होलीका दहन में गोबर उपलों (बैडकुल्ला) का महत्व: श्रद्धा, विज्ञान और पर्यावरण अनुकूल परंपरा

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परंपरा का अर्थ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संगम

गोंदिया / धनराज भगत

भारतीय होली पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसके पीछे जीवन मूल्यों, प्रकृति संरक्षण और सामाजिक समरसता का गहरा दर्शन छिपा हुआ है। जिस प्रकार होली रंगों का पर्व है और आनंद का प्रतीक है, उसी प्रकार होलीका दहन धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल से हर घर से गोबर उपले (बैडकुल्ला) एकत्र कर उन्हें होली में अर्पित करने की परंपरा रही है। यह प्रथा केवल श्रद्धा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल और वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

धार्मिक और सामाजिक महत्व

असत्य पर सत्य की विजय – होलीका दहन पौराणिक रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। घर में संचित गोबर उपलों को जलाने का अर्थ नकारात्मक ऊर्जा का नाश और शुद्ध वातावरण का निर्माण है।

सामाजिक एकता और समरसता – प्रत्येक घर से गोबर उपले लाकर उन्हें एक साथ जलाना समाज में एकता और समरसता का प्रतीक है। यह संदेश देता है कि समाज को बुरे विचारों और नकारात्मक प्रवृत्तियों को नष्ट करने के लिए एकजुट होना चाहिए।

समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा – भारतीय संस्कृति में गाय और उसके उत्पादों को पवित्र माना गया है। गोबर में प्राकृतिक शुद्धता होती है, इसलिए इसे जलाने से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

पर्यावरण शुद्धीकरण – गाय के गोबर में प्राकृतिक रूप से जीवाणु नाशक गुण होते हैं। जब उपले जलते हैं, तो वातावरण को शुद्ध करने वाले तत्व हवा में मिलते हैं।

प्रदूषण रहित अग्नि – गोबर उपलों को जलाने से कोई हानिकारक प्रदूषण नहीं फैलता, जिससे यह रासायनिक उत्पादों की तुलना में अधिक पर्यावरण-अनुकूल होली मनाने का तरीका है।

कृषि के लिए लाभदायक राख – होली जलने के बाद बची हुई राख पोटाश और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होती है।

“होलीका दहन में गोबर उपलों का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पर्यावरण शुद्धिकरण का स्पष्ट वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिखाई देता है। गोबर में मौजूद प्राकृतिक जीवाणुनाशक तत्व वायुमंडल में मौजूद हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर शुद्ध वातावरण का निर्माण करते हैं, साथ ही उसकी राख में पाए जाने वाले पोषक तत्व मिट्टी के लिए लाभदायक होते हैं। यह परंपरा केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने का प्रभावी साधन है। ‘प्रकृति की रक्षा करें, प्रदूषण से बचें’— यह संदेश आधुनिक युग में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।”

– मनीष शर्मा (आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक विचारक)

प्रकृति प्रेमी परंपरा और नई पीढ़ी के लिए संदेश

यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति संरक्षण, धार्मिक श्रद्धा और सामाजिक समरसता का महत्व सिखाती है।

होलीका दहन में गोबर उपलों का उपयोग केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक एकता और वैज्ञानिक कारणों का सुंदर समन्वय है।

“संस्कार और विज्ञान का उचित उपयोग कर हम एक स्वच्छ, पर्यावरण-अनुकूल और सकारात्मक समाज का निर्माण कर सकते हैं!”

 

 

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