1. हट्टा की बावली का निर्माण
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मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के हट्टा ग्राम में एक ऐतिहासिक क़िले के भीतर बावली है।जो गोंड राजवंश के शासनकाल से मध्य भारत में प्रसिद्ध है।
हैहय ( कल्चुरी) राजवंश के पश्चात इस बावली का निर्माण सत्रहवीं सदी में गोंड राजा हटेसिंह वल्के द्वारा ऐतिहासिक किले के भीतर जल की सुविधा, स्नान , भीषण गर्मी के दिनों में विश्राम और युद्धजन्य परिस्थिति में सैनिकों को छिपने के उद्देश्य से की गयी थी। इस बावली में लगभग ३०० लोग विश्राम कर सकते हैं।
राजा हटेसिंह द्वारा गांव बसाया गया और वहां बावली का निर्माण किया गया। इसलिए यह गांव हट्टा के नाम से तथा यहां की बावली हट्टा की बावली के नाम से विख्यात है। हट्टा गांव बालाघाट के दक्षिण – पूर्वी दिशा में 22 कि. मी. दूरी पर स्थित है। हट्टा रेल्वे स्टेशन भी है। हट्टा रेलवे स्टेशन से 9 कि. मी. दूरी पर हट्टा और हट्टा की बावली है।
2. बावली का स्थापत्य
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हट्टा की बावली दो मंजिला है। उपर के मंजिल में 10 स्तंभ एवं बरामदा है, जबकि नीचे के मंजिल में 8 स्तंभ, बरामदा एवं कक्ष है। यह बावली एवं यहां के सभी स्तंभ पाषाण से बनें हुए है। बावली में भीषण गर्मी में भी पानी रहता है।
बावली के प्रवेशद्वार पर शिव अंबिका प्रतिमाओं की कलाकृति है। बावली में भी सुंदर कलाकृति पायी जाती है । यहां की कुछ कलाकृति मराठाकालीन है ।
3.हट्टा का राजनीतिक इतिहास
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गोंड राजवंश के समय हट्टा यह जमींदारी का मुख्यालय रहा होगा। गोंड शासनकाल के पश्चात हट्टा मराठा और ब्रिटिश शासनकाल में एक विख्यात जमींदारी थी और यहां एक जमींदार हुआ करता था।मराठा एवं ब्रिटिश दोनों शासनकाल में हट्टा जमींदारी परगने कामठा में समाविष्ट थी। मराठा शासनकाल में यहां पुनाबापू बहेकार नामक जमींदार था।
कामठा के जमींदार वीर राजे चिमना बहादुर ने नागपुर के राजा आप्पासाहाब के लिए 1818 में अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई लड़ी तब उस समय पुनाबापू नेश्र अपने छोटे भाई चिमना बहादुर को साथ दिया। अंग्रेजों के सैनिक सामर्थ्य के सम्मुख चिमंना बहादुर टिक नहीं पाये।उनकी पराजय के पश्चात अंग्रेजों द्वारा कामठा एवं हट्टा यह दोनों जमिनदारियां बहेकार घराने से छिन ली गयी और नागपुरे वंश को दी गई। अतः ब्रिटिश शासनकाल में यहां नागपुरे घराने के जमींदार का शासन प्रस्थापित हुआ ।
इसप्रकार हट्टा की बावली प्रारंभ में गोंड राजवंश के अधिकारक्षेत्र में थी। उसके पश्चात वह मराठाकालीन एवं ब्रिटिशकालीन जमींदार के अधीन थी।
4. परगने कामठा की तीन प्रसिद्ध वास्तु
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सत्रहवीं से उन्नीसवीं सदी उस तीन सौ वर्षों के कालखंड को पूर्व आधुनिक युग (Pre modern age) के नाम से संबोधित किया जा सकता है । इस युग में भारत ने गोंड,मराठा और ब्रिटिश शासन देखा। मराठा और ब्रिटिश शासनकाल में परगने कामठा एक विख्यात और शक्तिशाली परगना हुआ करता था।
यह परगना लगभग 200 गांवों को गठित करके बनाया गया था। कामठा परगने में वर्तमान मध्यप्रदेश के बालाघाट तथा महाराष्ट्र के गोंदिया जिले का विस्तृत क्षेत्र समाहित था। परगने कामठा में छोटी बड़ी लगभग 25 जमींदारियां थी।
उन दिनों पुना,चाकन,शिरवल भी परगना हुआ करते थे। पुणे परगना में 290 , चाकण में 64 और शिरवल में 40 गांव थे।
मराठा एवं ब्रिटिश शासनकाल में परगने कामठा की तीन वास्तु सुप्रसिद्ध थी। इन वास्तुओं मे कामठा का किला, लिंगा की हवेली और हट्टा की बावली विख्यात थी।
अब लिंगा की हवेली और कामठा के किला खंडहर में तब्दील हो गये है। लेकिन हट्टा की बावली आज भी देखने योग्य है और इसे देखने दूर-दूर के लोग आते-जाते रहते हैं।
5. वर्तमान में हट्टा एवं हट्टा की बावली
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मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में गोंड जनजाति। की संख्या अधिक है। हट्टा क्षेत्र में भी गोंड समुदाय की संख्या अधिक है। हट्टा की बावली के समीप प्रतिवर्ष 3 जनवरी को गोंड जनजाति का बड़ा मेला लगता है।
बालाघाट जिले का हट्टा गांव गोंड ,मराठा तथा अंग्रेज इन तीनों शासनकाल में प्रसिद्ध था। भारत की आज़ादी के पश्चात हट्टा गांव एक विकसित गांव के रुप में उभरा है। यह गांव काफी बड़ा है तथा यहां विभिन्न प्रकार की दुकाने होने से चहल-पहल पायी जाती है।
6.उपसंहार
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नागपुरे जमींदार के वंशज बावली के पास स्थित भूखंड पर आधुनिक सुख-सुविधाओं से युक्त निजी मकानों में निवास करते हैं और खुशहाली से प्रगत जीवन जी रहे हैं। भारत की आज़ादी के पश्चात भी अनेक वर्षों तक यह बावली नागपुरे जमींदार के वंशजों के अधिकार में हुआ करती थी। लेकिन 1987 से पुरातत्व विभाग के अधिकारक्षेत्र में है। यह बावली अच्छी स्थिति में है तथा राष्ट्र की अनमोल धरोहर है। इसका संरक्षण करना एवं हट्टा को पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया जाना चाहिए।
संदर्भ -1.मध्यकालीन भारत का इतिहास, सातवीं कक्षा, सितंबर 2013, म. रा.पा. नि.व अ. संशोधन मंडल.
2. वीर राजे चिमना बहादुर ( उत्तर मध्ययुगीन परगने कामठा च्या विशेष संदर्भा सहित),2018, ओ सी पटले
– ओ सी पटले, आमगांव ( M.S.)
रवि.22/9/2024.
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