केंद्रीय भारत की शान पोवार समाज को परिचय एवं उनकी गौरवगाथा – इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

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1.पोवार जाति को परिचय
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पोवार या राजपूत समुदाय सीन संबंधित जाति आय.पोवार समाज मालवा व राजस्थान को मूल निवासी आय. पोवार जाति को रक्तसंबंध परमार वंश सीन से. पोवार जाति की उत्पत्ति सम्भवतः मध्ययुग को पूर्वार्ध मा यानि चक्रवर्ती राजा भोज को शासनकाल को आसपास को कालखंड मा भयी से. बाबुलालजी भाट की पोथियों को अनुसार 36कुलीय क्षत्रियों को एक सैनिक संघ लक भयी से. स्वजनों! पोवार जाति को ऐतिहासिक परिचय ध्यानपूर्वक श्रवण करों –

पोवार समाज की एक विमल धारा से।
वैनगंगा अंचल मा येको सुंदर बसेरा से।
फल फूल रहीं से समाज खुशहाली लक,
गौरवशाली परंपरा को जीवन ला सहारा से।।

छत्तीस कुलीय क्षत्रियों को सुंदर संगम से ।
छत्तीस फूलों की या फूलमाला विहंगम से ।
खून को रिश्ता मा बंध्या सेत यहां सभी,
मातृभाषा से पोवारी, हिन्दू जीवन-दर्शन से ।।

छत्तीस कुल को एक होतो सैनिक संघ ।
शनै: शनै: परस्पर रिश्तेदारी मा बंध गयेव ।
एक भाषा एक संस्कृति आयी अस्तित्व मा,
अना येव संघ जाति मा परिवर्तित भय गयेव ।।

सम्राट प्रथम विक्रमादित्य होता महान। चक्रवर्ती महाराजा भोज न बढ़ाईन शान।
गौरवशाली इतिहास से परमार वंश को,
क्षत्रिय पोवारों की आय या खून खानदान।।

2. वैनगंगा अंचल मा पोवारों को जीवन
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पोवार जाति ईस्वी सन् 1700को आसपास मालवा लक स्थानांतरित भयी एवं वैनगंगा अंचल की स्थाई निवासी बन गयी. गोंड शासनकाल व मराठा शासनकाल मा खेती किसानी को व्यवसाय एवं युद्ध मा सहभाग असा दूही कार्य पोवार जाति का व्यक्ति करत होता.पोवार जाति का काही व्यक्ति जमींदार व मालगुजार होता. ब्रिटिश शासनकाल पासून पोवारों को जीवन केवल खेती -किसानी पर निर्भर भय गयेव. ब्रिटिश शासनकाल मा जमींदारी मालगुजारी कायम रहीं. प्रिय स्वजनों! वैनगंगा अंचल मा पोवार समाज को जन-जीवन को संक्षिप्त दर्शन कराऊं सूं, ध्यानपूर्वक श्रवण करों –

गोंड राजा बख्तबुलद ला देन साती साथ ।
वैनगंगा को अंचल ला बनाईन निज धाम।
वतन सोड़कर भी बचाईन संस्कृति संस्कार।
पोवारी भाषा ला देईन जीवन मा अग्रस्थान।।

वैनगंगा अंचल मा बसाईन गाव-गव्हान ।
नवो गांवों मा करीन राममंदिरों को निर्माण ।
सिहारपाठ पर बनाईन श्रीराम जी को मंदिर,
संबोधित करेव जासे येला ‌पोवार तीर्थस्थान ।।

खेती किसानी मा बहायीन आपलो घाम ।
जमींदारी नि मालगुजारी मा कमाईन‌ नाम।
जीवनयापन करीन चिखलपानी मा राबके
आधुनिक युग मा शिक्षा को दामन लेईन थाम ।।

उत्तर मा बालाघाट बरघाट की पर्वत घाटी।
दक्षिण मा से वनों लक शोभित झाड़ी पट्टी।
फैली से यहां सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखला,
चंदन से वैनगंगा अंचल की पावन माटी।।

3.पोवार समाज की संस्कृति
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पोवार समाज की एक स्वतंत्र मातृभाषा से.
या मातृभाषा पोवारी(Powari) को नाव लक जानीं जासे. पोवार समाज सनातन धर्म को अनुयाई से. सनातन धर्म मा निहित देवी देवताओं को प्रति ‌समाज को अटूट भक्ति- भाव पायेव जासे. प्रिय स्वजनों! मी आता पोवार समाज की प्रमुख सांस्कृतिक विशेषता वर्णित कर रही सेव. निवेदन से कि ध्यानपूर्वक श्रवण करों –

पोवार , एक स्वतंत्र जाति समुदाय से ।
पोवार समाज की मातृभाषा पोवारी से।
समाज की संस्कृति कहलाव् से पोवारी ,
पोवारी या एक सुसंकृत जीवनशैली से ।।

समाज का प्रथम ‌आराध्य प्रभु श्रीराम ।
कुलदेवता भगवान शिवशंकर भोलेनाथ ।
समाज की कुलदेवी मा‌ जगदंबा भवानी ,
संस्कृति ला से सनातन धर्म को अधिष्ठान ।।

4.पोवारी भाषा को मूल्य व महत्त्व
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प्रिय स्वजनों! आता पोवारी भाषा की विशेषता, मूल्य व महत्त्व संक्षिप्त मा वर्णित कर रही सेव. निवेदन से कि ध्यानपूर्वक श्रवण करों –

पोवारी पोवारों को कंठ की झंकार।
पोवारी पोवारों की वाणी को श्रृंगार।
परस्पर संवाद को माध्यम से पोवारी,
पोवारी पोवारों को मन की बहार।।

मातृभाषा पोवारी से पोवारों की शान ।
मातृभाषा पोवारी से समाज को प्राण ।
मातृभाषा एकता को रेशमी बंधन से ,
पोवारी भाषा से समाज की पहचान ।।

पोवारी लोकसाहित्य से समाज को दर्पण।
पोवारी लोकसाहित्य मा से जीवन- दर्शन।
लोकसाहित्य से संस्कारक्षम गौरवशाली,
लोकसाहित्य मा गूंथी से समाज को मन।।

5. पोवारी भाषा विकास को आंदोलन
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भारत ला स्वतंत्रता प्राप्ति को पश्चात पोवार समाज न् शिक्षण को क्षेत्र मा उल्लेखनीय प्रगति करीस. पोवार समाज का अनेक व्यक्ति आता नागपुर, जबलपुर, रायपुर, भिलाई, आदि नगरों मा स्थाई रुप लक बस गया सेत. पोवार जाति का व्यक्ति आता देश – विदेश सर्वत्र पाया जासेत.
आधुनिक भारत मा शिक्षण को प्रचार -प्रचार को कारण पोवार समुदाय न् विविध क्षेत्रों मा प्रगति करीस. परंतु मातृभाषा की उपेक्षा भयी. समाज मा ईस्वी सन् 2018पासून मातृभाषा पोवारी को विकास साती युद्धस्तर पर व्यापक प्रयास शुरु सेत. प्रिय स्वजनों! मातृभाषा पोवारी की वर्तमान स्थिति एवं मातृभाषा को प्रति ‌लेखक को संकल्प ध्यानपूर्वक श्रवण करों-

पोवारी भाषा ऊंची उड़ान लेत चली।
चर्चा मातृभाषा की देश मा फैलत चलीं।
‌पोवारी भाषिक क्रांति भयी पूर्ण सफल,
आशा की ज्योति हर दिल मा जलत चलीं।।

मातृभाषा की कभी शाम ना होन देबी ।
मातृभाषा ला कभी कमजोर ना होन देबी ।
पोवारी भाषा ला देवाबीन राष्ट्रीय पहचान,
मातृभाषा को आंचल नीलाम ना होन देबी ।।

6. उपसंहार
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पोवार समुदाय को इतिहास संघर्षमय रहीं से. परंतु समुदाय की जीवनगाथा गौरवशाली से. प्रिय स्वजनों ! मी आता महान पूर्वजों को संघर्ष ला स्मरण करत समाज की समस्त जीवन गाथा को सारांश वर्णित करु सूं. ध्यानपूर्वक श्रवण करों-

पोवार समाज की या विमल धारा से।
समाज पर वैनगंगा की छत्रछाया से।
पोवारों को इतिहास‌ से गौरवशाली,
शौर्य की साक्षी सतपुड़ा पर्वत माला से।।

मालवा धार मा सोड़के आपलो वतन ।
माय वैनगंगा को थाम लेईसेन आंचल । प्रेरणादायक से जीवन गाथा समाज की,
पूर्वजों को इतिहास ला से शत् शत् वंदन ।।

ओ सी पटले
प्रणेता -Powari Bhasha Vishva Navi Kranti (PBVNK )
रवि.15/2/2025.
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