१.मातृभाषा को महत्व
भारतीय शास्त्रों को अनुसार स्वधर्म, स्वराष्ट्र व स्वभाषा ला विकसित करनो मानव को एक परम् पावन कर्तव्य से. मातृभाषा, संस्कृति की संरक्षिका व संवाहिका से. मातृभाषा को माध्यम लक संस्कृति व समाज मा एकता को भाव विकसित होसे. जेव समुदाय आपली मातृभाषा विकसित कर लेसे वोन् समुदाय ला एक बुद्धिमान समुदाय को रुप मा विशेष प्राप्त होसे.
२. वर्गीकरण को महत्व
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संसार मा कोनतीही वस्तु,प्राणी, वनस्पति, साहित्य आदि. ला वर्गीकृत करन की पद्धति प्राचीन काल पासून अस्तित्व मा से. वर्गीकरण की पद्धति लक मानव ला एक नवी दृष्टि प्राप्त होसे व भौतिक जगत ला परिभाषित करनों मा सहायक साबित होसे.क्षमानव निर्मित कोनतो भी वस्तु की प्रतवारी सुनिश्चित करन को उद्देश्य लक भी वर्गीकरण की पद्धति को अवलंबन करेव जासे.
३.पोवारी साहित्य को वर्गीकरण
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पोवारी साहित्य मा भाषा को संरक्षण, भाषा मा नव-चैतन्य, भाषा संवर्धन, समृद्धशाली भाषा, भाषा वैभव ये नवीन संकल्पनाएं आयी सेत. साहित्यिकों द्वारा विविध लेख व कविताओं को सृजन होय रही से. येन् साहित्य ला वर्गीकृत को संबंध मा प्रस्तुत लेखक को मौलिक विचार निम्नलिखित से-
३-१.भाषा को संरक्षण साती उपयुक्त
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यदि भाषा बचावन को उद्देश्य लक जूनों अलिखित साहित्य ला लिखित स्वरुप देन को कार्य संपन्न भयी रहें त् असो साहित्य ला पोवारी भाषा ला बचावन को उद्देश्य लक रचित साहित्य को श्रेणी मा समावेश करनो उचित होये.उदा. पोवारी हाना पर रचित पुस्तक, बिहया को जूनों गीतों को संग्रह.
३-२.भाषा संवर्धन को दृष्टि लक महत्वपूर्ण
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नवीन साहित्य लक यदि भाषा मा नव-चैतन्य संचारित होत रहें त् असो साहित्य ला भाषा संवर्धन को दिशा मा महत्वपूर्ण साहित्य की श्रेणी मा समावेश करनो उचित साबित होये.उदा. पायल गौतम द्वारा निर्मित ” खेती किसानी करके करु सू जिन्दगानी,बाई मी पोवार” येव गीत.
३-३. भाषा की समृद्धि को दृष्टि लक महत्वपूर्ण
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वर्तमान मा पोवारी भाषा, संस्कृति, समाज, देवी-देवता,सण – त्यौहार पर विपुल साहित्य को सृजन होय रही से. येन् सब साहित्य ला पोवारी भाषा को समृद्धि को दृष्टि लक महत्वपूर्ण साहित्य को श्रेणी मा ठेवनो उचित होये.
३-४.भाषा वैभव बढ़ावनेवालों साहित्य
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पोवारी भाषा संवर्धन का मौलिक सिद्धांत, पोवारी भाषा को परिचय व इतिहास, पोवार समाजोत्थान का मौलिक सिद्धांत, पोवारी व्याकरण, चंदन राजा को परहा गड़ से या कविता, आदि स्वरुप को महत्वपूर्ण साहित्य ला पोवारी भाषा वैभव को दृष्टि लक महत्वपूर्ण साहित्य को नाव लक संबोधित करनो उचित रहें.
४.उपसंहार
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उपर्युक्त पद्धति लक पोवारी भाषा संरक्षण, संवर्धन, समृद्धि व वैभव को दृष्टि लक पोवारी साहित्य का चार प्रकार सेत. परंतु प्रत्येक प्रकार अलग-अलग सेत असो समझ के उनको बीच स्पष्ट सीमा रेखा खींचनो असंभव व अनुचित से. कारण सभी प्रकार परस्पर पूरक सेत. साहित्यिक ला
स्वयं कोनतो प्रकार को साहित्य को सृजन कर रहीं सेव व आगे कोनतो प्रकार को साहित्य को सृजन करें पायजे येव निर्धारित करन को दृष्टि लक येव वर्गीकरण निश्चितच उपयोगी साबित होये,असो विश्वास से.मातृभाषा पोवारी को महत्व को संबंध मा प्रस्तुत लेखक को विचार अना आकांक्षा व्यक्त करती एक संक्षिप्त सुंदर कविता निम्नलिखित सेत –
।। मातृभाषा।।
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भावों की सहजता,
माय सारखी गहरी माया।
जगत् मा देसे, मातृभाषा की छत्रछाया।।१।।
माय की छत्रछाया वानी,
संसार मा अन्य छाया नाहाय।
मातृभाषा को शब्दों वानी,
अन्य भाषाओं मा माया नाहाय।।२।।
मातृभाषा सारखी
मीठास नाहाय अन्य कोनतीच भाषा मा।
वैभव शिखर पर
जान लाईक चैतन्य आनों मातृभाषा मा।।३।।
मातृभाषा को वैभव लक
तुम्हाला एक प्रीत मिले एक रीत मिलें।
मातृभाषा को वैभव लक
समाज ला भारतवर्ष मा पहचान मिलें।।४।।-
ओ सी पटले
पोवारी भाषा शोध, विकास व वैभव अभियान भारतवर्ष.
रवि.१५/१२/२०२४.
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