नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए हमारे द्वारा संचालित विभिन्न अभियान एवं बहुआयामी सामाजिक कार्य…!* -इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले 

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♦️ प्रत्येक समाज में व्यकिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक समस्या सुलझाने के लिए कुछ लोग प्रयत्नशील होते हैं। इन सबके कार्य समाजसेवा कहलाते है,और इन व्यक्तियों को समाजसेवी के नाम से संबोधित किया जाता है।

♦️ समाज सेवा बहुआयामी होती है और समाज सेवा के कई मुद्दे होते है। समाज सेवी लोग अपनी – अपनी रुचि और योग्यता के अनुसार समाज सेवा किया करते है।

♦️ हमारा ध्यान सामुदायिक हित के जनजागृति पर केंद्रित है तथा पोवार समाज की सामुदायिक भलाई को बढ़ावा देना हमारा उद्देश्य है । युवा चेतना के माध्यम से समाज को उचित दिशा देने का कार्य हम विगत 7 वर्षों से निरंतर कर रहे हैं।

1. पोवार समाज की बसाहट

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पोवार समाज की घनी आबादी वैनगंगा अंचल के गोंदिया, भंडारा, बालाघाट और सिवनी इन चार जिलों में पायी जाती है। भारत की आज़ादी के पश्चात इस समाज के अनेक लोग नागपुर, चंद्रपुर, जबलपुर,‌रायपुर, भिलाई आदि अनेक नगरों में रोजी-रोटी के उद्देश्य से जाकर बसे है। इस समाज के लोग जिन नगरों में बसे है वहां उन्होंने अपने संगठनों की स्थापना की हैं और समाज में एकता बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील पाये जातें है।

2. पोवार समाज की विशेषता

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पोवार समाज का सदियों से स्वतंत्र अस्तित्व है। इस समाज की स्वतंत्र मातृभाषा, संस्कृति और धर्मनिष्ठा है। अतः इस समाज की जड़ें मातृभाषा पोवारी, पोवारी संस्कृति और सनातन हिन्दू धर्म से जुड़ी हुई है।

3. पोवार समाज का इतिहास (1700-1965)

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पोवार समाज गोंड़ राजा बख्त बुलंद के समय लगभग ईस्वी 1700 में मालवा से स्थानांतरित हुआ और वैनगंगा अंचल में आकर यहां का स्थायी निवासी बन गया। इस समाज में 1700 से 1965 तक मातृभाषा, संस्कृति , धर्मनिष्ठा और पहचान के संबंध में किसी प्रकार की विशेष समस्या नहीं थी। इस समाज ने सामाजिक सुधारों के उद्देश्य से 1905 में ‌जाति सुधारनी सभा की स्थापना की। 1915 में बैहर की सिहारपाठ पहाड़ी पर श्रीराम मंदिर की स्थापना की एवं उसे पोवार तीर्थस्थान के नाम से ख्याति प्राप्त करा दी।भारत की आज़ादी के पश्चात इस समाज के कर्णधारों ने समाज को शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति करने के लिए प्रेरित किया। बालाघाट, गोंदिया, नागपुर में ‌पोवार छात्रावासों का निर्माण भी किया गया।

तात्पर्य, पोवार समाज के इतिहास के अवलोकन से प्रतीत होता है कि यह समाज वैनगंगा अंचल में स्थायी रुप से बस जाने के समय से 1965 तक अपनी मातृभाषा, परंपरा, संस्कृति, धर्मनिष्ठता पहचान और इतिहास के साथ प्रगति पथ पर आगे बढ़ता रहा।

4. पोवार समाज का इतिहास (1965 के पश्चात)

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आज़ादी के पश्चात पोवार समाज का नेतृत्व वकील,डाॅक्टर, प्रोफेसर, आदि व्यक्तियों के हाथों में गया और इन लोगों ने प्रगति के नाम पर मातृभाषा पोवारी की उपेक्षा, पोवार समाज के ऐतिहासिक नाम के प्रति तिरस्कार, समाज के ऐतिहासिक नाम के स्थान पर गलत नाम प्रतिस्थापित करना, धर्मनिष्ठता की उपेक्षा आदि गलत नीतियों को अपनाया और समाज की जड़ें खोदने का काम किया।

पोवार समाज के उच्चविद्याविभूषित कर्णधारों ने प्रगति के नाम पर ईस्वी सन् 1965 से समाज की स्वतंत्र पहचान मिटाने की दिशा में कार्य करना प्रारंभ किया। मातृभाषा पोवारी को हेंगली भाषा संबोधित करके बदनाम किया और पोवार तथा पोवारी नाम ग्रामीण है कहते हुए समाज में अपनी असली पहचान के प्रति ‌तिरस्कार के भाव उत्पन्न किए। समाज के कर्णधारों ने 1982 से पोवार और पोवारी नाम मिटाकर उनके स्थान पर क्रमश: पवार एवं पवारी यह अन्य समुदाय और भाषा के नाम प्रतिस्थापित करने का षड़यंत्र प्रारंभ किया।

समाज के कर्णधारों ने 1982 से समाज को गलत दिशा में मोड़ने का कार्य किया। इसके खिलाफ समाज की युवाशक्ति और प्रबुद्ध वर्ग ने भी सामूहिक विरोध प्रकट नहीं किया। लेकिन प्रस्तुत लेखक के ‌लिए यह स्थिति ‌असंतोषजनक थी। उसके मन में उच्चशिक्षाविभुषित कर्णधारों की तथाकथित प्रगतिशील नीति के विरुद्ध अनेक प्रश्न पूर्ण आवेग के साथ उभरने ‌लगे और ‌उसे बेचैन करने लगे।

5. वैचारिक अंतर्द्वंद्व

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मातृभाषा को शास्त्रों में महत्वपूर्ण माना गया है,मातृभाषा के संरक्षण को धर्म बताया गया है और

मातृभाषा को मां की उपमा दी गई है । मातृभाषा ही संस्कृति की संरक्षिका एवं संवाहिका है। मातृभाषा नष्ट होने से संस्कृति नष्ट होती है।

उपरोक्त ज्ञान प्रस्तुत लेखक ने शिक्षा के माध्यम से अवगत किया था।‌लेकिन‌‌ जब उसने अपने समाज में देखा कि स्वयं को प्रगतिशील कहलानेवाले समाज के कर्णधारों द्वारा मातृभाषा पोवारी का तिरस्कार किया जा रहा है, उसे हेंगली भाषा संबोधित करके उसे त्याग कर ‌हिन्दी को मातृभाषा के रुप में अपनाने की सलाह दी जा रही है।

उसी प्रकार उसने देखा कि समाज के कुछ कर्णधारों द्वारा पोवारी नाम को ग्रामीण बताकर समाज पर पवारी नाम थोपा जा रहा है।

प्रस्तुत लेखक द्वारा संपादित ज्ञान और पोवार समाज के कर्णधारों के विचारों में जमीन – आसमान का अंतर होने के कारण उसके मन में ‌वैचारिक अंतर्द्वंद्व उपस्थित हुआ।

6. तथाकथित प्रगतिशील‌ विचारों की समीक्षा

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‌ लेखक ने वैचारिक अंतर्द्वंद्व से अपने आप को संवारते हुए कर्णधारों के तथाकथित प्रगतिशील विचारों पर गहन चिंतन मनन प्रारंभ किया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि समाज के कर्णधारों की ग़लत नीति के कारण निकट भविष्य में पोवार समाज की मातृभाषा पोवारी, पोवारी संस्कृति – संस्कार, पोवार समाज की ऐतिहासिक पहचान, पोवार समाज की परंपरागत धर्मनिष्ठता, आदि समाज की सभी जड़ें अपने मूल को खो देयेगी और समाज का स्वतंत्र अस्तित्व नष्ट हो जायेगा।

उपरोक्त निष्कर्ष पर पहुंचते ही लेखक ने पोवार समाज के शाश्वत हित पर अपना ध्यान केंद्रित करके समाज के स्वतंत्र अस्तित्व को पूर्ववत कायम रखने के लिए निर्भयता पूर्वक समाज को जागरूक करने का निर्णय लिया और 2018 को उसने जनजागृति के लिए एक के बाद एक ऐसा करते हुए बहुआयामी अभियान प्रारंभ कर दिया। सजग युवाओं के प्रयासों से जब 9 जून 2020 को अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार पंवार महासंघ की स्थापना हुई तब इन सब अभियानों को‌ सामूहिक ‌शक्ति और उल्लेखनीय सफलता भी प्राप्त हुई ।

7. जनजागृति के लिए संचालित विभिन्न अभियान

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7-1. पोवारी भाषिक क्रांति अभियान

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लेखक ने जब समाज की दशा और दिशा पर सोचना शुरू करते ही सर्वप्रथम उसकी दृष्टि में दो बातें आयी। प्रथम, गोंदिया की श्री प्रगतिशील शिक्षा संस्था द्वारा मातृभाषा पोवारी का तिरस्कार किया जा रहा है, उसे हेंगली भाषा संबोधित करके उसे त्याग कर ‌हिन्दी को मातृभाषा के रुप में अनुचित सलाह दी जा रही है। द्वितीय, समाज के कुछ कर्णधारों द्वारा पोवार और पोवारी नामों को ग्रामीण बताकर समाज पर पवार तथा पवारी ‌यह अनुचित नाम थोपे जा रहे हैं।

उपरोक्त कारणों से प्रस्तुत लेखक ने सर्वप्रथम अपना ध्यान मातृभाषा पोवारी के संरक्षण, संवर्धन एवं विकास पर केंद्रित किया और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए 2018 में पोवारी भाषा विश्व ‌नवी क्रांति अभियान नामक प्रथम अभियान का प्रारंभ किया। युवाओं एवं प्रबुद्ध वर्ग के उत्साहवर्धक सहयोग के कारण यह अभियान उसी वर्ष समाज में चर्चा का विषय बन गया और तेज गति से सफलता हासिल करते हुए निरंतर आगे बढ़ रहा है।

7-2.इतिहास बचाओ अभियान

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ईस्वी 1982 से राष्ट्रीय क्षत्रिय पंवार महासभा, नागपुर एवं पवार प्रगतिशील मंच, गोंदिया इन दोनों पोवार संगठनों द्वारा पोवार समाज का असली नाम मिटाकर उस स्थान पर मराठा समाज की पवार Surname प्रतिस्थापित करने का अनुचित प्रयास किया जा रहा है, जो पोवार समाज के स्वतंत्र अस्तित्व के लिए आत्मघाती है।‌ अतः प्रस्तुत लेखक द्वारा पोवार समाज एवं मातृभाषा पोवारी के ऐतिहासिक नाम बचाने के लिए व्यापक पैमाने पर जनजागृति की जा रही है। इस अभियान को इतिहास बचाओ अभियान के नाम से संबोधित किया जाता है। अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ द्वारा भी इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया जा रहा है।

7-3. हिन्दुत्व जागरण अभियान

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पोवारी संस्कृति सनातन हिन्दू धर्म पर अधिष्ठित है। इसलिए पोवार समाज और सनातन हिन्दू धर्म के हित अभिन्न है। दोनों के हितों के बीच स्पष्ट विभेदकारी रेखा खींचना असंभव है।

लेकिन भारतवर्ष की आज़ादी के पश्चात पोवार समाज के कर्णधारों ने समाज की धर्मनिष्ठा को सशक्त बनाने के लिए कुछ भी प्रयास नहीं किया। परिणामस्वरूप पोवार समाज धर्मनिरपेक्षतावादी, वामपंथी, बहुजनवादी,आदि विचारधाराओं का शिकार हुआ। समाज की हिन्दू धर्म के प्रति निष्ठा कमजोर हुई और कुछ लोग पीर, फकीर और सांई भक्ति की ओर मुड़े तो कुछ व्यक्तियों ने क्रिश्चन धर्म को भी अपनाया। कुछ व्यक्ति जुमदेव बाबा के “परमात्मा एक” जैसे हिन्दू धर्म विरोधी पंथ भी अपनाते हुए भी देखा जाता है। सलिए प्रस्तुत लेखक द्वारा पोवार समाज की धर्मनिष्ठा को सशक्त करने का कार्य भी निरंतर शुरू है। इस कार्य को हिन्दुत्व जागरण अभियान के नाम से संबोधित किया जाता है।

7-4. साहित्यिक क्रांति अभियान

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भाषिक क्रांति को साहित्यिक क्रांति द्वारा ही स्थायित्व प्राप्त होना संभव है। इसलिए प्रस्तुत लेखक द्वारा साहित्यिक क्रांति अभियान भी संचालित किया जाता है। यह अभियान समस्त पोवारी साहित्यकारों के प्रयासों से सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है।

7-5. वैचारिक क्रांति अभियान

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पोवार समाज का शाश्वत हित कौन-कौन सी बातों पर निर्भर है, इसे जानने – समझने को ‌वैचारिक क्रांति के नाम से संबोधित किया गया है। लेखक द्वारा समाज की युवाशक्ति में वैचारिक अभियान के अंतर्गत यह कार्य प्रभावी रुप से अविरत किया जा रहा है।

7-6. सामूहिक चेतना एवं समग्र पोवारी क्रांति अभियान

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पोवार समाज के विभिन्न पहलुओं को समझते हुए समाज के शाश्वत हितों के प्रति व्यापक जनजागृति को सामूहिक चेतना के नाम से संबोधित किया जाता हैं। सामूहिक चेतना के माध्यम से ही समाज का सर्वांगीण विकास संभव है। इसलिए प्रस्तुत लेखक द्वारा अपने सभी प्रकार के अभियानों के लिए एक ही शब्द प्रयोग करना हो तब “सामूहिक चेतना एवं समग्र पोवारी क्रांति अभियान” नाम का प्रयोग किया जाता है। अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ द्वारा भी सामूहिक चेतना एवं समग्र पोवारी क्रांति अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया जा रहा है।

8. प्रेरणादायक दस्तावेज

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उपरोक्त विभिन्न अभियानों को विविध विचारों, संकल्पनाओं, लेख और कविताओं के माध्यम से सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया गया है। इस संपूर्ण साहित्य को ‌वर्गिकृत करते हुए , विगत सात वर्षों में पोवारी भाषा संवर्धन: मौलिक सिद्धांत व व्यवहार, २०१८ की पोवारी भाषिक क्रांति, पोवार समाजोत्थान के मौलिक सिद्धांत, पोवारों का इतिहास, अनुसंधान, पोवारी भाषा का परिचय और इतिहास, पोवारी भाषा की अमृत गाथा -” फड़कें रत्नजड़ित जरी को पदर”, वैनगंगा की काव्यधारा, राजा भोज महाकाव्य,राजा भोज को राजत्व यह महत्वपूर्ण दस ग्रंथ साकार करके प्रकाशित किया गया है। यह सब ग्रंथ गूगल पर नि: शुल्क उपलब्ध है।

लेखक द्वारा प्रकाशित यह ग्रंथ युवाओं में समाज के प्रति प्रेम और स्वाभिमान का भाव उत्पन्न करेंगे । सभी ग्रंथ समाज की अनमोल विरासत साबित होंगे, युवाओं को सदियों तक समाज सेवा के ‌लिए प्रेरित करते रहेंगे तथा समाज सेवा का पथ आलोकित करतें रहेंगे।

9.निष्कर्ष——–   अंतर्मन में समाज का उज्ज्वल भविष्य साकार हो यह भाव व्याप्त होने के कारण ही प्रस्तुत लेखक ने अपने कार्य की शुरुआत पोवारी भाषिक क्रांति अभियान के द्वारा की थी।‌इस अभियान को समाज के युवा एवं प्रबुद्ध वर्ग का उत्तम प्रतिसाद मिलने के कारण लेखक ने समाज सेवा का दायरा बढ़ाते हुए

अलग-अलग अभियान के नाम के अंतर्गत जनजागृति के कार्य को बढ़ाया। परिणामस्वरूप उसके द्वारा प्रारंभ किये गए कार्य को बहुआयामी स्वरूप प्राप्त होना संभव हो पाया है। इस बहुआयामी जनजागृति अभियान के कारण पोवार समाज के शाश्वत हित और भविष्य सुरक्षित हुआ है।

समाज के हितों का जतन करते के हुए स्वस्थ एवं आदर्श पोवार समाज का निर्माण यही लेखक द्वारा संचालित सभी अभियानों का उद्देश्य है।‌लेखक द्वारा अपेक्षित स्वस्थ एवं आदर्श पोवार समाज का मनोरम शब्दचित्र प्रस्तुत करती मातृभाषा पोवारी में रचित एक सुंदर कविता निम्नलिखित है –

 

।। आदर्श पोवार समाज की संकल्पना।।

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बसंत को बहारों वानी

समाज मा खुशियों की बहार होना।

सावन की झड़ी वानी ।

समाज मा सद्विचारों की बौछार होना।।१।।

 

समाज को युवाओं ला

निज समाज को हित को ज्ञान होना।

समाज की युवाशक्ति ला

स्वयं की पहचान को स्वाभिमान होना।।२।।

 

सुशिक्षितों को मन मा

समाज निर्माण को एक सपना होना।

प्रबुद्ध वर्ग को दिल मा

संस्कृति को प्रति कल्याण कामना होना।।३।।

 

समाज मा मातृभाषा को

संरक्षण संवर्धन विकास को सम्मान होना।

समाज को कर्णधारों ला

मातृभाषा को कार्य व महत्त्व को ज्ञान होना।।४।।

समाज को कर्णधारों ला समाज को सही इतिहास को ज्ञान होना।समाज को कर्णधारों मा उज्ज्वल भविष्य निर्माण को ईमान होना।।५।।

झिलमिल सितारों वानी

पोवारी को नवों साहित्य मा ज्ञान होना।

लखलखतो प्रकाश वानी

समाज मा ‌निज धर्म को स्वाभिमान होना।।६।।

-ओ सी पटले

सामूहिक चेतना व समग्र पोवारी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.

सोम.21/10/2024.

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