हम किसी भी मूल्य पर मातृभाषा “पोवारी” के ऐतिहासिक नाम को त्याग नहीं सकते…! -इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

0
290
1

♦️पोवार समाज की मातृभाषा को “पोवारी”(Powari) के नाम से संबोधित किया जाता है। यह इसका ऐतिहासिक एवं परंपरागत नाम है।
♦️ भारत में भाषाविद अब्राहम ग्रियर्सन के नेतृत्व में प्रथम भाषाई सर्वेक्षण(१९२७) संपन्न हुआ। इसमें पोवारों की मातृभाषा को पोवारी के नाम से अंकित किया गया है। इसके पश्चात भी सभी जनगणना प्रतिवेदनों में पोवारी नाम अंकित किया गया है।
♦️पोवारी साहित्यिक और कलाकार मातृभाषा के के लिए बहुत गर्व के साथ “पोवारी” नाम का प्रयोग करते हैं।
♦️पोवार समाज के सभी स्तर के लोगों का मातृभाषा के सही नाम के प्रति अटूट प्रेम और लगाव है।
१.नाम बदलने का गलत निर्णय
————————
राष्ट्रीय क्षत्रिय पोवार संगठन ने १९८२ से मातृभाषा पोवारी(Powari ) का ऐतिहासिक नाम मिटाकर उसके स्थान पर पवारी(Pawari) यह ग़लत नाम प्रतिस्थापित करने का प्रयास प्रारम्भ किया। किन्तु समाज के साहित्यिक एवं कलाकार अपनी मातृभाषा के लिए पोवारी इस ऐतिहासिक नाम का ही प्रयोग करते हैं। क्योंकि सच और झूठ को समझने की बौद्धिक क्षमता उनमें है, और यह समाज के लिए गौरवास्पद है। साहित्यिक एवं कलाकारों की उचित भूमिका के कारण महासभा मातृभाषा पोवारी का ऐतिहासिक नाम मिटाकर उसके स्थान पर पवारी यह ग़लत नाम प्रतिस्थापित करने में पूरी तरह विफल रही है और महासभा के प्रति समाज में अविश्वास का भाव विकसित हुआ है।
अपनी इस पराजय को छुपाने के लिए महासभा के पदाधिकारी “समाज में मतभिन्नता रहना स्वाभाविक है, ऐसा कहते हुए पाये जाते है। इस संदर्भ में हमारे दो स्पष्ट अभिप्राय है। प्रथम, महासभा ने जानबूझकर समाज में मतभिन्नता के बीज नहीं बोना चाहिए । द्वितीय, महासभा १९८२ से २०२४ तक यानी लगभग चालीस साल से मातृभाषा पोवारी का नाम बदलने के लिए प्रयत्नशील है। लेकिन ९९ प्रतिशत साहित्यिक और कलाकारों ने स्वाभिमान के साथ मातृभाषा के ऐतिहासिक नाम “पोवारी ” का प्रयोग करते हुए ‌दिखा दिया है कि मातृभाषा के सही नाम के प्रति उनका प्रेम और लगाव है‌ तथा वें अपनी मातृभाषा के ऐतिहासिक नाम को त्याग नहीं सकते।
२. समाज को गुमराह करने का प्रयास —————————–
मातृभाषा का नाम बदलने की पक्षधर महासभा के कुछ ‌व्यकतियों का कहना है कि मातृभाषा के नाम में क्या रखा है? इस पर हमारा कथन है कि मातृभाषा के परंपरागत नाम के प्रति समाज में प्रेम और लगाव है।इस परंपरागत नाम के कारण समाज में एकता, समता और ममता है। उसी प्रकार परंपरागत नाम में समाज का इतिहास छुपा हुआ है। तात्पर्य, मातृभाषा के मूल नाम में असाधारण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक मूल्य ( Social, Cultural and Historical Value ) ‌निहित है।अतः महासभा द्वारा , मातृभाषा के नाम में क्या रखा है? इस प्रकार का प्रचार करना समाज को केवल गुमराह करना है। हम यहां एक बार फिर उदघोष करते है कि “मातृभाषा पोवारी का संवर्धन उसके मूल नाम के साथ ही किया जा सकता है, और हम किसी भी मूल्य पर मातृभाषा के मूल नाम को त्यागकर अन्य नाम का स्वीकार नहीं कर सकते।”
३. गलत नाम से पीएचडी
———————-
भारत की आज़ादी के पश्चात पोवारी भाषा पर सबसे पहले ईस्वी सन् १९७४ में डाॅ सु.बा.कुलकर्णी ने पीएचडी की। इसके पश्चात ईस्वी सन् १९९५ में डाॅ मंजू अवस्थी ने डी लिट की। इन दोनों अनुसंधानकर्ताओं ने पोवारी(Powari )इस सही नाम से अनुसंधान किया। ये दोनों अनुसंधानकर्ता धन्यवाद के पात्र है।
लेकिन ‌विगत कुछ वर्षों में महासभा के ग़लत प्रभाव में आकर ईस्वी सन् २०१०के बाद डाॅ भारती शरणागत तथा ईस्वी सन् २०२३में डॉ तूफान सिंह पारधी ने पोवारी भाषा पर “पवारी”(Pawari )इस गलत नाम से पीएचडी की। इस संबंध में हमारा अभिप्राय है कि किसी के गलत नाम से पीएचडी करने के कारण समाज गुमराह होने वाला नहीं है।
यदि इन पीएचडी पदवी धारकों के गलत प्रयास से समाज गुमराह होना होता तो वर्तमान में ९९ प्रतिशत पोवारी साहित्यिक , पोवारी साहित्य का सृजन करते समय सही नाम का प्रयोग करते हुए नहीं पाये जाते। इसलिए महासभा ने अपनी हठधर्मिता त्यागकर अपना निर्णय बदलना ही उचित है।
४. पोवारी भाषिक क्रांति(२०१८)
—————————–
हमने ईस्वी सन् २०१८ में “पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष” के नाम से पोवारी भाषा के लिए युद्धस्तर पर प्रयास प्रारम्भ किया। इस अभियान को युवाओं का जबरदस्त सहयोग प्राप्त हुआ और भाषिक क्रांति आश्चर्यजनक गति से सफल हुई। इससे स्पष्ट हो गया है कि हमारी युवाशक्ति मातृभाषा पोवारी के सही नाम के साथ खड़ी है और महासभा द्वारा ‌मातृभाषा का ग़लत नाम प्रचारित करने की नीति पूरी तरह विफल हुई है।
५. साहित्य मंडल की स्थापना (२०१८)
———————————
महासभा ने पोवारी का गलत नाम प्रचारित करने की अपनी नीति को विफल होते देख रवि ४ नवम्बर २०१८ को राष्ट्रीय पवारी साहित्य कला संस्कृति मंडल की स्थापना की। इस समय महासभा ने पोवार समाज को गुमराह करने उद्देश्य से साहित्य मंडल के नाम में पवारी (Pawari)इस गलत नाम का प्रयोग किया है।
६. महासंघ की स्थापना (२०२०)
———————
महासभा द्वारा अपनाई गयी मातृभाषा का ऐतिहासिक नाम मिटाकर गलत नाम प्रतिस्थापित करने की नीति पोवार समाज को नामंजूर थी। अतः समाज के एक बड़े प्रबुद्ध वर्ग द्वारा
ईस्वी सन ९ जून २०२०को अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ नामक राष्ट्रीय संगठन की स्थापना की गई। महासंघ का बहुत तेज गति से प्रादेशिक, जिला, तहसील एवं ग्राम स्तर पर विस्तारिकरण का कार्य हो रहा है। यह महासंघ मातृभाषा पोवारी के सही नाम की प्रबल समर्थक है और सही नाम का प्रयोग भी करता है।अखिल भारतीय महासंघ की स्थापना के लिए राष्ट्रीय महासभा की गलत नीतियां जिम्मेदार है।
७. साहित्यिकों की निर्णायक भूमिका
——————————
मातृभाषा पोवारी के नाम के संबंध में साहित्यिकों की भूमिका को विशेष महत्व है और पोवारी साहित्यिकों ने मातृभाषा पोवारी के ग़लत नाम को दरकिनार करके पोवारी इस सही नाम से बड़े पैमाने पर साहित्य सृजन एवं पुस्तकों का प्रकाशन प्रारंभ कर दिया है।
पोवारी कलाकार भी पहले से ही अपने गीत, भजन, आर्केस्ट्रा कीर्तन में पोवारी इस नाम का ही प्रयोग करते आ रहें है। भाषिक क्रांति और महासंघ की स्थापना के कारण अब साहित्यिक और कलाकारों को मातृभाषा के नाम के संबंध में गुमराह करना पूर्णतया असंभव है।
८ .मातृभाषा पोवारी का महत्व
————————-
मातृभाषा पोवारी,पोवार समाज का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। सही नाम के साथ पोवारी के संरक्षण, संवर्धन और उन्नयन में समाज की भलाई है। और ऐसा करना समाज के लिए हितकारी तथा गौरवास्पद भी है। मातृभाषा के महत्व को परिभाषित करती हुई एक कविता मातृभाषा पोवारी में रची गयी है। यह कविता निम्नलिखित हैं –

वंदनीय से मातृभाषा पोवारी —————————–
वंदनीय से मातृभाषा पोवारी।
कालजई से मातृभाषा पोवारी।।धृ.।।

पोवारों की मातृभाषा पोवारी ।
समाज की पहचान से पोवारी।
मधुर मीठी वाणी से पोवारी ।
दस्तावेजों मा अंकित से पोवारी।
वंदनीय से मातृभाषा पोवारी।
कालजई से मातृभाषा पोवारी।।१।।

पोवारी नाव मा लगाव से।
पोवारी नाव मा पहचान से।
पोवारी नाव मा इतिहास से।
पोवारी नाव स्वाभिमान से।
वंदनीय से मातृभाषा पोवारी।
कालजई से मातृभाषा पोवारी।।२।।

पोवारी को शंखनाद लक
समाज का युवा जाग गया।
भाषा को संवर्धन साती
साहित्य सृजन मा जूट गया।
वंदनीय से मातृभाषा पोवारी।
कालजई से मातृभाषा पोवारी।।२।

मातृभाषा को प्रयोग लक
मन मा आत्मिकता जाग जासे।
मातृभाषा को आधार पर
समाज संगठित होय जासे।
वंदनीय से मातृभाषा पोवारी।
कालजई से मातृभाषा पोवारी।।४।।

नाव को जयकार करनेवाला ‌समाज गौरव कहलायेव जासेत।
मातृभाषा का साहित्यिक समाज मा प्रतिष्ठा पाय जासेत।
वंदनीय से मातृभाषा पोवारी।
कालजई से मातृभाषा पोवारी।।५।।

-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
शनि १०/८/२०२४.
——————————–
♥️