पोवारी भाषा की मधुरिमा, सौंदर्य व सार्थकता हलंत को सही प्रयोग पर निर्भर से… !

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– इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

1.पोवारी भाषा को परिचय
भारतीय संविधान की 22वी अनुसूची मा राजभाषा हिंदी की 48 उपभाषाएं अंकित सेत. येन् अनुसूची मा केंद्रीय भारत मा स्थित वैनगंगा अंचल को पोवार समाज की मातृभाषा पोवारी (Powari ) को भी समावेश से.पोवार समाज की आबादी लगभग 15 लाख से.

2.पोवारी भाषा मा हलंत को महत्व
पोवारी भाषा मा जेन् अक्षर को स्वल्प उच्चारण होसे वोन् अक्षर को खालत्या हलंत चिन्ह् (अक्षर को खाल्या ् असी तिरछी रेखा)को प्रयोग करेव जासे. हलंत चिन्ह् को कारण पोवारी भाषा मा मधुरता व मीठास उत्पन्न होसे. पोवारी भाषा बहुत मधुर व मीठी से,असो संबोधित करेव जासे. परंतु येको एक बुनियादी कारण परिभाषित करन को प्रयास अजवरी एक भी साहित्यिकों द्वारा संपन्न नहीं भयी से. अज यहां आत्मविश्वास पूर्वक अंकित करेव जाय रहीं से कि पोवारी भाषा मा ज्या मधुरता पायी जासे, वोको एक मौलिक कारण हलंत को प्रयोग येव भी से.

3. विभिन्न भाषाओं मा हलंत को प्रचलन
हलंत को प्रयोग देवभाषा संस्कृत मा प्रचलित से. हलंत को थोड़ो बहुत प्रचलन हिन्दी मा भी से. मराठी मा हलंत को प्रचलन नाहाय. मराठी मा हलंत को प्रयोग न करता जेन् अक्षर को स्वल्प उच्चारण होसे वोन् अक्षर को वोरया एक बिंदु देयके स्वल्प उच्चारण को संकेत देयेव जासे.
पोवारी भाषा मा हिन्दी को अपेक्षा हलंत को प्रयोग अधिक करनो पड़् से. येको कारण पोवारी भाषा भाषा मा लिखनो हिन्दी दून अधिक कठीन से. परंतु हलंत को अधिक प्रचलन को कारण पोवारी भाषा, हिन्दी दून अधिक मधुर व मीठी से या बात यहां प्रमुखता लक उदघाटित करेव जाय रहीं से.

4. भाषाशास्त्रीय दृष्टिकोण
भाषाशास्त्र को अनुसार जेन् भाषा को उच्चारण व लिखावट मा समानता से,वा भाषा उत्तम मानी जासे. संस्कृत, हिन्दी व मराठी मा उच्चारण व लिखावट मा समानता रहेव को कारण ये भाषा उत्तम सेती.अग्रेजी भाषा को उच्चारण व लिखावट मा अंतर पायेव जासे. येको कारण अंग्रेजी भाषा भाषाशास्त्र को दृष्टि लक निकृष्ट से.

5. प्रात्यक्षिक की आवश्यकता
ईस्वी सन् 2018 पासून पोवारी भाषा मा विपुल मात्रा मा साहित्य को सृजन व प्रकाशन शुरू से. लेकिन साहित्यिकों की उपेक्षा वृत्ति अथवा आलस को कारण योग्य स्थान पर हलंत को प्रयोग नहीं होय रही से. अखिन एक बात दृष्टिगोचर होसे कि साहित्यिक बहुधा अनावश्यक स्थान पर हलंत को प्रयोग कर देसेत. येन् सब भूल-चूक , गलती ,आलस अथवा सही जानकारी को अभाव को कारण पोवारी साहित्यिक हलंत को सही प्रयोग करनो मा विफल होसेत. परिणामस्वरूप पोवारी भाषा को उच्चारण व लिखावट मा अंग्रेजी भाषा वानी तफावत निर्माण होय जासे.
पोवारी भाषा मा हलंत को प्रयोग कसो करें पायजे ? येव एखाद प्रात्यक्षिक द्वारा समझाय के सांगन को विचार मन मा बहुत साल पासून होतो . परंतु लिखाण मा व्यस्तता को कारण संभव नहीं होय पायेव. योगा-योग लक एक पौराणिक कथा हिन्दी मा बाचन को अवसर प्राप्त भयेव. अकस्मात मन मा विचार प्रकट भयेव कि पोवारी भाषा मा हलंत को सही प्रयोग कसो करेव जासे‌‌ ? येको प्रात्यक्षिक प्रस्तुत करन साती या कथा उपयुक्त साबित होये. येन् लहानशी कथा मा लगभग 42 घन हलंत को प्रयोग भयी से. हलंत को प्रयोग कहां करें पायजे ? येव समझन को उद्देश्य लक या कथा निम्नलिखित से.

6.हलंत प्रयोग को प्रात्यक्षिक
।। सदन कसाई: एक पौराणिक कथा।।
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एक नगर मा सदन कसाई जी नामक महात्मा होता. उनको कुल धर्म कसाई कार्य होतो, परंतु वय उच्च कोटि का महात्मा‌ होता. बहुत सा महात्मा उनको संग मा भगवत चर्चा करन को उद्देश्य लक उनको जवर आवत होता. एक घन उनन् श्री जगन्नाथ जी को दर्शन करन को निर्णय लेईन.मार्ग मा थोड़ो विश्राम करन साती वय एक घर को बाहर बस गया. वोन् घर की स्त्री न् जब् सदन जी ला देखीस त् वा उन पर आसक्त भय गयी. पहले उनला भोजन साती पूछीस. वोन् स्त्री को भाव लक अनभिज्ञ सदन जी न् वोको हाथ को भोजन ग्रहण कर लेईन. आता वोन् स्त्री न् कहीस कि येतरी रात भय गयी से, रात्रि तुम्हीं यहां विश्राम कर लेव. सदन जी न् पहले त् मना करीन , परंतु वय त् केवल स्त्री को सेवा भाव देख रह्या होता,त् उनन् रात मा रुकन साती हो कह देईन. रात्रि मा वोन् स्त्री न् आपलो भाव सदन जी को सामने प्रगट करीस. येको पर सदन जी न् कहीन कि तुम्हीं विवाहित सेव. तुमला असो चरित्र शोभा नहीं दे, त् वोन् स्त्री न् समझीस कि शायद ये मोरों पति को कारण मना कर रहया सेत. अतः वा गयी अना वोन् आपलो पति की हत्या कर देईस.
पति की हत्या करन को पश्चात मंग वा सदन जी को जवर गयी अना कहीस कि आता मोरा पति भी नाहात, अत: तुमला मोरो संग प्रेम करनो पड़े. सदन जी द्वारा मना करनो पर वोन् स्त्री न् कहीस कि यदि तुम्हीं मोला स्वीकार नहीं करयात त् मी शोर मचायके सब ला सांगू कि तुम्हीं न् मोरों संग् दुर्व्यवहार करन को प्रयास करयात अना मोरो मना करन को कारण मोरों पति की हत्या कर देयात. सदन जी धर्मात्मा होता . वय धर्म विरुद्ध कोनतोच आचरण भूल के भी नहीं करत होता . उनन् ‌वोन् महिला ला सांगीन कि मी कोनतोच पाप आचरण नहीं कर सकूं, वा चाहें जो भी कर लें. वोन् स्त्री न् हो हल्ला करके आसपास वालों लोगों‌ ला इकठ्ठा करीस व सब न् सदन कसाई जी ला राजा को दरबार मा लेगईन.
राजा न् जब् सदन कसाई ला सत्य स्थिति को बारा मा पूछीस तब् सदन कसाई जी न् कहीन कि मी चाहे जो कहूँ किन्तु मोरो जवर मोरी सत्यता को प्रमाण नाहाय. परंतु महाराज! तुमला एक विनंती से कि मोला प्राणदंड को अलावा अन्य दंड देन की कृपा करों. मी जगन्नाथ जी को दर्शन करन जाय रहेव होतो व उनको दर्शन को पूर्व मी प्राण नहीं त्यागनो चाहूं. राजा भी महात्माओं ला मानने वालों होतो. राजा न् सदन कसाई ला प्राण दंड त् नहीं देईस, परंतु उनका हाथ कटवावन को निर्देश देईस . सदन कसाई बहुत प्रसन्न भया . उनन् जगन्नाथ जी ला मनोमन धन्यवाद देत कहीन कि प्रभु तुम्हीं केतरा कृपालु सेव, तुम्हीं दर्शन को पूर्व मोरों प्राणों की रक्षा करयात. सदन जी का दूही हाथ काटकर छोड़ देनो पर भी वय शारीरिक पीड़ा लक तनिक भी विचलित नहीं भया, उनकी कटी भुजाओं लक रक्त बह रहेव होतो, फिर भी वय जगन्नाथ प्रभु को गुणगाण करत उनको दर्शन को उद्देश्य लक वहां पहुंच गया, अना प्रभु ला देखताच उनन् आपली कटी भुजाओं लक आपला हाथ जोड़न को प्रयास करताच उनका नवीन हाथ प्रकट भय गया. सदन जी फफक फफक कर रोय पड़्या. प्रभु न् सदन जी ला पूछीन कि तुमरो संग् येतरो मोठो अन्याय भयेव तरी तुमला मोरों पर थोड़ो भी क्रोध नहीं आयेव. सदन जी न् कहीन कि प्रभु तुमरो द्वारा देई गयी विपत्ति मा भी मोला संपत्ति दिसू आव् से त् मी तुमरो पर कोंती बात पर क्रोध करुं? धन्य सेत सदन कसाई वानी भक्त !

7. क्रांति साती लवचिकता को पुरस्कार
उपर्युक्त पौराणिक कथा मा हलंत को प्रयोग अधिक से. येको कारण प्रात्यक्षिक साती येन् कथा को चयन करेव गयेव. परंतु पोवारी भाषा को प्रत्येक लिखाण मा येतरो मोठो प्रमाण मा हलंत को प्रयोग करनो पड़् से, असी गलत मान्यता बनावनो भी हानिकारक साबित होये. हलंत को प्रयोग लिखाण को स्वरुप पर निर्भर होसे.‌उदा.‌प्रस्तुत लेख को मुद्दा क्र. 7 को उपसंहार मा एक भी स्थान पर हलंत को प्रयोग करन की आवश्यकता नहीं पड़ी . अतः ‌हलंत‌ को प्रयोग लक घबरान की आवश्यकता नाहाय. दूसरी महत्वपूर्ण बात या से कि आमला नियम को बंदिस्त न बनता नियमों मा शिथिलता ठेयके पोवारी भाषा को संरक्षण,संवर्धन व उत्थान करनों से. पोवारी भाषा विश्व नवीं क्रांति द्वारा व्याकरण मुक्त लिखाण को सिद्धांत मान्य करेव गयी से. जे साहित्यिक उत्तम साहित्यिक बनन की राह पर आगे बढ़ेती उनको द्वारा आपलो साहित्य मा हलंत को सही प्रयोग करनो अपेक्षित से.
8.पोवारी भाषा ला नवी उंचाई
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पोवारी भाषा संवर्धन को कार्य युद्धस्तर पर शुरू से. मातृभाषा पोवारी ला एक नवी उंचाई पर पहुंचावनों व पोवारी ला प्रतिष्ठित भाषा को रुप मा प्रस्थापित करन का भागीरथी प्रयास शुरु सेत.‌पोवारी भाषा को अभ्युत्थान की दिशा दर्शावती एक महत्वपूर्ण कविता निम्नलिखित से –
।।पोवारी ला नवी ऊंचाई ।।
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संस्कृत व हिन्दी का
मधुरम शब्द पोवारी मा आनूं।
मातृभाषा पोवारी ला
एक समृद्धशाली भाषा बनाऊं।।

कल्पनाओं की
ऊंची उड़ान साहित्य मा लेवूं।
मातृभाषा पोवारी ला
एक सौंदर्य शाली भाषा बनाऊं।।

भावनाओं का रंग
पोवारी को साहित्य मा घोलूं।
मातृभाषा पोवारी ला
एक वैभवशाली भाषा बनाऊं।।

बहुमूल्य शब्दों को
प्रयोग भी साहित्य मा करुं।
मातृभाषा पोवारी ला
एक मूल्यवान भाषा बनाऊं।

नवों परिवेश ला
व्यक्त करनों मा सक्षम बनाऊं।
मातृभाषा पोवारी ला
अद्यतन प्रासंगिक भाषा बनाऊं।।

मातृभाषा पोवारी ला
एक प्रतिष्ठित भाषा बनाऊं।
मातृभाषा पोवारी ला
एक अच्छी पहचान देवाऊं।।

मातृभाषा पोवारी की
मूल संरचना को सम्मान करुं।
मातृभाषा पोवारी ला
एक नवी ऊंचाई पर पहुंचाऊं।।

ओ सी पटले
शुक्र 24/1/2025.
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