भारत के गौरवशाली इतिहास में राजा भोज (पंवार क्षत्रिय) का नाम एक महान विद्वान, धर्मपरायण शासक और संरक्षक के रूप में लिया जाता है। उन्होंने न केवल अपने पराक्रम से राज्य का विस्तार किया, बल्कि सनातन धर्म, संस्कृति और विद्या के प्रसार के लिए अनेक कार्य किए। उन्हीं के संरक्षण में भोजशाला संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, जो विद्या, कला और धर्म के समन्वय का अद्वितीय केंद्र बना।
माँ वाग्देवी सरस्वती की आराधना और मंदिर की स्थापना:
राजा भोज मां वाग्देवी (सरस्वती) के परम भक्त थे। उनका मानना था कि ज्ञान ही राष्ट्र की वास्तविक शक्ति है। इसी आस्था के साथ उन्होंने भोजशाला में माँ सरस्वती की एक भव्य प्रतिमा स्थापित की और वहाँ विधिपूर्वक पूजन-अर्चन प्रारंभ किया। इस विश्वविद्यालय में विद्वानों, आचार्यों और शास्त्रज्ञों को अध्ययन एवं अध्यापन का सर्वोत्तम वातावरण मिला। यहाँ संस्कृत भाषा, वैदिक ग्रंथों, दर्शन, ज्योतिष, चिकित्सा और स्थापत्य कला का गहन अध्ययन किया जाता था।
राजा भोज ने सनातन धर्म के संरक्षण हेतु भोजशाला को एक मंदिर एवं गुरुकुल का स्वरूप दिया। यह केवल एक शिक्षण केंद्र नहीं था, बल्कि माँ वाग्देवी का पवित्र धाम भी था, जहाँ विद्या और धर्म एक साथ पनपते थे।
भोजशाला की विशेषताएँ:
1. संस्कृत विद्या का केंद्र – यह भारत के प्रमुख संस्कृत विश्वविद्यालयों में से एक था, जहाँ संपूर्ण भारत से विद्वान आते थे।
2. माँ वाग्देवी का मंदिर – यहाँ माँ सरस्वती की एक दिव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित थी, जिसकी पूजा राजा भोज स्वयं किया करते थे।
3. वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण – यह मंदिर अद्वितीय स्थापत्य कला का प्रतीक था, जिसमें पत्थरों पर उकेरी गई सुंदर नक्काशियाँ और वैदिक मंत्रों के शिलालेख अंकित थे।
4. ज्ञान और शक्ति का संगम – राजा भोज ने इसे केवल शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति और धर्म का एक प्रमुख स्थल भी बनाया।
राजा भोज की ज्ञान परंपरा:
राजा भोज ने न केवल भोजशाला की स्थापना की, बल्कि अनेक ग्रंथों की भी रचना की। उनके द्वारा रचित “समरांगण सूत्रधार” भारतीय स्थापत्य कला का अमूल्य ग्रंथ है। उनके शासनकाल में संस्कृत, साहित्य, विज्ञान और राजनीति का स्वर्ण युग था।
आज की भोजशाला:
भोजशाला आज भी भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है। यह हमें हमारी सनातनी जड़ों से जोड़ता है और याद दिलाता है कि शिक्षा और धर्म के प्रति राजा भोज जैसे सम्राटों का योगदान अमूल्य है। हमें इसे पुनः अपने प्राचीन वैभव को लौटाने का प्रयास करना चाहिए।
अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ

