।। गणितज्ञ लीलावती ।।

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हिन्दी में एक रोचक काव्य -कथा
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१.लीलावती का परिचय
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प्रिय सज्जनों! भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही लीलावती नाम का प्रचलन रहा है। भारत में एक से अधिक लीलावती नाम की विख्यात महिलाएं हुई है। यहां हम महर्षि भास्कराचार्य की कन्या गणितज्ञ लीलावती का परिचय कराने जा रहे हैं। ध्यानपूर्वक सुनियेगा –

आज एक आदर्श कथा सुनाता हूं।
गणित का थोड़ा इतिहास बताता हूं।
भास्कराचार्य की कन्या थी विख्यात,
उस लीलावती की गाथा सुनाता हूं ।।१।।

महर्षि भास्कराचार्य थे
गणितज्ञ के नाम से भारत में विख्यात ।
खोजें थे नये-नये
गणित शास्त्र के अनमोल सिद्धांत।।२।।

महर्षि भास्कराचार्य की
एकमात्र कन्या थी लीलावती।
लावण्यवती थी कन्या
चहुं दिशा में फैली थी ख्याति।।३।

कन्या लीलावती
बचपन से ही विलक्षण बुद्धिमान थी।
कहावत है कि
वह पेड़ के पत्ते भी गिन लिया करती।।४।।

भास्कराचार्य ने
जबसे उसकी जन्मकुंडली देखा था।
भविष्य जानकर
उनका मन शंका कुशंका में डूबा था ।।५।।

वैधव्य लिखा था
कन्या लीलावती के भाग्य में।
भास्कराचार्य स्वयं
सुनकर डूबे गहरी चिंता में।।६।।

युवावस्था में जब आयी उनकी प्राणप्रिय कन्या लीलावती।
पिता ने योग्य वर खोजके
निकाली स्वयं विवाह की शुभ तिथि।।७।।

विवाह समारोह का
बहुत आनंद से किया आयोजन।
शुभ तिथि मुहूर्त पर
लगून लगने का किया नियोजन।।८।।

कन्या लीलावती
सोलह श्रृंगार करके तैयार हुई।
शुभ लग्न की घटिका
शनै: शनै: फिर समीप आईं।।९।।

आये थे सभी रिश्तेदार
कन्या लीलावती की विवाह रश्म में।
विराजमान थे सभी
भास्कराचार्य के घर पर लग्न मंड़प में।।१०।।

किसी कारण से
विवाह की शुभ घड़ी निकल गयी।
क्षण भर विलंब से
लीलावती की विवाह रश्म पूरी हुई।।११।।

सात जन्मों तक
साथ निभाने का वादा किया।
भविष्य का सपना
दोनों के दिल में संजोया गया।।१२।।

विधि का विधान
कुछ और ही था लिखा हुआ।
न किसी ने जाना
न था किसी का देखा हुआ।।१३।।

भास्कराचार्य ने कन्या के
भविष्य का जैसा अनुमान किया था।
उसके विवाह पश्चात
भविष्य वैसा ही घटित हो गया था।।१४।।

विवाह के बाद लीलावती
कुछ ही दिनों में ‌विधवा हो गयी।
पति की मृत्यु के कारण
लीलावती शोक सागर में डूब गयी।।१५।।

२. लीलावती पर संकट
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स्वजनों! कन्या लीलावती के विवाह के पश्चात एक अनहोनी हो जाती हैं। कन्या लीलावती को वैधव्य प्राप्त हो जाता हैं और उसका स्वर्णिम सपना उध्वस्त हो जाता हैं। इसके पश्चात क्या होता है? इसे ध्यानपूर्वक सुनियेगा –

लीलावती अब दिन-रात
पति की यादों में आंसू बहाते रहीं।
किसी को कुछ न कहते हुए
केवल अपने भाग्य को कोसती रही।।१६।।

कुछ ही दिनों में लीलावती
तन -मन से निर्बल हो गयी।
अंधकारमय भविष्य की
कल्पना में दिन -रात खो गयी।।१७।।

कन्या की हालत सुनकर
पिता भास्कराचार्य दुःखी हुए।
अपनी कन्या को दुःख से
उबारने का उपाय सोचने लगे।।१८।।

एक दिन वो कन्या को
ससुराल से अपने घर ले आये।
उचित समय देखकर
लीलावती को प्रेम से समझाये।।१९।।

३.महर्षि भास्कराचार्य की सीख
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प्रिय स्वजनों! महर्षि भास्कराचार्य अपनी दु:खी कन्या को बहुत प्रेम से समझाते हुए, मानव जीवन का एक महान लक्ष्य उदघाटित कर जाते है, जो सबको अवगत करना बहुत महत्वपूर्ण हैं, उसे सुनियेगा –

कन्या को वें कहने लगे
व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करों।
जीवन का लक्ष्य यही है
उसकी प्राप्ति का प्रयास करों।।२०।।

बेटी! तुम्हारी दिव्य प्रतिभा
जन-मानस से कुछ छिपीं नहीं है।
प्रतिभा को व्यक्त होने का
अवसर देने की अब घड़ी आयी हैं।।२१।।

कन्या ने तब पिता से पूछा
पिताश्री!व्यक्तित्व को, व्यक्त करने की राह बताओ।
तब पिता ने कन्या से कहा
गणित में है तुम्हारी रुचि, प्रतिभा उसी में लगाओ।।
।।२२।।

वचन पिताजी का
लीलावती को बहुत सुहाया।
लीलावती ने फिर
गणित शास्त्र में मन लगाया।।२३।।

लीलावती ने अपने जीवन को सही दिशा में मोड़ दिया।
वैधव्य का दु:ख उसने काल प्रवाह के साथ पीछे छोड़ दिया।।२४।।

पिता के सुझाये मार्ग पर चलकर
लीलावती ने गणित में जब मन लगाया।
पिता के द्वारा सुझाया गया उपाय
लीलावती के जीवन में नयी रोशनी ले आया।।२५।।

लीलावती अपने वैधव्य का दु:ख शनै: शनै: फिर भुल गयी।
गणित के नए सिद्धांत खोजके
गणितज्ञ के रुप में विख्यात हुई।।२६।।

४. पिता का कन्या के प्रति वात्सल्य ‌
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प्रिय स्वजनों! महर्षि भास्कराचार्य ने अपनी कन्या को दुःख के समय संवार लिया और उसे एक नयी दिशा दी। उनके दिल में कन्या लीलावती के प्रति कितना प्रेम था?और उन्होंने कन्या का नाम अमर करने के लिए कौन-सा विशेष कार्य किया?इसे अब ध्यानपूर्वक सुनियेगा –

महर्षि भास्कराचार्य ने
गणित के एक ग्रंथ का जब सर्जन किया।
तब उन्होंने ग्रंथ को
लीलावती के नाम से ही शीर्षक दिया ।।२७।।

लीलावती गणित ने
भारत में खूब लोकप्रियता पाया था।
सदियों तक भारत की
शालाओं में उसे पढ़ाया जाता था।।२८।।

लीलावती गणित का नाम
भारत के जन-मानस में खूब छाया था।
लीलावती गणित को फिर
बड़ी चाह से पश्चिम ने भी अपनाया था।।२९।।

धन्य -धन्य है भास्कराचार्य
जिसने कन्या को संवार लिया।
और जिसने निज कन्या को
जीवन की सही दिशा दिया।।३०।।

धन्य धन्य है भास्कराचार्य
जिसने लीलावती ग्रंथ का सर्जन किया।
लीलावती के गणित वहां देकर
निज कन्या का नाम अजरामर कर दिया।।३१।।

धन्य -धन्य हैं लीलावती भी
जिसने विषम परिस्थिति से समझौता किया।
और जिसने अपनी लगन से
गणितज्ञ के रुप में जीवन सार्थक किया।।३२।।
५.लीलावती का महात्म्य
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स्वजनों! विदूषी लीलावती के प्रति लेखक के अंतर्मन के भाव ध्यानपूर्वक सुनियेगा –

लीलावती के योगदान की
यादों को आज भी हम जब याद करते हैं।
उन पावन यादों से
सभी भाव हमारे निर्मल पावन बन जाते हैं।।३३।।

लीलावती के जीवन की
पावन यादें मन का परिष्कार कर जाती है।
उनके जीवन की यादें
जीवन में उंचा उठने की प्रेरणा सदा देती है।।३४।।

लीलावती ने निराशा के
बादलों को हटाने का अद्भुत कार्य किया ।
निराशा के बादल हटाके
राष्ट्र को ज्ञान के क्षेत्र में अतुल्य योगदान दिया ।।३५।।

लीलावती का जीवन चरित्र
कल भी प्रासंगिक था और आज भी प्रासंगिक हैं।
लीलावती का जीवन कार्य
युगों युगों तक प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।।३६।।

५.लीलावती का इतिहास में स्थान
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प्रिय बंधुओं एवं भगिनी! गणितज्ञ विदूषी लीलावती का महत्व एवं इतिहास में जो गौरवपूर्ण स्थान है, उसे ध्यानपूर्वक सुनियेगा –

जब हमारे पश्चिम के देश
गणित के ज्ञान से पूर्ण अनभिज्ञ थे।
तब ‌विदूषी लीलावती के द्वारा
गणित के नये नियम प्रकाशित हो रहें थे।।३७।।

आज भी लीलावती का नाम
शिक्षा जगत में सम्मान का हकदार है।
लेकिन स्वार्थपरायणता के कारण
हुआ वह राजनीति का शिकार है।।३८।।

महिला सशक्तीकरण के इस युग में
लीलावती का नाम अनायास ही याद आता है।
अंतर्मन हमारा श्रद्धापूर्वक
लीलावती के चरणों में श्रद्धासुमन चढ़ाता है।।३९।।

महिला दिन के पावन पर्व पर
हमारा मन लीलावती को भूल नहीं पाता हैं।
उनकी पावन यादों में
अनायास ही देह नतमस्तक हो जाता है।।४०।।

।। इति कथा समाप्त ।।

-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
अध्यक्ष -भवभूति रिसर्च अकॅडमि, आमगांव.
गुरु.२५/७/२०२४.

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