। यह विद्रोह पोवार समाज के व्यवस्थित ताने-बाने को पूरी तरह उध्वस्त कर देगा। अतः उनके इस विद्रोह को रोकने के उद्देश्य से समाज में जनजागृति का कार्य शुरु है, जो परम् आवश्यक है।
3. समग्र क्रांति का उदय (2018)
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ईस्वी सन् 1965 से सामाजिक संगठनों द्वारा समाज की बुनियादी संरचना को तहस -नहस कर मातृभाषा पोवारी तथा पोवार समाज के स्वतंत्र अस्तित्व को समाप्त करने का प्रयास अनिर्बंध रुप से शुरु था। लेकिन 2018 में पोवार समाज में सर्वांगीण चेतना जागृत भाषिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं वैचारिक क्रांति लाने का कार्य प्रारंभ किया गया। परिणामस्वरूप समाज विरोधी विद्रोह की रोकथाम करते हुए और समाज का स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखते हुए उज्जवल भविष्य साकार करने के उद्देश्य से अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ की स्थापना की गई है । युद्धस्तर पर पोवार समाज की मूल संरचना की सुरक्षा के प्रयास शुरु है। महासंघ के उदय के कारण अब हमारे समाज का भविष्य सुरक्षित है एवं समाज सही दिशा में आगे बढ़ रहा है।
4. समाजोत्थान का कल्याणकारी मार्ग
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उपरोक्त मुद्दों के अंतर्गत पोवार समाज के मातृभाषा, सजातीय विवाह, पोवारी संस्कृति,सनातन हिन्दू धर्म , पोवारी साहित्य एवं राष्ट्रीयता यह पांच आयाम बतलाये गये है।इन पांचों आयामों को परिपुष्ट करना यही समाज के लिए हितकारी और समग्र क्रांति का उद्देश्य है। यही समाजोत्थान का सरल उपाय , कल्याणकारी मार्ग है और सामाजिक संगठनों का बुनियादी दायित्व भी है।
5. इतिहास की महत्वपूर्ण सीख
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आज़ादी के बाद के 70 वर्षो के इतिहास से हमें तीन महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं प्रथम, मनुष्य का उत्थान एवं पतन उसके कर्म पर निर्भर होता है लेकिन समुदाय का उत्थान एवं पतन समाज की जागरूकता पर निर्भर होता है। द्वितीय, समाज अगर जागृत हो तो सामाजिक संगठन सही कार्य करते है अन्यथा संगठन के पदाधिकारी समाज को नष्ट करने में भी संकोच नहीं करते। तृतीय, समाज हित के प्रति जागरूक समाज का निर्माण करना यह समाज के विवेकशील , समाज हितचिंतक,प्रबुद्ध वर्ग का महत्वपूर्ण दायित्व है। प्रबुद्ध वर्ग ने अपने इस कर्तव्य का निर्वाह करके समाज ऋण से उऋण होना यही उसका महत्वपूर्ण धर्म है।

-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
सामूहिक चेतना एवं समग्र क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
शनि.20/7/2024.