

पोवार समुदाय में समाज और मातृभाषा पोवारी का ऐतिहासिक नाम बदलने का षड़यंत्र विगत अनेक वर्षों से चल रहा है। इसके खिलाफ हमारा जनजागृति अभियान भी 2018 से निरंतर चल रहा है। समाज और मातृभाषा का नाम बदलने के षड़यंत्र की गंभीरता का सबको सहजता से एहसास हो, इसलिए विषय की शुरुआत हम अपनी पहचान से प्रारंभ करते हुए पोवार समुदाय में चल रहे समाज और मातृभाषा की पहचान बदलने के षड़यंत्र को विस्तार के साथ परिभाषित करेंगे।
2.मेरी पहचान
मै प्राचार्य था, यह मेरी पहचान है। क्या मैं अपनी पहचान बदल दूं? मेरे पूर्वज मोहाड़ी के मालगुजार थे। क्या मैं अपनी पहचान बदल दूं ? मेरा जन्म पोवार जाति में हुआ और मेरी मातृभाषा पोवारी है। क्या मैं अपने समाज का एवं मातृभाषा का नाम बदल दूं ? मेरी कर्मभूमि आमगांव और जन्मभूमि मोहाड़ी हैं। क्या मै अपने ये नाम बदल दूं ? मेरी ननिहाल ग्राम मुंडीपार की हैं,तो क्या मैं मुंबई की बता दूं ?
3.पहचान क्यों न बदलें ?
नहीं ! यदि मैं अपनी पहचान बदलूंगा, तो मुझे समझने में लोगों को बहुत दिक्कत होगी। शायद वें मुझे सही तरीक़े से कभी समझ नहीं पायेंगे।और अपनी पहचान बदलने से मेरे मन की शांति भी नष्ट हो जायेगी। इसलिए मेरी भलाई इसी में है कि मैं अपनी पहचान न बदलूं।
4.हम कौनसी चीजें बदलें ?
मानव ने अपने कल्याण के लिए अपनी सोच, अपनी संगति, अपनी राह, अपनी नीति, अपने आदर्श,अपनी जीवनशैली अवश्य बदलनी चाहिए। खूब प्रगति करके अपनी पहचान को निखारने का, व्यापक बनाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। लेकिन अपनी मूल पहचान कदापि नहीं बदलनी चाहिए।
5.हमारी सामाजिक पहचान
हमारी पहचान के अलग- अलग प्रकार होते हैं। जिस प्रकार हमारी व्यक्तिगत पहचान होती है, उसी प्रकार हमारी एक विशेष सामाजिक पहचान भी होती है। हमारी जाति, हमारी मातृभाषा, हमारी संस्कृति यह हमारी सामाजिक पहचान को व्यक्त करती है। अतः जिस प्रकार हमने अपनी व्यक्तिगत पहचान नहीं बदलनी चाहिए, उसी प्रकार सामाजिक पहचान भी नहीं बदलनी चाहिए।
6.सामाजिक पहचान बदलने की साज़िश
हम क्षत्रिय पोवार हैं, मातृभाषा पोवारी हैं और हमारी संस्कृति पोवारी कहलाती है। हम अपनी इसी पहचान को लेकर आगे बढ़ना चाहते है,और यह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार ( Natural Right)है। पोवार समुदाय के बहुसंख्य सर्वसामान्य लोग भी अपने नैसर्गिक अधिकार के अनुसार अपनी ऐतिहासिक पहचान को धारण करके ही आगे बढ़ना चाहते हैं।ऐसी स्थिति में किसी भी प्रकार से उन्हें गुमराह करके उनकी पहचान बदलने का कार्य जायज़ नहीं कहला सकता। इस प्रकार का प्रयास सर्वथा षड़यंत्र की श्रेणी में ही आता हैं।
7.पहचान से छेड़छाड़ कौन करते है ..
बहुसंख्य पोवार समाज खेती- किसानी और शारीरिक श्रम का कार्य करता हैं। इस वर्ग के पास अन्य चीजों पर सोचने , लिखने का और वाद-विवाद करने का समय नहीं होता। समाज के सुशिक्षित, वकील डाक्टर , इंजीनियर अथवा धन संपन्न व्यक्ति राष्ट्रीय संगठन में पदाधिकारी हुआ करतें है। इन लोगों को पद संभालने का, लिखने का और वाद-विवाद करने का भरपूर खाली समय मिल जाता है। समाज की पहचान से छेड़छाड़ करने वाला भी इन्हीं में से कोई व्यक्ति होता है।
8.राष्ट्रीय संगठन का स्वरूप
पोवार समाज की बात करें,तो इस समाज की जनसंख्या लगभग 15 लाख हैं। क्या राष्ट्रीय संगठन के पदाधिकारी 15 लाख लोगों द्वारा निर्वाचित होते हैं ? बिल्कुल नहीं ! तथाकथित राष्ट्रीय संगठन द्वारा समाज के लगभग 5 हजार लोगों को सदस्य बनाया जाता है। चुनाव के दिन हजार,दो हजार लोग उपस्थित रहते हैं,चुनाव संपन्न हो जाता है। हम मानते हैं कि यदि इनमें समाज सेवा का भाव हैं तों ये समाज को सही मार्गदर्शन करें, समाज की कोई समस्या हल करें या समाज के लिए कोई अच्छा कार्य करें।
9.राष्ट्रीय संगठन से जनता की अपेक्षा
संगठन के लोग समाज हित में कोई काम करें तो किसी को कोई आपत्ती नहीं हैं। लेकिन इन्हें समाज और मातृभाषा का नाम बदलने का और इतिहास से छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन राष्ट्रीय संगठन द्वारा समाज की उदासीनता अथवा कमजोरी का फायदा उठाकर पोवार समाज और उसकी मातृभाषा का नाम बदलने का षड़यंत्र 1982से चल रहा हैं। इससे समाज भ्रमित हुआ हैं और नाम के संबंध में एकसूत्रता नष्ट हुई है।लोग जैसा मन को भाये, वैसा ही समाज और मातृभाषा का नाम लिखते है।
10.भाषिक और वैचारिक क्रांति अभियान
पोवार समाज में 2018 से भाषिक, सामाजिक एवं वैचारिक क्रांति अभियान निरंतर काम कर रहा हैं। परिणामस्वरूप पोवार समाज में पर्याप्त जनजागृति आयी हैं। अतः अब पोवार समाज किसी भी सामाजिक संगठन द्वारा अपने और मातृभाषा के नाम में छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करेगा।
11.निष्कर्ष
नाम बदलने से पहचान बदल जाती हैं।
नाम बदलकर पहचान बदलने का कार्य फि़ल्मी दुनिया में और थोड़ा बहुत राजनीति में भी होते हुए हमारे देश ने देखा हैं। संन्यास अपनाते समय संन्यासी का नाम भी बदला जाता है। उपर्युक्त अपवादों को छोड़कर नाम बदलने का कार्य कही देखा नहीं जाता। जो लोग अपनी मातृभाषा और समाज की पहचान बदलने का षड़यंत्र कर रहे हैं उनसे हम पूंछना चाहते हैं कि क्या वें स्वयं बचपन से धारण किया हुआ अपना नाम बदलेंगे ?इस प्रश्न के जवाब में लगभग सभी लोगों का जवाब नकारात्मक आना सुनिश्चित हैं। अंततः हम कहना चाहते हैं कि न मैं अपना नाम बदलना पसंद करता हूं,और समाज का अन्य कोई भी व्यक्ति अपना नाम बदलना नहीं चाहता।ऐसी स्थिति में कोई भी संगठन पोवार समाज और उसकी मातृभाषा का नाम बदलने का षड़यंत्र न करें। अब पोवार समुदाय इस प्रकार के षड़यंत्र का जाहिर विरोध करेगा।
ओ सी पटले, इतिहासकार
पोवारी भाषिक, सामाजिक, वैचारिक क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
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